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Arvind Bhardwaj Mar 2016
मैं हिंदी..

कभी सीने से मुझको लगाने वाले,
हर गीत में मुझे गुनगुनाने वाले,
बनी जब मैं माँ की लोरी,
मेरी गोद में वह सो जाने वाले,
मुझसे अब रिश्ता तोड़ चुके हैं।

जिनकी हर वेदना की मैं आवाज़ बनी,
खुशी से गुनगुनाये तो मैं साज़ बनी,
कभी सोने के पन्नों में खेला करती थी,
आज चंद हर्फ़ों की मोहताज़ बनी।

कभी तरन्नुम में तो कभी तरानों में थी,
प्यार में लिखे अफ़सानों में थी,
यौवन के मधुर संगीतों में थी,
इश्क़ में तड़पे तो मैं उनकी ज़ुबानों पे थी।

क्रांति के इंक़लाब में निहित,
हर दो तूक जवाब में थी,
अख़बारों के पन्ने बनकर,
जमघट बेहिसाब में थी,
विजय उद्घोष किया जब तुमने,
मैं बन इतिहास किताब में थी।

हर रूप में जिनको ममता दी,
जिनका था मैंने वरण किया,
उन्हीं बेटों में भरी सभा में था,
मेरा चीर हरण किया,
इतने वर्षों से जो मेरी,
गोदी में फल फूल रहे थे,
तड़प उठी मैं, देखा जब,
वह मुझको ही अब भूल रहे थे।

अंतर्वेदना के गहन दर्द से रोती मैं चित्कार रही थी,
हर कोई अनजान था मुझसे,
और मैं बेबस निहार रही थी, और मैं बेबस निहार रही थी।

— The End —