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नर हो तुम नारायण तुम हो,
पारब्रह्म अविनाशी हो,

तुम हो पालनहार जगत के,
तुम बैकुंठ निवासी हो,

जगत चराचर तुम्ही बसे हो,
तुम्ही बसे हो कण कण में,

जगत चराचर तुम्ही बसे हो,
तुम्ही बसे हो कण कण में,

मायाजाल में फसे हुए सब,
आन बसो अंतर्मन में,

आन बिराजो मुझमे तुम अब,
मैं भी तुझमे बस जाऊं,

ऐसे देना प्रभु दर्शन तुम,
मैं भवसागर तर जाऊं,

ऐसी गंगा धार बहा दो,
निर्मल काया हो जाए,

चाहे कितनी कठिन डगर हो,
तेरी छाया हो जाए,

नर हो तुम नारायण तुम हो --

नर हो तुम नारायण तुम हो,
पारब्रह्म अविनाशी हो,

तुम हो पालनहार जगत के,
तुम बैकुंठ निवासी हो,
वो अंधेरी ताखों पे रखी किताब,
वो अंधेरा कमरा वो सूखा गुलाब,
लबों पे सिसकती वह खारी नमी,
मुकम्मल से सपने और उसकी कमी,
चुभती वो सांसें वह चुभती महक,
कानों में चुभती वो मीठी चहक,
सूजी वो आँखें वो काले से घेर,
एक कोने में रखे खतों के वो ढेर,
कानों में बजती वो टिक टिक घड़ी,
इक तस्वीर बिस्तर पे टूटी पड़ी,
एक रूठी कहानी का रूठा सा हिस्सा,
अधूरे से ख्वाब और अधूरा सा किस्सा,
उदासी की फिर वह लकीरें मुसलसल,
रह रह तड़पती वह लहरों की हलचल,
समुंदर हो जैसे उमड़ता हुआ,
वह अपनी ही लहरों से लड़ता हुआ,
डराते वो अक्स, वो झिंगुर का शोर,
मन्नत से बाँधी वो हाथों पे डोर,
टूटी सी मन्नत वो रूठा सा रब,
मांगे से मिल जाए होता है कब ?
होता है क्यूँ  कोई अपना पराया,
होता मगर पास होता न साया,
ये रिश्ते ये नाते ये प्यार-ए-वफ़ा,
इक उसकी मोहब्बत और दिल की ख़ता,
इक मीठे से सपने सी सोते हुए,
मुकम्मल था सब उसके होते हुए,
अब कोई ना ख़त है ना कोई जवाब,
ख़ुशियों के लम्हे हैं ओढ़े हिजाब,
वो अंधेरी ताखों पे रखी किताब,
वो अंधेरा कमरा वो सुखा गुलाब,
न जाने कितने ख्वाब टूटे चलते चलते,
न जाने कितने अपने रूठे चलते चलते,
तेज़ तपिश सिहरन और सावन
न जाने कितने मौसम बदले चलते चलते,

एक याद जो लिपटी रही रात भर बिस्तर से,
न जाने कब शब् गुज़री करवट बदलते बदलते,
वो इक शख्श जो शामिल था मुझमे मेरे वजूद सा,
हिज़्र के कई सुखन दे गया चलते चलते,

उसका इखलास, उसकी वफ़ा, फ़क़त तगालुफ थी,
सब राज़ खुल गए वक़्त के साथ ढलते ढलते,
मैं तो सरसब्ज था क्या हुआ उसके बंज़र होने से,
होंगे नादीम वही, उम्र के साथ चलते चलते।
आ मोहे मन में बसो श्री राम
जनक नंदिनी परम पुनीता,
आन बसों संग भगवती सीता
दे वत्सल सुखधाम
आ मोहे मन में बसो श्री राम

भ्रात लक्ष्मण सेवक हनुमत,
जिनके भय पाएं काम क्रोध गत,
तिन संग कर विश्राम,
आ मोहे मन में बसो श्री राम

जामवंत, नल, नील औ अंगद,
तुमरे नाम जो पाएं परम पद,
मोहे अधर ओहि नाम,
आ मोहे मन में बसो श्री राम

केवट तारा अहिल्या तारी,
कष्ट हरो मोहे तुम त्रिपुरारी,
पूरण कीजो काम,
आ मोहे मन में बसो श्री राम

रघुकुलदीपक दशरथ नंदन,
दोए कर जोड़ करें हम वंदन,
दो मोहे धीर भक्ति और ज्ञान,
आ मोहे मन में बसो श्री राम
क्या खोया क्या पाया फिर, जब जीवन मधुर उमंग नहीं,
जिससे  पग-पग चलना सिखा, उनका ही जब संग नहीं
क्या खोया क्या पाया फिर,

एक रोज़ इक किरण दिखाकर, आँखों को रौशन था किया,
रंग-बिरंगी चाँदनी से फिर, मंत्रमुग्ध मन भी था किया,
सोचा रात कभी ना होगी, ना होगा कभी सुनापन,
चाँदनी का तो पता नहीं पर, चाँदनी का तो पता नहीं पर,
अब तो साँस भी संग नहीं,
क्या खोया क्या पाया फिर, जब जीवन मधुर उमंग नहीं,
जिससे  पग-पग चलना सिखा, उनका ही जब संग नहीं
क्या खोया क्या पाया फिर,

एक सुनहरी शाख देखकर, मन बगिया सजा बैठे ,
चंद अँधेरी ख्वाईशो में सारा जहाँ जला बैठे,
धीरे-धीरे गयी उतरती, स्वर्ण परत फिर शाख की,
वक़्त गुज़रता रहा तो जाना, उसमें अपना रंग नहीं,

क्या खोया क्या पाया फिर, जब जीवन मधुर उमंग नहीं,
जिससे  पग-पग चलना सिखा, उनका ही जब संग नहीं
क्या खोया क्या पाया फिर,

लगा समय पर जान गए अब, इस जीवन का राज भी हम,
जो सीधा सीधा दिखता है, है उलझा और भरे हैं ख़म,
जो उलझा उलझा दिखता है, है वृहद् और तंग नहीं ,

क्या खोया क्या पाया फिर, जब जीवन मधुर उमंग नहीं,
जिससे  पग-पग चलना सिखा, उनका ही जब संग नहीं
क्या खोया क्या पाया फिर,
हो त्रस्त आँखें रोज़ पूछे
तड़पे पानी बूँद के,
तू कितना मुझको व्यर्थ करता,
बैठा आँखे मूँद के,

वो देख चक्कर काटती,
सर धूप नंगे पाँव हैं,
रख सर घड़े जाती है जो,
बुन्देल उसका गांव है,

नन्ही मेरी ये प्यारी बिटिया,
छोटी मगर मुझसे बड़ी,
देने को पानी घूँट वो,
झुलसाए तन घंटो कड़ी,

ऐसी मेरी इक और बिटिया,
गयी पिछले माह जो धुप में,
लौटी ना जब, ढूंढा तो पाया,
मृत सबने उसको कूप में,

मौसम है या ये काल है,
धरती का सीना फट रहा,
नद, झील,बादल, नीर में,
आँखों का अब तो घट रहा,

समझाऊ कैसे तुमको मैं,
ज़ोर तुमपे ना सरकार पर,
खोके बहुत से अपने मैं,
बैठा हु सब कुछ हारकर,

बस सोच ये पानी जो तू,
है व्यर्थ इतना कर रहा,
इस एक पानी बूँद को,
कहीं प्यासा कोई मर रहा।
Apr 2019 · 396
हिज़्र
Arvind Bhardwaj Apr 2019
रात की तन्हाइयों में, चाँद भी सोया नहीं,
दिल अकेला ही रहा, यादो में ये खोया नहीं,

ख्वाबों के मंज़र रात भर, आकर सताते ही रहे,
गहरे समंदर अश्क के, पर दिल भिगोया नहीं,

गुनगुनाती गूंजती बजती रही शहनाइयां,
जश्न था तिरे हिज़्र का, लब मय भी डुबोया नहीं,

सुर्ख वो रुखसार और चश्म-ए-क़यामत याद है,
क्या क्या नहीं जो दफ़्न कर सीने में पिरोया नहीं,

वो तल्खियां, वो रंजिशें, प्यार और अहल-ए-वफ़ा,
बेफिक्र ही फिरते रहे, गम-ए-इश्क़ पर बोया नहीं.
Arvind Bhardwaj Apr 2019
न जाने कैसे, कब, कुछ रोज़ हमने जिए,
आए, बैठे, मुस्कुराये और चल दिए,

वो कहानी जो सदियों से बाकी थी ज़हन में,
सफ़े स्याही से रँगे, और सब बिखर गए,

मरासिम आँखों के अधूरे बेबाक रह गए,
बस पलकें झपकी, की सब दिए बुझ गए,

हमसायगी की नुमाइश करते तो कैसे,
दिन चार थे ज़िन्दगी के, पर नसीब कम ही हुए,

घटते ही रहे वक़्त-बेवक़्त खुशनसीबी के पल,
बज़्म-ए-ज़िन्दगी खुश थी, नाराज़ हम ही हुए.

http://tehreer.in/
Arvind Bhardwaj Mar 2016
हे कृष्ण कन्हैया, हे श्याम सुरेशम,
तुम बंसी बजइया, तुम सबके प्रियतम,

तुम निर्गुण, अनंत, अपराजित हो,
तुम चर और अचर विराजित हो,

तुम कमलनयन, कमलापति भी,
तुम रविलोचन, स्वर्गापति भी,

तुम नटखट, तुम नवनीतचोर,
तुम बड़े भोले, ऐ नन्द किशोर

हे पद्मनाभ, हे केशवम्,
हे कृष्ण कन्हैया, हे श्याम सुरेशम,
तुम बंसी बजइया, तुम सबके प्रियतम,

तुम सांतह, साक्षी, निरंजन हो,
सब कष्ट और क्लेश विभंजन हो,
तुम अव्युक्त, और अनिरुद्ध भी,
तुम गंगामृत, और विशुद्ध भी,

तुम पार्थसारथि, तुम सुमेधा,
तुम सर्वेश्वर, तुम अविजेता,

हे मोहनिष, माधव, त्रिविक्रम,
हे कृष्ण कन्हैया, हे श्याम सुरेशम,
तुम बंसी बजइया, तुम सबके प्रियतम।

तुम द्रविण, देवेश, दयालु हो,
दीन भक्तन पर कृपालु हो,
तुम सबके सारे पाप हरो,
तुम सबपर अपनी कृपा करो,

तुम पुरुषोत्तम, और उपेन्द्र हो,
तुम निर्मल पुण्य यादवेन्द्र हो,

तेरो अद्भुत नाम  पाप-नाशम,
हे कृष्ण कन्हैया, हे श्याम सुरेशम,
तुम बंसी बजइया, तुम सबके प्रियतम।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
यही गोविन्द यही गोपाला है,
मेरा कृष्ण बड़ा मतवाला है।

गोकुल से करे माखन चोरी,
रास रसे संग ब्रिज की चोरी -२

मोर पंख माथे पर सोहे, गल मोतियां की माला है,
मेरा कृष्ण बड़ा मतवाला है,
नटखट पर भोला-भाला है -२

करे कनखी, कभी मटकी तोड़े,
घर आवे मां कान मरोड़े,

नेत्रों से अश्रुधार बहे, कह निर्दोष तेरा ये लाला है,
मेरा कृष्ण बड़ा मतवाला है,
नटखट पर भोला-भाला है -२

ले लकुटी ये गाए चरावे,
अधर बांसुरी तान बजावे -२

रूप कृष्ण मोहे अति सुहावे, करे अमृत ये हाला है,
मेरा कृष्ण बड़ा मतवाला है,
नटखट पर भोला-भाला है -२
Arvind Bhardwaj Mar 2016
मेरे देवकीनंदन घर आवो ,
भक्तन की सुन विनती जावो,
मेरे देवकीनंदन घर आवो ,

माखन, मिश्री और चरणामृत,
मेवे, फल, चंदन, दुग्ध, घृत,

इन सबका भोग लगा जावो,
मेरे देवकीनंदन घर आवो

पुष्प सुगंध, कर्पूर अंजलि,
अक्षत, धूप और दीपावली,

सबका मान बढ़ा जावो,
मेरे देवकीनंदन घर आवो ।

दानवेन्द्र मेरे तुम जगदीश्वर
परमपिता मेरे तुम परमेश्वर
मेरा तन मन मधुबन कर जावो,

मेरे देवकीनंदन घर आवो ,
भक्तन की सुन विनती जावो,
Arvind Bhardwaj Mar 2016
मैं हिंदी..

कभी सीने से मुझको लगाने वाले,
हर गीत में मुझे गुनगुनाने वाले,
बनी जब मैं माँ की लोरी,
मेरी गोद में वह सो जाने वाले,
मुझसे अब रिश्ता तोड़ चुके हैं।

जिनकी हर वेदना की मैं आवाज़ बनी,
खुशी से गुनगुनाये तो मैं साज़ बनी,
कभी सोने के पन्नों में खेला करती थी,
आज चंद हर्फ़ों की मोहताज़ बनी।

कभी तरन्नुम में तो कभी तरानों में थी,
प्यार में लिखे अफ़सानों में थी,
यौवन के मधुर संगीतों में थी,
इश्क़ में तड़पे तो मैं उनकी ज़ुबानों पे थी।

क्रांति के इंक़लाब में निहित,
हर दो तूक जवाब में थी,
अख़बारों के पन्ने बनकर,
जमघट बेहिसाब में थी,
विजय उद्घोष किया जब तुमने,
मैं बन इतिहास किताब में थी।

हर रूप में जिनको ममता दी,
जिनका था मैंने वरण किया,
उन्हीं बेटों में भरी सभा में था,
मेरा चीर हरण किया,
इतने वर्षों से जो मेरी,
गोदी में फल फूल रहे थे,
तड़प उठी मैं, देखा जब,
वह मुझको ही अब भूल रहे थे।

अंतर्वेदना के गहन दर्द से रोती मैं चित्कार रही थी,
हर कोई अनजान था मुझसे,
और मैं बेबस निहार रही थी, और मैं बेबस निहार रही थी।
Mar 2016 · 2.6k
A white Dove..
Arvind Bhardwaj Mar 2016
One day after working for long I was taking a nap,
A pure white dove in the form of love, came & sitted in my lap.

I was shocked and also amaze,
I never thought about and never craze.

I was thinking what to do, keep with me or let her flew

Suddenly, my attention went on dove,
So sweet & So cute, I gone silent my feelings gone mute.
Heart was beating but mind was quite,
Is this a trap or everything alright?

Leave it and let it be, I thought..

With the passage of nights and days,
I was changing in many ways,
sometime I was dark, sometime I was grey,
I was behaving like an actor in Life's Play.

I was learning new things from dove,
How to Hate and How to Love.
How to accept and How to refuse.
How to have fun  and How to amuse.

I was so happy and so amused.
One day dove came and refused,
Dove said Its the time when I have to fly,
You learnt everything from me, Now learn How to CRY

That was the day when dove left my lap,
I remain silent for a long time gap.

Then I realized, sometime Life teach a lesson in the form of dove,
finally..
I learnt what I need, I will win yes indeed.
Arvind Bhardwaj Mar 2016
अबस-ए-ज़िंदगी मेरी, तेरी मोहताज हो गई,
जो हालत आज तक न थी, वो हालत आज हो गई।

चादर की सिलवटों में भी तेरा एहसास होता है,
बदलूं करवटें तो तेरा चेहरा पास होता है,

तेरी मौजूदगी भी पूरे शब भर राज हो गई,
अबस-ए-ज़िंदगी मेरी, तेरी मोहताज हो गई,
जो हालत आज तक न थी वो हालत आज हो गई।
Mar 2016 · 1.7k
साकी..
Arvind Bhardwaj Mar 2016
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे,
थकी है तेरी रूह भी अब तो, इसको कुछ आराम तो दे।
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे,

रुत्बा-ए-महफ़िल है, लम्हों की सरगोशी है,
आज इस हवा में अजब सी मदहोशी है,
तू इन मदहोश हवाओं को तूफ़ानी अंजाम तो दे,
ऐ साकी, ज़रा इस महफ़िल में पैमाने जाम तो दे।
Mar 2016 · 5.7k
अंदेशा..
Arvind Bhardwaj Mar 2016
अंदेशा तेरे आने का हमें इस क़दर था,
पलकें ख़ामोश ही रहीं ,पर सो ना पाई।

हाल-ए-दिल भी कुछ ऐसा रहा,
आँखें नम तो रहीं पर रो ना पाई।

दाग-ए-सितम तेरे दिल इस कदर थे,
पाक कौसर भी जिसे धो ना पाई।

होना हम भी चाहते थे तेरा,
मिटाना चाहते थे ज़ीस्त-ए-तन्हाई,
किस्मत ही शायद हक़ में न थी ,
वरना यूँ ना मिलती बेबाक जुदाई।

ज़िन्दगी के इस चौसर में ,
न जीते हम ही, न जीते वो ही,
बस बिखरा फ़लसफ़ा मोहब्बत का,
फकत दिल-ए-एतबार ने मात खाई।
Arvind Bhardwaj Mar 2016
मुझे ये ग़म और ये ख़ुशी दोनों रास है,
चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।

राह में जितने मिले सब अपने हैं, सब ख़ास हैं,
मेरी ज़िंदगी छोटी सही पर टुकड़े सबके पास हैं।

जब भी लगा टूटने, सबने समेटा हैं मुझको,
उलझा उलझनों में जब जब, सबने  लपेटा हैं मुझको,
कभी संग हंसे तो कभी संग रोए भी हैं,
बहुत से अपने मिले तो कुछ अपने खोए भी हैं।

जानता हूँ ज़िन्दगी है कुछ खोना तो कुछ पाना भी है,
सफ़र लम्बा है ज़िन्दगी का और दूर तक जाना भी है,
पर ना जाने क्यूँ, आज मेरी आँखें कुछ नम सी लगती हैं,
ज़िन्दगी पूरी तो है लेकिन फिर भी कुछ कम सी लगती है।

सबकी रूह, सबका प्यार, सबकी वफ़ा मेरे दिल के पास है,
मुझे ये ग़म और ख़ुशी दोनों रास है,
चलने की आदत है और मंज़िल की तलाश है।
Mar 2016 · 561
Chance to meet again.
Arvind Bhardwaj Mar 2016
The Happiness, The Pain
We lost much more with desire to Gain,

Someday sky shines, Someday it rain,
Someday we collected every single drop,
But someday it drain.

Oh my Lord make everyone happy,
Remove every stain.

I wish my Lord, you are everywhere, you know everything.

So **make a chance to meet beloved once again.
Arvind Bhardwaj Mar 2016
माँ की कोख से लेकर, उनकी गोद में आने तक,
बंद मुट्ठी के सपनों को अपना बनाने तक,
नन्ही-नन्ही बातों को लेकर रूठ जाने तक,
फिर माँ के प्यार से बहल जाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

बचपन की अटखेलियों में शैतानियाँ छुपाने तक,
बनकर नंदलाल, यशोदा माँ को सताने तक,
कभी मटकी तोड़ने तो कभी माखन चुराने तक,
बन भोले माँ से सब कुछ छुपाने तक,
कभी प्रेम में राधा के सबकुछ भुलाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

खिलौनों से खेलते-खेलते बड़े हो जाने तक,
पिता की उँगली पकड़, उनके कंधे पे आने तक,
छोटी सी ज़िद को लेकर बैठ जाने तक,
पापा की फटकार को सुनकर सहम जाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

यौवन में कदम रखकर पाँव बढ़ाने तक,
किसी के प्यार में अपना सबकुछ लुटाने तक,
छोटी-छोटी बातों पर लड़कर उनके मनाने तक,
बैठ अकेले तन्हा कहीं आंसू बहाने तक,
यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।

उनके इंतजार में अपनी पलकें बिछाने तक,
मिलकर सबकुछ कहने का सपना सजाने तक,
बिन उनके हर रात के तन्हा हो जाने तक,
उनके ख्वाबों में आँखों के नम हो जाने तक,
**यही प्रेम है, यही समर्पण, यही ज़िंदगी।
Mar 2016 · 16.2k
ज़िन्दगी.
Arvind Bhardwaj Mar 2016
यू देख मुझे ये दुनिया हैरान क्यों है,
मेरे हंसने पर भी पूछे है परेशान क्यों है?
यू तो सबकुछ समेटे रखता हूँ सीने में,
पर ना जाने आँखें इस क़दर बेइमान क्यों हैं?

कोशिश दिल से तो करता हूँ ,पर आँखें दगा देती हैं,
समझाता हूँ बहुत, पर फिर भी सज़ा देती हैं।
खामोश रहता हूँ,कि न समझे कोई हाल-ए-दिल,
न जाने क्यों ये सबको बता देती हैं,

ना जाने क्यों ख़फा है इस क़दर,
कई बार भरी महफ़िल में रुला देती हैं।
क्या समझाऊं कैसा खेल है मुकद्दर,
जिसे चाहो उसे कहीं और मिला देती है।

बहलाता हूँ बस ये कहकर खुद को,
ये ज़िन्दगी है मरते को भी जीना सीखा देती है ।
Mar 2016 · 5.1k
पन्ने...
Arvind Bhardwaj Mar 2016
इस दिल ने जब भी उनके प्यार के क़सीदे पढ़े,
सच कहता हूँ, दिल तो चुप रहा पर पन्ने रो पड़े।
Mar 2016 · 655
Fly of Dreams..
Arvind Bhardwaj Mar 2016
One day I thought, does dreams are important to fly?

Started thinking.....
Birds have wings and they touch the sky, copter has fan then they ply.
Can I have anything, so I can fly?
I neither have wings nor fan, shall i continue or drop the plan?

Little confused.

One day I got a dream that I am flying higher and higher,
I woke up and found myself on bed, I said Oh! dream you are lier.

I want to fly when I discussed with dad,
He reacted suddenly and said are you mad?

what to do, what to not, poured a water in my thirsty throat..
Thinking, I am one in millions crowd, what to do so dad feel proud.

He said to me are you mad? I will surely fly my beloved dad..

Later..
going deeper and deeper like a creeper in a book i got a line,
It really changed mind of mine.

Line was...
If your dreams are bound then you are on ground,
if you dream high you touch the sky.

I shouted yes this is the swing, for which i searched everything

Now I found the answer..

when to laugh, when to cry.
when to wet, when to dry,
when to quiet and when to scream,
How to sleep and how to Dream

It was the time when i found the Treasure,
Now I am happy and living in pleasure.

Oh my dad now I can clearly see,
Success was locked till, but now I found the Key.

Now I will touch the sky, because I got a answer **How to FLY

— The End —