सफेद एप्रन पहनकर
मरीजों का मसीहा आता है
कितना भी क्यों ना हो दु:ख मरीज का
उसके आने से फिर विश्वास से भर जाता है
उसके छू लेने से जादू सा हो जाता है।
अक्सर कलाकार कहते सुने जाते हैं
पात्र में जान फूंकने को पात्र बनना पड़ता है
और फिर पात्र ही बनकर जीने लगते हैं
सोचो यदि डॉक्टर ऐसा कहने लग जाए
फिर क्या हाल दुनिया के होने लग जाए
जिसके आने से उम्मीद ही उम्मीद छा जाए
मरीजों का दर्द अनुभव करते करते
शायद कई बार करते होंगे
मरीज जैसे दर्द का अनुभव
ना कभी चेहरे पर इसका आभास होने देते
ना कभी कार्य की नाप का अनुभव कराते
ना कभी उनके कार्य की कीमत बताते
बस जल्दी ठीक हो जाओगे इतना कहते जाते
चारों तरफ उम्मीद की किरण हैं फैलाते
शुक्र है परमात्मा का कुछ लोगों को
महान सेवा कार्य में उतारते हैं
जो दिन रात जीवन बचाने में लगाते हैं
हम आज डॉक्टर दिवस पर उनका
सौ सौ बार आभार व्यक्त करते हैं।