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 Aug 2014 Krishna
Chitvan Sharma
नन्हे कदमों से जब तू मेरे जीवन में आई
मेरे आँगन की हर कली मुस्कुराई
जब तूने माँ कह के पहली बार पुकारा था
वो हसीन पल भूल जाऊँ कैसे ?

तेरी किलकारी से गूँज उठा मेरा जीवन
तेरे नर्म हाथों का स्पर्श, तेरी चंचल चितवन
रातों को जाग के जब तुझे सुलाया था
वो लोरी अब दोहराऊं कैसे ?

तेरी आँखों में ख़्वाब सजने लगे थे
भरने को उड़ान पंख बढ़ने लगे थे
तुझे ऊँचा उड़ता देख जब मन हर्षाया था
वो खुशी सबको दिखाऊँ कैसे ?

काम में जब जब तू मेरा हाथ बटाती
मेरी खुशियाँ दोगुनी हो जातीं
जब बना कर हलवा तूने पहली बार खिलाया था
वो क्षण आँखों हटाऊँ कैसे ?

एक दिन तुझे डोली में बैठ अपने घर जाना है
अपनी नयी दुनिया, नया संसार बसाना है
ये ख़याल जब जब मन में आया था
उन सिसकियों की आवाज़ छुपाऊँ कैसे ?

आज तू घर से निकल कर जाती है
मेरा चैन, मेरी नींद मानो उड़ जाती है
पढ़ती हूँ खबरें अख़बारों में
डरता है दिल, रूह काँप जाती है
एक ओर देवी की पूजा करते हैं लोग
और वहीं एक नारी की इज़्ज़त हरते हैं लोग
सबकी आँखों में बसी दरिंदगी मिटाऊँ कैसे ?
बे-रहम इस दुनिया से तुझे दूर ले जाऊँ कैसे ?
हर माँ का दिल रो रो के कहता है
अपनी लाडो की लाज बचाऊँ कैसे ?
ये दुःख, ये पीड़ा ज़ुबाँ तक लाऊँ कैसे ?
I don't know how it feels like to be a mother. But the seed of motherhood was sown when I was just 17. My love for my child is ineffable and she would be the most awaited gift of my life.
 Aug 2014 Krishna
Chitvan Sharma
I'd rather be
less opportune
than being
your sycophant
Because
its not  you
Who is the author
of my story.
I'd rather
walk alone
than being a part
of this blind haste
Because
its not  them
Who is the arbiter
of my struggling journey.
I'd rather fly far
than flying high
Because now
its me
who is the ruler
of my destiny.

— The End —