आज तुम्हारे शहर में बारिश है,
और पहली बार उसी वक़्त मेरे शहर में भी,
इस बारिश का जादू कुछ इस क़दर हुआ,
मानो दोनों शहर अब एक ही हैं.
ना दूरी की , ना वक़्त का फ़ासला रहा.
पर दो मकानों के दो कमरों में सिमटे
हम दो लोग.
भीगे इस बारिश की बूंदों में
जो अब तक खिड़की के बाहर थी,
अलग अलग शहरों की.
उस तड़प का, उस विलाप का
यह कोई उपाय तो नहीं,
पर एक जैसे एहसास का उमड़ना
काफ़ी है.
एक सी मिट्टी की महक़, और बारिश का शोर.
अब जैसे मैं अनायास ही तुमसे कहता हूँ, की
फिर जब मैं तुमसे मिलूं
तुम बारिश लेके आना.