है परवर्दीगार मुझे फकत सुकून की दो गज जमीन अता फरमा
भटकते हुए बीती जिंदगी , एक पवित्र रोशनी दिखी जैसे तेरा इशारा हो
पड़ा , जीया, दौलत कमाई पर लगा जैसे फिजूल जीवन गुजरा हो
सेवा की, सहारा दिया , अमीरों के साथ बड़ा वक्त जिया
फिर भी दिल ने बेचेनी का कड़वा घुट हर पल पिया
थक कर एक दिन तेरे दर पर लेने जवाब आई
बिछा आसन श्रद्धा से तेरे चरणों मे आँखे बिछाई
महसूस किया कि पा ,ली थी दो गज जमीन जँहा मैं बैठी थी
वो सुकून की परछाई तेरे शरण में रहती थी