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MAI BAHV SUCHI UN BHAVO KI
JO BIKE SADDA HI BIN TOLE
TANHAI HU HAR US KHAT KI  JO
JO PADHA GYA HAI BIN KHOLE

HAR AANSU KO HAR PATTHAR TAK
PAHUNCHANE KI LACHAR HUK
MAI SAHAJ ARTH  UN SABDO KA
JO SUNE GYE HAI BIN BOLE

JO KABI NAHI BARSA KHUL KAR
HAR US BADA L KA PANI HU
LAV-KUSH KI TEER BINA GAYE
SITA KIA RAM KAHANI HU

MAI BHAV SUCHI UN BHAVO KI.
............

KI JINKE SAPNO KE TAJ MAHAL
BAN NE  SE PAHLE TUT GAYE
JI HAATHO ME DO HAATH KABHI
AANE  SE PAHLE CHUT GYE
DHARTI  PAR JINKE KHONE AUR
PAANE KI AJAB KAHANI HAI
KISHMAT KI DEVI MAAN GYE
PAR PRANAY DEVETA RUTH GYE

MAI MAILI CHADAR WALE US
KABIRA KI AMRIT VANI HU
LAV-KUSH KI TEER BINA GAYE
SITA KKI RAM KAHANI HU

KUCH KAHTE HAI MAI SEEKHA HU
APNE JAKHMO KO KHUDSEE KAR
KUCH JAAN GYE MAI HASHTA HU
BHEETAR BHEETAR ANSU PEEKAR

KUCH KAHTE HAI MAI HU VIRODH SE
UPJI EK KHUDAAR VIJAY
KUCH KAHTE HAI  MAI MARTA HU
KHUD ME JEEKAR  KHUD ME MARKAR
LEKIN MAI HAR CHATURI KI
SOCHI SAMJHI NADANI HU
LAV-KUSH KI TEER  BINA GAYE
SITA KI RAM KAHANI HU...

WRITTEN BY   ::::::  SHASHANK KUMAR DWIVEDI
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
...
While
Warm water as the geyser
Gives the skin a new taste
After the sudden rain
The sun peeped behind the clouds
As if a fire peaks in the red flamboyant forest
Then purple flowers of Jarul's
Silently washing the suffering of long pain
Worship to God with drunk
Late afternoon in front of the house of crow
Cuckoo calls repeatedly,
Wings fluttering,
Not unnecessarily
She searches her left offspring
Alongside a small river (Kumar) flows
Small dazzling waves,
With a Cold gentle breeze
Flows over my sweet sweat
Ah! Another form of Heaven
Seduced far away from the darkness
Furious within a dream,
I bathe
...
@Musfiq us shaleheen
**** Late Spring********* The Nature as we feel.........

....if like please share your comments.....
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
JISKI DHUN PAR DUNIA NAACHE ,DIL AISA EK TARA HAI
JO HUMKO BHI PYARA HAI AYR JO TUMKO BHI PYARA HAI
JHUM RAHI HAI SAARI DUNIA JABKI HUMARO GEETO PAR
TAB KAHTI ** PYAR HUA HAI  KYA EHSHAN TUMHARA HAI

JO  DHARTI SE MABAR JODE USKA NAAM MUHABBAT HAI
JO SEESHE SE PATTHAR TODE USKA NAAM MUHABBAT HAI
KTARA*2 SAGAR TAK ** JATI HAI HAR UMR MAGAR
BAHATA DARAIA WAPAS MODE USKA NAAM MUHABBAT HAI

PANAHO ME JO AAYA ** TO USPE WAR KYA KARNA ?
JO DIL HARA HUA ** USPE FIR ADHIKAR KYA KARNA ?
MUHABBAT KA MAZA TO DUBANE  KI KASHMKASH ME HAI
JAB ** MALUM GAHRAI TO DARIA PAAR KYA KARNA

BASTI BASTI GHOR UDASI  PARVAT PARVAT KHALIPAN
MAN HIRA BEMOL BIK GAYA GHIS GHIS REETA TAN CHANDAN
IS DHARTI SE US AMBAR TAK DO HI CHEEJ GAJAB KI HAI
EK TO TERA BHOLAPAN HAI EK MERA DEEWANAPAN

TUMHARE PAAS HU LEKIN JO DURI HAI SAMAJHTA HU
TUMHARE BIN MERI HASTI ADHURI MAI  SAMAJHTA HU
BAHUT BIKHARA BAHUT TUTA THAPEDE SAH NAHI PAYA
HAWAO KE ISHARO PAR MAGAR MAI BAH NAHI PAYA
ADHURA ANSUNA HI RAH GAYA YU PYAR KA KISSA
KABHITUM SUN NAHI PAYI KABHI MAI KAH NAHI PAYA...

WRITTEN BY  : SHASHANK KUMAR DWIVEDI
                                          1993shashank@gmail.com (FACEBOOK)
उनको पूजु है मन अब मेरा हो रहा
जन्म दाता है जो , जन्म जिसने दिया
है वो नर,
पर नारायण सा लगने लगे ।
सोये हम इसलिए जब वो जगने लगे ।
माँ पिता के कई रूप अंजान है
मै पुजारी हूँ
वो मेरे भगवान है ,
इस जहाँमे कोई पुष्प
है ही कहाँ ,
इनके चरणों में जो लाके
मै डाल दू ॥

मेरा तन मन समर्पण
मेरी आतमा,
जिसको चाहो चूनों अब
मेरी भोली माँ

मेरे पापा ,
मै बालक
कहूँ और क्या ??
रक्त हर तरल
आपके पग धरू ॥

जन्म दाता,
ये भी भेट कम लग रहा
पर मै हूँ बालक तुम्हारा
करू और क्या ??

तुझ को पूजु है मन, अब मेरा हो रहा
जन्म दाता है तु, जन्म तुमने दिया ॥

सूरज कुमर सिहँ

दिनांक – 21 – 07 - 2015
Kuzhur Wilson Jun 2014
While walking hither and thither
Thinking that tonight, the world will set,
While lying , wondering what to do now,
A headache will come in an autorickshaw
The dinner will be skipped
But what stung will not be a comparatively harmless water snake
That viper will sting
during nightly dreams
Again and again
O my! I am dead!

Then ammini, lying nearby
Will cry once,
Assuming “Oh, oh, father is gone”
While I look thinking that she cried in her sleep
Lo! She will smile
Thereupon, outside,
A full moon will laugh with her

That smile is enough
To lose sleep
Then I will get up,
Go out
While I walk hither and thither
Through the full moon’s laughter,
On the Devil Tree in the yard,
A Yakshi will cry and laugh

Then I will get tired
Duly I will come inside and lie down to sleep
The world I thought had set
Will rise in the east
Then what do I do?
Was it me who died yesterday
Or
Someone else we thought of?


(Salim Kumar , An actor)
Translated by: Anita Varma.
DEAR                                                                                                                                  

GALTI MERI  THI
USNE MUJHE CHAHA HI NAHI
MAI CHAHAT SAMAJH BAITHA
GALTI MERI THI

USKI PAL BHAR KI MUSKURAHAT KO
PYAR SAMAJH BAITHA
GALTI MERI THI

WO TO HAR BAAT PAR HAA KARTI THI
MAI HI  IQRAR SAMAJH  BAITHA
GALTI MERI THI

USNE MUJHSE JYADA AHMIYAT DI MERE DOSTO KO
MAIN USKI YE AADDA MAJAK SAMAJH BAITHA
GALTI MERI  THI

USNE KAHA V THA
KOI AUR HAI USKI ZINDGI ME
MAI HI KHUD KO USKI
ZINDGI SAMAJH BAITHA......

GALTI MERI THI
..............
........
....



             WRITTEN BY    :  PANKAJ KUMAR RAI  (BABA)
-: कहानी बने ?? :-

हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

मैं तड़पता रहु,
तुम तड़पती रहे
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बने !!

मेरी यादों मे तुम
युं न आया करो
मै कहीँ ?? पर रहूँ
मन कहीँ पर रहे ॥


तेरे बिन मेरी हालत है
कुछ ईस कदर
मीन जो रेत पर
जल बिना हि रहे  !!

मेरी ख्वाबों मे दस्तक
दिया आपने
कि लगा लखों परीयाँ,
मुझे मिल गई ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
तब लगा निंद मुझको
था कितना हंसी ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहनी बने ??


फिर से मैं सो गया,
ख्वाब देखुं तेरी
ख्वाब मे हीँ मुझे
गुद गुदी हो गई !!

तेरी यादो में मैं
कुछ यूँ खोया रहूं !!
मेरा मन है कहीं
तन कहिं पर रहें ??

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥


हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 10 / 2014
-: मै मीनाक्षी :-

मै मीनाक्षी ,
भयभीत हूँ , मौत के बाद भी
मौत का द्रिष्य,
अद्भूत नजारा था,
गैरों के लिये !!

पापा,
मै अब नही,
संभाल लेना खुद को ,
बस आप ही , अब माँ का
सहार हो !!

माँ मुझे आंचल से झाप देती
घर से चौक की दूरि पैदल ही नाप लेती,

मै बहुत कुछ करना चाहती थी
पापा को कैंसर है
ये गम तो, पहले ही मार डाला था
पर आपके लिये
हर रोज मरना चाहती हूँ !!

पाँच दिन का जोब
कहाँ कुछ कमा पाई थी
पापा मै आप को बचालूगी
बस ये दिलासा दिला पाई थी !!

तब तक मुझ पर
चकूओं का 35 वार,
माँ,
लगा सब चुट रहा था
हर चोट के साथ
कई सपना टूट रहा था !!

माँ – पापा आपकी याद आ रही थी ,
आप दोनो कि चिन्ता
मैत से पहले मारी जा रही थी !!

पापा,
मै मर कर भी जिन्दा रहना चाहती हूँ
आप कि सेवा करना चाह्ती हूँ ,
पर ये हो नही सकता,
पर आपकी चिन्ता
मुझे अब भी सताती है !!
पापा क्या आपको मेरी याद आती है ??

मेरे सपने , मेरी जिन्दगी
सब सीमटती जा रही थी
तब भी मुझे मेरी गलती
न याद आ रही थी !!
किस गुनाह का ये सजा थी
क्या लड्की होना,
इतनी बडी गुनाह थी !!

अगर हाँ,
तो मै फिर ये गुनाह करना चाहती हूँ !!  

- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक - 19/ 07 / 2015
!! कई दिनों के बाद !!
.
कई दिनों के बाद कलम ने
परिचित सा व्यहार किया
कई दिनों के बाद कलम ने
है खुद को सृगार किया !!
.
कई दिनों के बाद कलम ने
सूरज तुझे बुलाया है ?
.
कई दिनों के बाद कलम
कुछ परिचित प्रश्न उठाते है
कई दिनों के बाद कलम ने
दर्पण सा व्यहार किया !!
.
प्रश्न कलम के लाखो है
पर मै किस पर बिचार करुं
जतीबाद पर लिखूँ
या मै नारीबाद पर वार करुं !!
.
राजनिती के इन मुद्दो पर
श्याही नही बहाऊँगा
राजनिती के कुछ मुद्दो को
राष्ट्रवाद तक लाऊँगा !!
.
- सूरज कुमार सिँह
01-11-2016
After long time my pen treated me as a known,
After long time my pen Reacts as a Mirror !!
Few Lines Of My New Poem....
नारी के स्म्मान मे

द्रोपदी के चिर हरण से
परिचित कौन नही होगा ?
जहाँ रणों के रणबाँकुर थे
शब्दहीन, थे मौन मौन !!

मान हरण की वही प्रथा
मानो UP दुहराती है !!
लखनऊ के चौराहे मानो
कुरुओं कि है राजमहल,

राहधानी के चौराहो पर
भीड जमाया जाता है
सरे आम यूँ नारी को
जंघे पे बुलाया जाता है,

क्षमा करें,
ईस कलम को तब बेशर्म
होजाना पडता है !!
राजनीती जब नारी को
सरेआम वैश्या कहता है !!

पर,
नारी को स्म्मान दिलाने
दुर्लभ योधा आये है,
12 साल की बची को भी
कामूक स्वर मे बुलाये है !!

इतने पर भी पूर्ण व्यवस्था
मौन दिखाई पडता है,
कई पितामह , कई कर्ण ,
कई द्रोण दिखाई पडता है !!

अर्जुन के गाँडिव भी लगता
चीर हरण मे सामील है
भृकोदर का बली गदा की
दुर्योदन से सन्धि है,
कलियुधिष्ठिर के धर्मो पर
सत्ता कि परछाई है !!
है लगता मानो चीर हरण में
सामील सारे भाई है ।

कितने वीरों की सूची –
तैयार करुँ बतलाने को ??
जो बात – बात पर आते थे,
अपना स्म्मान लौटाने को

कलम मेरी,
है पुछ रही ?
क्या वो अब भी जिन्दा है
थे बढी तमासा किये कभी
शायद उसपर शर्मीन्दा है ??
नारी हित की बातें अब
बस बातों मे ही जिन्दा है,

देख दुर्दशा नारी की,
कलम मेरी शर्मीन्दा है !!
बस है कवियों से पुछ रही,
क्या ? पत्रकारीता जिन्दा है ?
बस जिन्दा है ?
राजनीती की ईस नीती से
UP मेरी शर्मीन्दा है !!
अब भी ये सब थमा नहीं तो,
कलम मेरी मर जायेगी
पन्ने को कर अग्निकुंड
जौहर अपना कर जायेगी !!

- सूरज कुमर सिहँ
26th  Jul  2016
poem on female

— The End —