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Krishna Aug 2014
खाना-ए-दिल आख़िर आबगाह क्यूँ बना हुआ है?
होता है जो दुनियावी महफ़िल  में, वही तो हुआ है!

अकेलेपन की टीस, हिय के करुण रूदन से,
दुनियावी अर्ज़मन्दों को, न ही फर्क़ पड़ा था, न ही फर्क़ पड़ा है।
खिंच आते सभी तुम तक, आराइश देख महलों की,
वही तो सूना छोड़ जाते, जब आजरदाह होता मन में॥

खाना-ए-दिल आख़िर आबगाह क्यूँ बना हुआ है?
होता है जो दुनियावी महफ़िल  में, वही तो हुआ है!

तख़सीम है आब-ए-चश्म से वो जगह,
जहां कभी आब-ए-आइना बिखरा हुआ था।
आशुफ्ता है वो सांस मेरी,
जिसमें कभी चैन समाया होता था॥

खाना-ए-दिल आख़िर आबगाह क्यूँ बना हुआ है?
होता है जो दुनियावी महफ़िल  में, वही तो हुआ है!

ग़लती ऐसी क्या हुई, कि आश्ना-ए-दिल भी छोड़ चल दिये?
सच्चा हूँ, ये ग़ुनाह है मेरा,
या सीधा हूँ, ये बुराई है मेरी?
या फिर ये कि आंसू नहीं देख सकता किसी कि आँखों में?
या शायद ये कि तुम सी झूठी अदा ओढ़े नहीं चलता!
या ये, कि मेरी जेब खाली है??

खाना-ए-दिल आख़िर आबगाह क्यूँ बना हुआ है?
होता है जो दुनियावी महफ़िल  में, वही तो हुआ है!

अरे! ओ हुक्मरानों!
मैं अकेला तो हूँ पर झूठा नहीं।
तुम सा चांदी की थाली में तो नहीं खाता,
पर भूखे कि छटपटाहट को समझता ज़रूर हूँ मैं।
महंगे जवाहरात से तो नहीं सजतीं मेरी शामें,
पर किसी के इक़बाल को इल्ताफ़ में भी नहीं बदलता मैं।
होगा नाज़ तुम्हें अपने कोषागार की वृहदता पे,
पर नाज़ करता इख्लास और अल्लाह पाक़ की इनायत पे मैं॥

खाना-ए-दिल आख़िर आबगाह क्यूँ बना हुआ है?
होता है जो दुनियावी महफ़िल  में, वही तो हुआ है!

सुन लो झूठे रईसों!!!
ज़रूरत नहीं है तुम्हारे दोमुँहे इल्तिफ़ात की मुझे,
आलियों के आली अकबर खुदा  मेरे साथ है।
और ये जो डराता हुआ अकेलापन है मेरा,
तुम्हारे झूठे इब्तिसाम से तो लाख़ गुना बेहतर है।
रखे रहो झूठी विलासिता अपने पास मुबारक,
मुझे मेरी गरीबी इससे प्यारी है।
पोंछते जाउंगा आँसू, बांटते जाउंगा  ख़ुशियाँ,
चाहे तुम हो या कोई और,
क्यूंकि दुःख और अकेलापन, क्या होता है,
कोई मुझसे पूछे, कोई मुझसे पूछे!!!!
There comes a time in everybody's life when they are all alone. That may be for a variety of reasons, varying from person to person but in my case, it was because of my innocent, guileless demeanours and credulous disposition. People used me and then considered me a *******. Hence,  I wrote this conveying my heartrending wail and cry that I felt when NO one stood by me except my Lord.
Amitav Radiance Jul 2014
If you shut out the windows of the heart
Pall of gloom will engulf every corner
Forever searching with weakened vision
Whom shall you rely on to find a path?
You are bereft of any companion
As you allow none to enter your seclusion
Denying the soul of light, withering away
Gradually pushing you into oblivion
As all your sense are misdirected in gloom
Even your shadow will be forgotten
If you wish to live in eternal state of darkness
Kayla Ann Jul 2014
Tearstains unlock doors
You reach out in darkness and
Ask for me to come inside

We sit in the space in your soul for
Hours pouring out our hearts
Until the light peeks through the
Crack under the door

Stepping out you dance away
Into daybreak without farewell
Leaving me in an empty shell

My poured out heart is
A puddle on the floor that
You didn't embrace the way I did

I might see you again
When it gets dark
And you recall
Just how miserable
Seclusion is

Welcome back
I've been lonely
Beneath the dense amber downpour of remedy, I rest.
Atop the immense scarlet sea of anarchy, I stand.
And in the midst of etiquette drawing its final breath, I weep.
My favorite Sijo so far mostly based on one of my most common dreams as well as my feelings regarding society and my place in it.

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© Jordan Dean "Mystery" Ezekude

— The End —