वक़्त रुका है,घड़ी के कांटे रुके हैं,
हवा रुकी है, मौसम रुका है,
ना बीता एक लम्हा, ना गुज़री एक सांस
ना आयी अगली सुबह, ना आयी अगली शाम,
तेरे चले जाने के बाद मानो
धरती ठहर गयी है .....
हर वह ठहरा वक़्त आगे न बढ़ने का कारन बता रहा है
वक़्त के पेहले तेरे चले जाने का कारन खोज रहा है,
ऐसा क्या हुआ के तू चला गया अचानक,
ऐसा क्या करें अब के वक़्त चलने लगे
मानो तुझ से ही वक़्त आगे चलने की
अनुमती मांग रहा है ......
तू था तो इस अम्बर में खुशबु थी
सुबह उठने की और रात को सोने की कोई वजह थी
तू था तो तेरे लिए कुछ कर गुजरने की चाह थी
तू था तो जो तेरे लिए नहीं कर पा रहे थे
वही किसी और पे लुटाने की आरज़ू थी
अब तू नहीं, तो वह आरज़ू भी मानो यहाँ वहां भटकती
तुझ से रास्ता पूछ रही है....
क्या था मेरे पास बस एक तेरे सिवाय
तू ने सब ला लिया अपने लिए खुदा से मांग के
छोड़ गया सब कुछ मेरी झोली में डाल के
उसी खुदा के पास जहाँ से आया था
मेरे लिए खुद को मांग के……
बैठी हू़ँ चौखट पे बस यही सोचती
जो अमानतें दे गया है लौटाऊँ किसे,
न्योछावर करूँ उन सब को किसपे,
ढूंढ़ती हैं आँखें कभी तेरे खुदा को कभी तुझे ,
मानो तुझ ही से पूछ रहीं हैं
इन सब को लुटाऊं कैसे ....
Sparkle in Wisdom
On the loss of my baby... My son..!!!