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जाके कोई क्या पुछे भी,
आदमियत के रास्ते।
क्या पता किन किन हालातों,
से गुजरता आदमी।

चुने किसको हसरतों ,
जरूरतों के दरमियाँ।
एक को कसता है तो,
दुजे से पिसता आदमी।

जोर नहीं चल रहा है,
आदतों पे आदमी का।
बाँधने की घोर कोशिश
और उलझता आदमी।

गलतियाँ करना है फितरत,
कर रहा है आदतन ।
और सबक ये सीखना कि,
दुहराता है आदमी।

वक्त को मुठ्ठी में कसकर,
चल रहा था वो यकीनन,
पर न जाने रेत थी वो,
और फिसलता आदमी।

मानता है ख्वाब दुनिया,
जानता है ख्वाब दुनिया।
और अधूरी ख्वाहिशों का,
ख्वाब  रखता आदमी।

आया हीं क्यों जहान में,
इस बात की खबर नहीं,
इल्ज़ाम तो संगीन है,
और बिखरता आदमी।

"अमिताभ"इसकी हसरतों का,
क्या बताऊं दास्ताँ।
आग में जल खाक बनकर,
राख रखता आदमी।
Siddharth Ray Jun 2019
Jis din ankhein na khule,
Andhere main lage sab theek,
Bandh ankhon pe peeche,
Hay jaise koi tamasha

Jeboon ki woh khan khanahat,
Jab jaye taqdeer se rooth,
Fir bharri mehfil bhi lage,
Hai jaise koi tamasha

Samajh ke aage jaakar,
Chadh jao manziloon pe,
Bin darbaari ke darbaar me bhi
Bas dikhe koi tamasha
कवि यूँ हीं नहीं विहँसता है,
है ज्ञात तू सबमें बसता है,
चरणों में शीश झुकाऊँ मैं,
और क्षमा तुझी से चाहूँ मैं।

दुविधा पर मन में आती है,
मुझको विचलित कर जाती है ,
यदि परमेश्वर सबमें  होते,
तो कुछ नर  क्यूँ ऐसे होते?

जिन्हें स्वार्थ साधने आता है,
कोई कार्य न दूजा भाता है,
न औरों का सम्मान करें ,
कमजोरों का अपमान करें।

उल्लू नजरें है जिनकी औ,
गीदड़ के जैसा है आचार,
छली प्रपंची लोमड़ जैसे,
बगुले जैसा इनका प्यार।

कौए सी है इनकी वाणी,
करनी है खुद की मनमानी,
डर जाते चंडाल कुटिल भी ,
मांगे शकुनी इनसे पानी।

संचित करते रहते ये धन,
होते मन के फिर भी निर्धन,
तन रुग्ण  है संगी साथी ,
पर  परपीड़ा के अभिलाषी।

जोर किसी पे ना चलता,
निज-स्वार्थ निष्फलित है होता,
कुक्कुर सम दुम हिलाते हैं,
गिरगिट जैसे हो जाते हैं।

कद में तो छोटे होते हैं ,
पर साये पे हीं होते है,
अंतस्तल में जलते रहते,
प्रलयानिल रखकर सोते हैं।

गर्दभ जैसे अज्ञानी  है,
हाँ महामुर्ख अभिमानी हैं।
पर होता मुझको विस्मय,
करते रहते नित दिन अभिनय।

प्रभु कहने से ये डरता हूँ,
तुझको अपमानित करता हूँ ,
इनके भीतर तू हीं रहता,
फिर जोर तेरा क्यूँ ना चलता?

क्या गुढ़ गहन कोई थाती ये?
ईश्वर की नई प्रजाति ये?
जिनको न प्रीत न मन भाये,
डर की भाषा हीं पतियाये।
  
अति वैभव के हैं जो भिक्षुक,
परमार्थ फलित ना हो ईक्छुक,
जब भी बोले कर्कश वाणी,
तम अंतर्मन है मुख दुर्मुख।

कहते प्रभु जब वर देते हैं ,
तब जाके हम नर होते हैं,
पर है अभिशाप नहीं ये वर,
इनको कैसे सोचुं ईश्वर?
  
ये बात समझ ना आती है,
किंचित विस्मित कर जाती है,
क्यों कुछ नर ऐसे होते हैं,
प्रभु क्यों नर ऐसे होते हैं?

अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवि को ज्ञात है कि ईश्वर हर जगह बसता है. फिर भी वह कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में आता है , जो काफी नकारात्मक हैं . कवि चाह कर भी इन तरह के लोगों में प्रभु के दर्शन नहीं कर पाता . इन्हीं परिस्थियों में कवि के मन में कुछ प्रश्न उठते हैं , जिन्हें वो इस कविता के माध्यम से ईश्वर से पूछता है .
मौजो से भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम,
खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम।


किनारों पे चलना है ,
आसां बहुत पर,
गिर के सम्भलना है,
आसां बहुत पर,
डूबे हो दरिया जो,
मुश्किल हो बचना,
तो खुद हीं बाहों के,
सहारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम।


जो चंदा बनोगे तो,
तारे भी होंगे,
औरों से चमकोगे,
सितारें भी होंगे,
सूरज सा दिन का जो,
राजा बन चाहो,
तो दिनकर के जैसे,
अंगारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


दिवस के राही,
रातों का क्या करना,
दिन  के उजाले में,
तुमको है  चढ़ना,
सूरजमुखी जैसी,
ख़्वाहिश जो तेरी
ऊल्लू सदृष ना,
अन्धियारे बनो तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


अभिनय से कुछ भी,
ना हासिल है होता,
अनुनय से  भी कोई,
काबिल क्या होता?
अरिदल को संधि में,
शक्ति तब दिखती,
जब संबल हाथों के,
तीक्ष्ण धारें बनों तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


विपदा हो कैसी भी,
वो नर ना हारा,
जिसका निज बाहू हो,
किंचित सहारा ।
श्रम से हीं तो आखिर,
दुर्दिन भी हारा,
जो आलस को काटे,
तलवारें बनो तुम ।
मौजो  से  भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम।


खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
फिल्म वास्ते एक दिन मैंने,
किया जो टेलीफोन।
बजने घंटी ट्रिंग ट्रिंग औ,
पूछा है भई कौन ?

पूछा है भई कौन कि,
तीन सीट क्या खाली है?
मैं हूँ ये मेरी बीबी है और,
साथ में मेरे साली है ।

उसने कहा सिर्फ तीन की,
क्यूं करते हो बात ?
पुरी जगह ही खाली है,
घर बार लाओ जनाब।

परिवार लाओ साथ कि,
सुनके खड़े हो गए कान।
एक बात है ईक्छित मुझको,
  क्षमा करे श्रीमान।

क्षमा करे श्रीमान कि सुना,
होती अतुलित भीड़।
निश्चिन्त हो श्रीमान तुम कैसे,
इतने धीर गंभीर?

होती अतुलित भीड़ है बेशक,
तुम मेरे मेहमान।
आ जाओ मैं प्रेत अकेला,
घर मेरा शमशान।

अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित
पुराने जमाने में टेलीफोन लगाओ कहीं और थे , और टेलीफोन कहीं और लग जाता था . इसी बात को हल्के फुल्के ढंग से मैंने इस कविता में दिखाया है.
Bhakti Dec 2017
||पुत्रवती भवः||
वो मासूम अक्सर पूछा करती थी
क्या लड़कियाँ ईश्वर को भी नापसंद है
जो यही कहते है .....पुत्रवती भवः
और मैं हस कर उसे गले से लगा लेती

वक्त गुजरा ओर उड़ने को बेताब थी वो
अंधियारों में नजर आती मेहताब सी वो
कुछ कर गुजरने की चाहत उसकी आखो में बसती थी
की नजारे जुदा होते थे जब वो नन्ही मासूम हँसती थी

पर जिंदगी को उससे कुछ और ही मंजूर था
सोचती हूँ आज भी की उसका क्या कुसूर था
की जी भी कहा पाई थी वो तेरी दी हुई जिंदगी खुदा
इस तरह तो ना करता तू उसे हमसे जुदा

की रात के अंधेरो में इस तरह नोचि गई
दे दुहाई भगवान की हर जख्म पर रोती गई
दया ना आई जालिमो को ना रूह कपकपाई
तड़पी बेतहाशा कितना चीखी चिल्लाई
लड़ी कुछ दिन जिंदगी से , ओर एक दिन थक गई
अलविदा किया और खुदा के मुल्क में बस गई

जाते हुए मेरा हाथ थाम एक ही बात बोली थी
की आज समझ आया कि क्यों कहते है

पुत्रवती भवः....................
Shivam Porwal Dec 2017
Me bhi tumhari tarah 1 aam insaan hu
Pareshaniya mene bhi dekhi hai, takleefe mene bhi sahi h
Kuch waqt k liye khud Ko kamzor bhi paya hai
Mera bhi man mushkilo ko dekhkar ghbraya hai,

Par inhi sab chizo se 1 tajurba paaya hai
Jisne Zindagi ko jeena ka 1 naya rang sikhaya hai

Sangharsh aur musibatein to jivan ka ek hissa hai
Aage bhi badna hai sangharsh bhi nahi krna hai ye to galat kissa hai

Sangharsh ke bina tajurba kaha se laoge
Aur tajurbe ke bina kya sikhoge aur sikhaoge

Ab waqt aa gaya hai tumhe himmat dikhani hogi,
Apni kathinaiyo par apni asfaltao par tumko Vijay Pani hogi
Apne irado ko or majbut banana hoga
Kuch karna hai kuch karna hai in jazbato ko dil me utarna hoga

Ye zindagi ki ladai hai tumhe khud hi ladni hogi
Apni kamiyo ko taqat banane ki kala tumhe sikhni hogi
Tum chaho to duniya jeet skte **
Apne har sapne ko haqueeqat me badal skte ** !!! :)
An inspiration poem which inspires to fight with the conflicts
abhi- abhi ek geet racha hai tumko jeetey jeetey
abhi abhi amrit jhalka hai amrit peetey peetey
abhi abhi saaso me utri hai saaso ki maaya
abhi abhi hoto ne jaan aapna aur paraya
abhi abhi essas hua jeevan jeevan botta hai
kudh ko shunney banana bhi kita virat hota hai
toh abhi abhi, ji abhi abhi, haan abhi abhi, bus abhi abhi
abhi abhi bhar diye madhukalash saary reete reete
abhi abhi amrit jhalka hai amrit peetey peetey
abhi-abhi ek geet racha hai tumko jeetey jeetey
abhi abhi amrit jhalka hai amrit peetey peetey
toh abhi abhi, ji abhi abhi, haan abhi abhi, bus abhi abhi
abhi abhi samvaad hue hai chaho me aaho me
abhi abhi chandni khuli hai amber ki baaho me
abhi abhi peeda ne khoja sukh ka raen basera
abhi abhi hum hokar peegla sabkuch tera mera
toh abhi abhi, ji abhi abhi, haan abhi abhi, bus abhi abhi
abhi abhi bhar gaya samandar nadiya peetey peetey
abhi-abhi ek geet racha hai tumko jeetey jeetey
abhi-abhi ek geet racha hai tumko jeetey jeetey
abhi abhi amrit jhalka hai amrit peetey peetey
Copyright© Shashank K Dwivedi

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Seema Aug 2017
Kya kabhi patharo ne siskiyan li hai?
Kato ne chubna chor diya?
Dil ne dhadakna;
Aur ankho ne barasna chor diya?

Kya kabhi kadi dhoop mei,
Indradhanus ko haste huwe dekha hai?
Iss duniya mei,
Insaano ko ladtey aur marte dekha hai?

Kya tumne kabhi socha hai,
Jiwan mei dukh ziyada aur khushi kam kiyu hai?
Rastey sabh seedhe nahi,
Tedhe rastein bhi manzil ke kareeb le jati hai.

Kya tumne kabhi rotey huwe buzurgh ko,
Aur besahara bacho ko dekha hai?
Apni unchi naak, neechi kar,
Dharti mata ko dhanayvad diya hai?

Nahi na! Ya sambhawna kuch toh kiya hoga.
Ya tumhare dil mein daya hi nahi.
Kya muskurana bhi bhool chuke **?
Apne nahi toh dusroh ke liye kuch kiya karo.

Zindagi ke akhari pal mei, yaad karo ge.
Ek ek din ankho ke samne daud ke jayengi,
Tabh tum yaad karte, muskhurate iss duniya se,
Hamesha ke liye alvida kahe jaoge...



©sim
TRANSLATED

*Do Something Good*
Do the rocks ever sob?
Or the thorns stopped to *****,
The heart left it's beat ;
And these eyes forgot to rain.

Has there ever, in a bright sun,
The rainbow came out smiling?
In this world,
Have you seen people fighting and dying?

Have you ever thought,
In life, why there is more sadness then happiness?
Not all roads are straight,
Crooked roads also lead you to your destination.

Have you ever seen an old man cry,
Or seen unassissted special kids?
Have you ever bowed your head,
To thank this mother earth?

No, isn't it! Or say may have done some.
Or is your heart dead on remorse.
Have you also forgotten to smile?
If not for you, atleast do for others.

In the last hours of life, you will remember.
Each day would run off infront of your eyes,
Then remembering and smiling, from this life,
Forever you'll wave goodbyes...

#unrhymed
©sim

— The End —