मधुवन, आसमा , पर्वत, सागर
खुस कहाँ हे सारी दुनीया
जोगी हे मगर हे मनका व धनी
हेगा न कोइ उसका जैसा
जोगी बनके लो दिखादो —२
मे करु तुम्हे सलामी
ज्ञान होके नही सिखाया
बन न सका मे ज्ञानी
लगाके चन्दन रखा फिर दाह«ी
पर बन नसका मे जोगी
जोगी बनके लो दिखादो
मे करु तुम्हे सलामी
चाहत अनेक बाकी हे अभी
रहेने न सका मे भोगी
शान्ति नही मनहे चनचल
ध्यान नही मेरे बसमे
जेगी बनके लो दिखादो
मे करु तम्हे सलामी
भूखका आँगसे पेटहो खाली
आज बनगया मे भिखारी
पर बन न सका मे जोगी —२
जोगी बनके लो दिखादो
मे करु तुम्हे सलामी
लगाके चन्दन, रखा फिर दाह«ी
पर बन न सका मे जोगी
बन न सका मे जोगी —३
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