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Ananya Nagar Nov 2015
मेज़
पर पड़ी ...
टूटी हुई सेठी की कलम
वो आधी बिखरी श्याही की दवात
कुछ पन्ने ईंट से दबे
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
रुके है अब भी
आँखों में आंसू
और अधरों पे शब्दों की तरह
एक अधूरी कविता
पूरी करनी है
पर लालटेन आखिरी सांसें ले रही है
मेरी तरह

चाभी का एक पुराना छल्ला
लटका था सिरहाने
कुछ चाभियाँ
शायद कोई राज़ खोले

एक टूटी ऐनक
जो टिकी रहती थी कानो के सिरहाने

कुछ टूटे पैसे बिखरे
शायद मेरे टूटे बिखरे
सपने खरीदे
मरने से पहले मुझमे साहस आया
लौ ने भी साथ निभाया
कलम थामा

लिखा क्या
??
बस "माँ"
....
A Poem for all the mothers in the world
Ananya Nagar Nov 2015
I didn’t cry when you left
Neither did I say anything to anyone
I just kept quiet for a few days

But, I've observed everything
And suffered even more

That blue shirt,
Which you often used to wear
Is ironed and arranged
in the wooden closet

Your specs are still kept
on the television..
And the umbrella ..
waiting for the rainy season..

In The last rains
We were soaked and drenched
I did not touch your umbrella ..
I know,
That you do not like
If  your things are misplaced

I’ve told the cobbler
To mend your old shoe
Your watch is repaired
With a battery brand new

Taylor has stitched your pants
With a lining inside
And
Your bed is done
And mom waiting by its side.

Dad ....
I know
You will be tired by the journey
But this time,
Please stand still
And Rest for some time
I will take off your shoes
And massage your legs
To make you de-stress
Whatever you’ll say
I'll do it all
Just stand still
And be there

You know what dad ...
The last time you left ..
You left us shocked...

Ananya
An English translation to the previous poem.
Ananya Nagar Nov 2015
तुम्हारे जाने पे मैं रोया नहीं
न मैंने किसी से कुछ भी कहा
मैं बस कुछ दिन चुप रहा

पर देखा मैंने सब कुछ
और उससे भी ज़्यादा मैंने सहा

वो नीली कमीज जो तुम
अक्सर पहनते थे
वो आज भी प्रेस कर के
करीने से रखी है अलमारी में मैंने।  

तुम्हारी ऐनक टी वी के ऊपर
और छाता खूँटी पे टंगा है.. .

पिछली बारिश में
हम भीगे बहुत पर तुम्हारा
छाता नहीं छुआ..
याद है मुझको की
तुमको नहीं पसंद
तुम्हारी चीज़ें कोई इधर उधर रखे। .

तुम्हारा जूता मोची से सिल्वा कर
ठिकाने पे रख दिया है
घडी में भी सेल पड़वा दिए हैं। ।

बगल के टेलर को कुर्ते में
अस्तर लगाने को
और
माँ को तुम्हारा बिस्तर लगाने को कह दिया है।  

पापा ....
पता है मुझको
की तुम थक कर आओगे
पर इस बार
तुम कुछ ठहर जाना
आराम करना
मैं जूते उतार दूंगा
और पाँव भी दबा दूंगा  
जो तुम कहोगे
वो सब करूँगा मैं
बस तुम ठहर जाना

पता है पापा …
पिछली बार बड़े अचानक
चले गए थे ।


अनन्य नागर
पुणे
I wrote this poem for my dad recently. He was a singer and music director and passed away in early 2012 after fighting Prostate Cancer for an year.
Ananya Nagar Oct 2015
तुम्हारे गीत को आवाज़ दूँ
या खुद को तुम्हारा
गीत बना लूँ मैं
जो तेरे होठों से होते हुए सीधे दिल में उतर जाऊं
कैसे कह दूँ वो सब अभी
जो वैसे कभी न कह पाऊं
कैसे बताऊँ तुम्हें
कितना तुम्हे मैं चाहूँ
धमनियों में जो रक्त प्रवाल्लित स्वर हैं
तुम्हे कैसे मैं सुनाऊँ
धड़कते दिल की धड़कन में तेरा नाम
तुम्हे कैसे मैं सुनाऊँ
हर इक सांस में तेरा अहसास
तुम्हे कैसे मैं जताऊँ
मेरे हर एक अश्क में भी तेरा ही अक्स
तुम्हे कैसे मैं दिखाऊँ
कैसे बताऊँ तुम्हें
कितना तुम्हे मैं चाहूँ
कैसे बताऊँ तुम्हें
कितना तुम्हे मैं चाहूँ
Its about the unexpressed love ..
Ananya Nagar Oct 2015
तुम्हारे होने का अहसास
मुझे जीवित रखता है ...
क्यूंकि
मैं जिंदा हूँ  ....


टूटी रीढ़ की हड्डी ...
बैसाखी के सहारे चलती
इस काया  को संभाले
आगे बढ़ता मैं
क्यूंकि
मैं जिंदा हूँ  .....


तुम मुझे कुचल दो  ...
तुम मुझे अंधेरो में
कच्चे पथरीले रास्तो पे
अकेला छोड़ दो ...
जहां मैं खुद को भूल जाऊं ....
अँधियारा गहरा पाऊं
फिर भी कहूँगा ये .....
मैं जिंदा हूँ ......



तुमसे बिछड कर
मुझे सांस लेना मुश्किल लगता है ....
फिर भी
बस तुम्हारे लिए


मैं जिंदा हूँ .......

— The End —