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 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
Pain inLove
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
इल्जाम नही है, बस पूछ रही हूँ ।

किसी की आँखों को अश्क थमा कर ,
कैसे मुस्कुराते है बता दे ?
थामे हाथो को मझधार में छोड़ ,
मुकाम कैसे पाते है , सीखा दे ?

सुना है आजकल किसी गैर की बाहो में सजता है तू ,
अपने इश्क की खुशबू भुला , गैरो को करीब कैसे लाते है बता दे ?

की फितरत नही हर रोज नया इश्क कर पाना
तू बस आख़री मोहोब्बत है , कह कर
औरों से इश्क कैसे फरमाते है जता दे ?

मेरी तो परवरिश में मोहोब्बत को पूजा जाता है
पर दुसरो के ख्वाबों का गुलिस्तां जला ,
अपना बाग़ कैसे सजाते है बता दे

इल्जाम नही है , बस पूछ रही हूँ
 Jan 2018 YUKTI
Mitch Prax
You are a novel
gathering dust on my shelf
but not because I don’t want to read
but because I’m afraid
to turn the page,
afraid of how you’ll end
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
Saval
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
सवाल

मैं जानता हूँ,अजीब एक गुनाह कर रहा हुँ।
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

धरती पड़ी जो हाथ असुर के
तुम ले अवतार आये थे
जब रक्षा की धरती माँ की
तब सब पुत्र धन्य हो पाए थे

आज माँ अपने की पुत्रों के दिलों का भार है
कलयुग में शर्मिंदा है आँचल,
ममता भी तार तार है।
बस बता दो भगवान हर घर मैं क्या जा पाओगे
अपनी ही संतान से ममता को कैसे बचाओगे .

जानता हुँ ,पूछ ये सब को हैरान कर रहा हुँ ,
ईश्वर मेरे , मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

चिरहरण पांचाली का भाई बन बचाया था
दे जवाब उस घृणा कार्य का ,
तूने पापियों का सर झुकाया था ।

पर आज हर मन में दुःशाशन बसता है,
दामन छलनी कर नारी का,
अत्याचारी मंद मंद हँसता है ।
हर दिन गूंजती चीख़ों को क्या मुस्कान में बदल पाओगे ,
हर चौखट पर लुटता दामन कैसे बचाओगे ।

जानता हूँ ,है प्रभु मैं पाप कर रहा हूं ,
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हूँ ।।

जब राजनीति,प्रशासन एवम न्याय भी बिकाऊ हो
तो गरीबों के आत्मदाह को , क्या मान दे पाओगे
डूबती है इंसानियत , डूबने से कैसे बचाओगे

जानता हूँ विश्वास पे घात कर रहा हूँ मैं
पर भगवान मेरे , ये ही चंन्द सवाल कर रहा हूँ मैं
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
Woman
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
इंतेहा हो गई पर सहती रही
उम्मीदो की दरिया जैसी बहती रही

कभी अपनों के लिए
कभी अपनों के सपनो के लिए

चाहे आखो में हो अश्क का सागर
होठो में ओरो की मुस्कराहट लिए

पथरीली रहो पर चलती रही
शाम की तरह ढलती रही
उम्मीदो के दरिया जैसी बहती रही

अस्काम के तराशे हम खुद्गरजो के लिए
मतलबी दुनिया के मकबरों के लिए
हर दर्द सहे उसने हँसते हँसते
जो मुड़ कर न आये उन पलों के लिए

औरत है वो देवी जो बुझती रही
मुरझा गई पर जीती रही
जाने कैसे वो इम्तेहा सहती रही
जाने कैसे दरिया बन बहती रही
 Jan 2018 YUKTI
Bhakti
बरहाल शाम का वक्त था , कुछ भीड़ में टकरा गई|
बीते वक्त को सामने देख , तिनका भर घबरा गई|
आखो से अश्क छूट गया, पर पलको ने सम्हाला|
ओर उसने पूछ लिया
Can we have coffee together?
सामने बैठा था वो , हर जख्म का जरिया था जो|
की पूछ लू क्या गुनाह था जो बेइंतेहा चाहा था?
की क्या थी मजबूरियाँ या तुझको बस जाना था?
पर रोक के मेरी रूह ने चंन्द लफ्ज में मुझसे कहा,
फकत जस्बात भी जाहिर तू कर दे
इसके भी वो काबिल नही.......

ओर मेने पूछ लिया....

How's your wife & son?
सुनते ही दो लम्हा लब उसके खामोश थे|
जैसे कहना चाहता हो कि इश्क तेरा निर्दोष है|
की आज भी दिल मे मेरे एक ही मोहोब्बत है|
बाहो में बस तू हो आज तक ये हसरत है|
ओर एक जवाब आया

ठीक.....
तुम बहोत खूबसूरत लग रही हो|

मुस्कुराई मैं , coffee को खत्म किया और कहा अच्छा अब चलती हूँ
रोकते हुए उसने कहा बस इतना सा वक्त मेरे लिए
ये ही तुम्हारी चाहत है?
नम आंखों से मैने कहा ,एक माँ हूँ एक पत्नी हूँ
जिम्मेदारियां बहोत है|
 Jan 2018 YUKTI
bones
13w.
 Jan 2018 YUKTI
bones
Am I really a poet,
If all I ever write about,
Is you?
Feeling insecure today.
 Jan 2018 YUKTI
Existential me
I love her.
No not ******* worldly,
But softly, purely , celestially.
Obsessively?
Not necessarily, just completely,
selfishly and I'm sorry.
I love her unconditionally, some say unconventionally.
But they don't understand me.
Yes...I love her.
Most spiritually, asexually, platonically and wholly.
I love her, truly, honestly, musically and poetically...
She doesn't have to love me.
Your looks may fade... my love shall not.

— The End —