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Rama Krsna Jun 2022
forgive me
for committing the sin of looking for you
here, there, and everywhere.
forgetting the cardinal truth
that you’re the omnipresent one!

to think i could think of you,
the one who’s beyond all thoughts
my trespass too.

forgive me.....

© 2022
Rama Krsna Apr 2022
all faces, bodies and limbs
in this variegated universe
belong only to you.
all feelings, thoughts and sensations,
simply yours too.
all of existence is just your dream!
even the bliss glimpsed in my deep sleep,
a chip of your inner peace

when you wake up from that long trance
to perform the cosmic dance,
we will all merge with you,
like moths to a flame


© 2022
the cosmic person is eulogized here as the sum totality of everything in this universe with no beginning or end
Rama Krsna Apr 2022
despite
the macabre march of corpses
straight into the raging funeral pyres,
it’s the icy waters of the Ganges
from your matted locks
which shiver my timbers

amidst
mellifluous incantations,
one thousand and eight lamps
floating on this mystical river
sparkle in an anemone glow

here,
a great sage
was taught a befitting lesson
in humility and spirituality

as i melt
hearing this soulful octet
in praise of this ancient city,
its most important inhabitant smiles......
truth be told
i’m in a Varanasi state of mind


© 2022
inspired by the transience of life and the aarati offered to the holiest river in the world- Ganges
Rama Krsna Mar 2022
🌙 🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙
at the confluence
where the rivers
of the past and future merge,
there
in that tranquil present,
time and i cease to exist.

dissolved like sugar in water,
to be one with
that crescent bearing jewel
who’s ever pure like white jasmine
🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙

© 2022
क्या  यत्न  करता उस क्षण जब युक्ति समझ नहीं  आती थी,
त्रिकाग्निकाल से निज प्रज्ञा मुक्ति का  मार्ग  दिखाती  थी।  
अकिलेश्वर को हरना  दुश्कर कार्य जटिल ना साध्य कहीं,
जटिल राह थी कठिन लक्ष्य था  मार्ग अति  दू:साध्य कहीं।

अतिशय साहस संबल  संचय  करके भीषण लक्ष्य किया,
प्रण धरकर ये निश्चय लेकर निजमस्तक हव भक्ष्य किया।
अति  वेदना  थी तन  में  निज  मस्तक  अग्नि  धरने  में ,
पर निज प्रण अपूर्णित करके  भी  क्या  रखा लड़ने  में?

जो उद्भट निज प्रण का किंचित ना जीवन में मान रखे,
उस योद्धा का जीवन रण में  कोई  क्या  सम्मान रखे?
या अहन्त्य  को हरना था या शिव के  हाथों मरना था,
या शिशार्पण यज्ञअग्नि को मृत्यु आलिंगन करना था?

हठ मेरा  वो सही गलत क्या इसका मुझको ज्ञान नहीं,
कपर्दिन  को  जिद  मेरी थी  कैसी पर था  भान कहीं।
हवन कुंड में जलने की पीड़ा सह कर वर प्राप्त किया,
मंजिल से  बाधा हट जाने का सुअवसर प्राप्त किया।

त्रिपुरान्तक के हट जाने से लक्ष्य  प्रबल आसान हुआ,
भीषण बाधा परिलक्षित थी निश्चय हीं अवसान हुआ।
गणादिप का संबल पा  था यही समय कुछ करने का,
या पांडवजन को मृत्यु देने  या उनसे  लड़ मरने  का।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
जिद चाहे सही हो या गलत  यदि उसमें अश्वत्थामा जैसा समर्पण हो तो उसे पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि महादेव भी नहीं। जब पांडव पक्ष के बचे हुए योद्धाओं की रक्षा कर रहे जटाधर को अश्वत्थामा ने यज्ञाग्नि में अपना सिर काटकर हवनकुंड में अर्पित कर दिया  तब उनको भी अश्वत्थामा के हठ के आगे झुकना पड़ा और पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अश्वत्थामा के हाथों मृत्यु प्राप्त करने के लिए छोड़ देना पड़ा ।
क्या  यत्न  करता उस क्षण
जब युक्ति समझ नहीं  आती थी,
त्रिकाग्निकाल से निज प्रज्ञा
मुक्ति का  मार्ग  दिखाती  थी।   
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अकिलेश्वर को हरना  दुश्कर
कार्य जटिल ना साध्य कहीं,
जटिल राह थी कठिन लक्ष्य था 
मार्ग अति  दू:साध्य कहीं।
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अतिशय साहस संबल  संचय 
करके भीषण लक्ष्य किया,
प्रण धरकर ये निश्चय लेकर
निजमस्तक हव भक्ष्य किया।
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अति  वेदना  थी तन  में 
निज  मस्तक  अग्नि  धरने  में ,
पर निज प्रण अपूर्णित करके 
भी  क्या  रखा लड़ने  में?
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जो उद्भट निज प्रण का किंचित
ना जीवन में मान रखे,
उस योद्धा का जीवन रण में 
कोई  क्या  सम्मान रखे?
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या अहन्त्य  को हरना था या
शिव के  हाथों मरना था,
या शिशार्पण यज्ञअग्नि को
मृत्यु आलिंगन करना था?
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हठ मेरा  वो सही गलत क्या
इसका मुझको ज्ञान नहीं,
कपर्दिन  को  जिद  मेरी थी 
कैसी पर था  भान कहीं।
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हवन कुंड में जलने की पीड़ा
सह कर वर प्राप्त किया,
मंजिल से  बाधा हट जाने
का सुअवसर प्राप्त किया।
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त्रिपुरान्तक के हट जाने से
लक्ष्य  प्रबल आसान हुआ,
भीषण बाधा परिलक्षित थी
निश्चय हीं अवसान हुआ।
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गणादिप का संबल पा  था
यही समय कुछ करने का,
या पांडवजन को मृत्यु देने 
या उनसे  लड़ मरने  का।
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अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
जिद चाहे सही हो या गलत  यदि उसमें अश्वत्थामा जैसा समर्पण हो तो उसे पूर्ण होने से कोई रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि महादेव भी नहीं। जब पांडव पक्ष के बचे हुए योद्धाओं की रक्षा कर रहे जटाधर को अश्वत्थामा ने यज्ञाग्नि में अपना सिर काटकर हवनकुंड में अर्पित कर दिया  तब उनको भी अश्वत्थामा के हठ की आगे झुकना पड़ा और पांडव पक्ष के बाकी बचे हुए योद्धाओं को अश्वत्थामा के हाथों मृत्यु प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया ।
Rama Krsna Aug 2021
is it me or did i not see
naughty cupid shamelessly flash
his flowery bow and love-dipped arrow
straight at me?

smitten,
i see her falling eyelash,
  only witness
to that seductive gaze
which freezes amaranthine ‘time’
down to absolute zero.

seldom bound
by conventions or clocks,
i, the sage smile....
knowing her playful side
and the true nature of whimsical cupid.


© 2021
modern rendition of the  story of shiva and kama-cupid
Rama Krsna Jul 2021
you’ve turned me
a nomad
running helter-skelter
in all cardinal directions....
cos when it’s all said and done,
it’s your smile
that i keep looking for on every street


© 2021
Rama Krsna Jul 2021
riding his cosmic bull
the cosmic dancer
rattles his cosmic drum.....

wearing
only a serpent around his neck
as his cosmic garland,
he silently ponders.....

is it time yet for cosmic dissolution?

cosmic dust from that annihilation
to be worn as a cosmic emblem on his forehead,
sending a stark reminder
that the cosmos and all the games played within,
are his and his alone


© 2021
Rama Krsna Jun 2021
from
ultraviolet to infrared
and all that’s in between,
only you.....
my crescent bearing jewel
who’s pure
as white jasmine


© 2021
dedicated to  the lord of the universe -  Vyomakesa
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