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Serendipity Oct 2023
Death has been unkind
in his murky, flowy form,

teasing me endlessly
and his laughter, I can't ignore.
witching hour Jun 2022
you are
my dreams’ reel
frequent inhabiter
rarely a bypasser
feelings lost
sight, almost
अनुभव  के अतिरिक्त कोई आधार नहीं ,
परमेश्वर   का   पथ   कोई  व्यापार  नहीं।
प्रभु में हीं जीवन कोई संज्ञान  क्या लेगा?
सागर में हीं मीन भला  प्रमाण क्या  देगा?

खग   जाने   कैसे  कोई आकाश  भला?
दीपक   जाने  क्या  है  ये  प्रकाश भला?
जहाँ  स्वांस   है  प्राणों  का  संचार  वहीं,
जहाँ  प्राण  है  जीवन  का आधार  वहीं।

ईश्वर   का   क्या  दोष  भला   प्रमाण में?
अभिमान सजा के तुम हीं हो अज्ञान में।
परमेश्वर   ना  छद्म   तथ्य  तेरे  हीं  प्राणी,
भ्रम का   है  आचार  पथ्य  तेरे अज्ञानी ।

कभी  कानों से सुनकर  ज्ञात नहीं  ईश्वर ,
कितना भी  पढ़  लो  प्राप्त ना  परमेश्वर।
कह कर प्रेम  की बात भला  बताए कैसे?
हुआ  नहीं  हो  ईश्क उसे समझाए कैसे?

परमेश्वर में  तू  तुझी   में  परमेश्वर ,
पर  तू  हीं  ना  तत्तपर  नहीं कोई अवसर।
दिल  में  है  ना    प्रीत   कोई उदगार  कहीं,
अनुभव  के अतिरिक्त  कोई  आधार नहीं।

अजय अमिताभ सुमन
मानव ईश्वर को पूरी दुनिया में ढूँढता फिरता है । ईश्वर का प्रमाण चाहता है, पर प्रमाण मिल नहीं पाता। ये ठीक वैसे हीं है जैसे कि मछली सागर का प्रमाण मांगे, पंछी आकाश का और दिया रोशनी का प्रकाश का। दरअसल मछली के लिए सागर का प्रमाण पाना बड़ा मुश्किल है।  मछली सागर से भिन्न नहीं है । पंछी  और आकाश एक हीं है । आकाश में हीं है पंछी । जहाँ दिया है वहाँ प्रकाश है। एक दुसरे के अभिन्न अंग हैं ये। ठीक वैसे हीं जीव ईश्वर का हीं अंग है। जब जीव खुद को जान जाएगा, ईश्वर को पहचान जाएगा। इसी वास्तविकता का उद्घाटन करती है ये कविता "प्रमाण"।
आसाँ  नहीं  समझना हर बात आदमी के,
कि हँसने पे हो जाते वारदात आदमी के।
सीने  में जल रहे है अगन दफ़न दफ़न से ,
बुझे  हैं ना  कफ़न से अलात आदमी  के?

ईमां  नहीं  है जग  पे ना खुद पे है भरोसा,
रुके कहाँ  रुके हैं सवालात  आदमी के?
दिन  में  हैं  बेचैनी और रातों को उलझन,
संभले   नहीं   संभलते  हयात आदमी के।

दो  गज   जमीं   तक  के छोड़े ना अवसर,
ख्वाहिशें   बहुत   हैं दिन रात आदमी के।
बना  रहा था कुछ भी जो काम कुछ न आते,  
जब मौत आती मुश्किल हालात आदमी के।

खुदा  भी  इससे हारा इसे चाहिए जग सारा,
अजीब  सी है फितरत खयालात आदमी के।
वक्त  बदलने पे  वक़्त भी तो  बदलता है,
पर एक  नहीं  बदलता ये जात आदमी के।

अजय अमिताभ सुमन
आदमी का जीवन द्वंद्व से भरा हुआ है। एक व्यक्ति अपना जीवन ऐसे जीता है जैसे कि पूरे वक्त की बादशाहत इसी के पास हो। जबकि हकीकत में एक आदमी की औकात वक्त की बिसात पे एक टिमटिमाते हुए चिराग से ज्यादा कुछ नहीं। एक व्यक्ति का पूरा जीवन इसी तरह की द्वन्द्वात्मक परिस्थियों का सामना करने में हीं गुजर जाता है और वक्त रेत के ढेर की तरह मुठ्ठी  से फिसलता हीं चला जाता है। अंत में निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगता । व्यक्ति के इसी द्वंद्व को रेखांकित करती है ये कविता"जात आदमी के"।
जीवन  के   मधु प्यास  हमारे,
छिपे किधर  प्रभु  पास हमारे?
सब कहते तुम व्याप्त मही हो,
पर मुझको क्यों प्राप्त नहीं हो?

नाना शोध करता रहता  हूँ,
फिर भी  विस्मय  में रहता हूँ,
इस जीवन को तुम धरते हो,
इस सृष्टि  को  तुम रचते हो।

कहते कण कण में बसते हो,
फिर क्यों मन बुद्धि हरते हो ?
सक्त हुआ मन निरासक्त पे,
अभिव्यक्ति  तो हो भक्त पे ।

मन के प्यास के कारण तुम हो,
क्यों अज्ञात अकारण तुम हो?
न  तन  मन में त्रास बढाओ,
मेघ तुम्हीं हो प्यास बुझाओ।

इस चित्त के विश्वास  हमारे,
दूर   बड़े   हो   पास  हमारे।
जीवन   के  मधु  प्यास मारे,
किधर छिपे प्रभु पास हमारे?

अजय अमिताभ सुमन
Flatfielder Nov 2020
You are out there.........




(c)near_lane7
If one misses someone
Nylee Jun 2020
It wasn't a dream
What I had seen
It was reality
But what now?
Steve Page Oct 2018
The shorts I wear to bed
have a back pocket.
When I chose to buy them
in a twin pack with a tee shirt,
the pocket was not
a deciding feature.
However, I acknowledged
that it was there by design.

For months I gave it no further thought.
For months it was as redundant
as a breast pocket in pyjamas.

Then one morning,
as I was juggling
with a cereal bowl
and clothes from the dryer,
I slipped my phone,
still playing a pod cast,
into my back pocket.

And for a moment,
as the conversation followed me upstairs back to the bedroom,
I smiled at the foresight of M&S.
I should have realised:
they know their stuff.
Simple things make life easier.
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