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Bhakti Jul 2018
बरसाती है नयन घटा , अम्बर जयकार गाता होगा
लहू से सींची माटी का ,सीना चौड़ा हो जाता होगा

टूटती होगी चूड़ियाँ पर,आँखो से गर्व झलकता होगा
पिता के साये से जुदा,बचपन कोने में तड़पता होगा

हाथ जोड़े ईश्वर राह पर खड़ा अश्रु बहाता होगा ।
जब माँ का वीर लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

होली के रंगों के बीच ,वो घर बेरंग रह जाता होगा
अंधियारी होती दीवाली,जो चिराग बुझ जाता होगा

खेलने की उम्र में पिता की अर्थी उठाता होगा ।
श्रृंगार करता वो हाथ जब सिंदूर मिटाता होगा ।

चीखती भारत भूमि , रक्त से आँचल नहाता होगा ।
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

बूढ़ी माँ जब संतान की अर्थी को सजाती होगी ।
पुत्र को पिता अग्नि दे नीरस लड़खड़ाता होगा ।

क्या तब भी नेताओँ का दिल नहीं पिघलता होगा
क्या तब भी सवालों का सिलसिला नहीं थमता होगा।

इस गम में शैतान भी,श्रण भर शीश झुकाता होगा
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा.......
May 2018 · 233
pain
Bhakti May 2018
अंजान बने , खामोश सब सहते रहे ।
शायद मेरे अश्कों से सुकून नसीब हो उन्हें ,
ये सोच बेपनाह वो पलकों से बहते रहे ।
वो खंजर से रूह जख्मी कर रहे मेरी ,
हम हार कर दुनियाँ को देख हसते रहे....
May 2018 · 377
Luck
Bhakti May 2018
सूखा , बंजर पड़ा है नसीब मेरा ,
नेमत की बूंदों से नियति भीगा दे .।

तृषित तकदीर मेरी कराहती बरसों से ,
उम्मीद के नीर का स्वाद चखा दे ।

लिख मेरी किस्मत में सुकून को ऐ खुदा ,
या बुलाके तेरे आशियानें में ,
जन्नत से रूबरू करा दे ।
May 2018 · 298
Maharana Pratap's Birthday
Bhakti May 2018
शिरोमणि , मातृभक्त , शूरवीर , सिसोदिया वंश के युवराज थे ।
किया समर्पित तन , मन , धन ऐसे महाराणा प्रताप थे ।

लोभ , मोह , भोग , विलास सब छू भी ना उनको पाता था
स्वाभिमान देख उनका पाषाण भी शीश झुकाता था

घर , परिवार , आराम का विचार भी ना हृदय तक आता था
इतिहास का वो पन्ना भी सम्मान से लिखा जाता था

काली मुगलिया छाया में वो उजले प्रभात थे
मातृभूमि के तेजस्वी पुत्र वो महाराणा प्रताप थे

चुनी घास की रोटियाँ , महलों का 56 भोग ठुकराया
तिलक किया मातृभूमि को लहू से , विजय पताका फहराया

हाथ जोड़ नतमस्तक है धरती का हर एक कण
धरती माँ तेरे नाम किया जीवन का हर एक क्षण

हीरे जवाहरात कब भाये पहने स्वाभिमान का ताज थे
रक्त से लिखी स्वयं की गाथा वो महाराणा प्रताप थे
वो महाराणा प्रताप थे
May 2018 · 246
कत्ल
Bhakti May 2018
कत्ल किया है मुजरिम हूँ ??
ना कोई शिकंज ना कोई ग्लानी
जानती हूँ ना कानून है इसका ना  सजा-ए-मौत का ख़ौफ.....

कत्ल हुए है मेरे जज़्बात, मेरे अरमान मेरे ख्वाब
कत्ल किया है मुजरिम हूँ.....
Apr 2018 · 231
जोहर
Bhakti Apr 2018
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
अग्नि के पावन तेज से ये जिस्म जला देते है

कोई भाई हमें उस नर्क के दर्द से बचाने ना आ पायेगा।
खोफ का ये मंजर अब नहीं सहा जाएगा ।
रूह कांप रही है सोच कर कैसे जुल्म अबलाओं ने झेला होगा ।
सतीत्व के साथ नीचों ने हस हस के खेला होगा ।

उम्मीद मर गई है मेरी इंसाफ और कानून से
हर चोखट की इज़्ज़त को राजनीति में उछाला जाएगा।

कुछ दिनों का किस्सा बन कर ये भी भूली बात होगी ।
ये लिखावट भी किसी भयानक दर्द की राख होगी ।
नहीं कर सकती अब कोई माँ बेटी की आबरू का बलिदान
नहीं बन सकती अब कोई लड़की बदले का , हवस का सामान ।

खोफ से सनी रातों को अब ना ख्वाबों में देखा जाएगा
सुनों मेरी अब हमें बचाने नहीं कोई कृष्णा आएगा

आखरी श्रंगार कर मोत का मजा लेते है ।
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
Bhakti Apr 2018
Inspired from Punit Raja...
खामोश था वो कमरा , एक टेबल ,कुर्सी ओर खिड़की थी जहाँ से सूरज की हल्की हल्की रोशनी सामने रखे काँच को छू कर कुछ समा रोशन कर रही थी , सन्नाटे में पंखे की आवाज का हल्का खलल नादान गुस्ताखी की तरह नजर आ रहा था ।
मैं वहां कुछ वक्त अपनी तन्हाइयो के साथ बिताने बैठ गई , आँखे मूंदे हुए मैं खुद से कुछ सवाल जवाब की मन्शा में थी ।
जिंदगी का एक बड़ा सफर बिताने के बाद ये वक्त था जहाँ में अपने हर दर्द की एहमियत जान सकू ।
सामान्य इंसानो की तरह मेरी जिंदगी भी कई जख्मो , अश्कों से हो कर गुजरी थी ।

स्वतः आज मन ने हर जख्म के आलंकन की ठानी सूची बनाते हुए मेने एक एक कर अपने हर दर्द से रूबरू हो उनकी पीड़ा सुनी ।

गरीबी का दर्द , अपनो के खो जाने का दर्द , इश्क का दर्द , आत्मसम्मान का दर्द ........
बेशक ये हर दर्द अपने आप मे भीषण जख्म का सैलाब है , पर उनसे मुलाकात के बाद मेने आत्मसम्मान , स्वाभिमान खो जाने के दर्द को सर्वोपरि जाना........ पर क्यों ???

की वक्त नही रुकता किसी के लिए ओर कोई नही रुकता वक्त के लिए अतः किसी को खोना इश्क में या जीवन मे भुलाया तो नही पर धुँधला सकता है
जख्म मिट तो नही सकता पर भर सकता है

धन संपदा तो हर महापुरुष के लिए निर्मूल्य है।
परंतु जो स्वाभिमान मार दिया जाए तो शरीर जीता है , हर रोज अपनी आत्मा को छलनी कर के ,
हर दिन रक्त की एक ओझल बून्द शरीर का त्याग करती है ।
जैसे रूह स्वयं का गला दबा मृत्यु की के समक्ष गिड़गिड़ाती हो , ओर मोत मुस्कुरा कर सामने से गुजर जाती हो ......
की याद करो उन वीरो को जो स्वतंत्रता , आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कफन शीश पर ओढ़े निकल जाया करते थे , क्या उन्हें नही चाहत थी धन की , मोहोब्बत की , अपनो की ?
पर शायद उन्होंने अपना स्वाभिमान छलनी होते देखा होगा और उनकी रूह ने दुत्कारा होगा कई मर्तबा...
परंतु अगर ये शाश्वत है कि स्वाभिमान सर्वोपरि है , तो कैसे हमारा जीवन शोभनीय है ?
जहाँ हमारे देश मे परदेश के जिंदाबाद के नारे लगाए जाते है और हम सुन कर चेन से सो जाते है ।
हमारी स्त्रियां बेआबरू हो जाती है और हम पन्ना पलट कहते है ये किस्से रोज आते है ।

की हम की आपने देश को आग में धकेल कर धरने ओर मानवता का नाम देते है
शिरोमणि है देश उसके बाद धर्म फिर धर्म के नाम पर अपनी धरती का आँचल खून से सना देते है
क्या हमारी आत्मा चीखती नही या मार दिया है हमने ही उसे निर्दयता से

इस भीषण द्वंद से कपकपा कर मेरी आँखें खुली
शरीर पसीने से युक्त , काँपते हुए हाथ .....
ये मेरी रूह थी जो मुझसे मेरे स्वाभिमान , मेरे देश का सम्मान मांग रही थी ....

और आपकी रूह क्या माँगती है आपसे ????
Apr 2018 · 222
अश्क
Bhakti Apr 2018
आँखों मे आ गया पर छलका नहीं ।
ठहर गया दो पल पलकों पर ,
हूँ बस पानी पर हल्का नहीं ।

रुका में की नजर ना आये दर्द उसका भीड़ को ।
पर भीतर आये सेलाब ने सब्र को झंजोड दिया ।
कई मर्तबा जुंझा में उसकी इस कशमकश में...
कई दफा उसने मुझे मुस्कुरा कर पी लिया ।

अबके जो पलकों पे आया तो रुका भी ,
सोच कर दुनिया का ये अश्क थोड़ा सूखा भी ।
ना कुसूर ना आदत उसकी तकदीर में था सहना ।
करता भी क्या मामूली अश्क हूँ ,
मेरी नियति है फकत बहना ......
Apr 2018 · 211
words
Bhakti Apr 2018
स्याही बेताब है कलम पाने को पर
अश्क इतने है कि शब्द नजर नहीं आ रहे ।
जस्बात माकूल है बेशक जताने को पर
दर्द इतने है कि लफ्ज़ सम्हाले नहीं जा रहे ।
Bhakti Mar 2018
तन्हाई में कुछ पल...
खुद को हँसाना चाहती हूँ ।
बंद कमरे में सन्नाटे में क्यों भीड़ का शोर हैं ।
मेरे दर्द की हर चीख़ को कुछ पल दबाना चाहती हूँ ।
जो बीत गया के जख्मों से रूह लहूलुहान हैं ।
वक्त के उस दौर को कुछ पल भुलाना चाहती हूँ ।

मैं अपनी रूह के साथ कुछ वक्त बिताना चाहती हूँ ।
Mar 2018 · 208
Emotions
Bhakti Mar 2018
कई मर्तबा सोचा , लफ़्ज़ों से मुलाकात की
बेइंतेहा गुरूर के पक्के है , जुबा तक नहीं आते
फकत इन्तेजार में लम्हे गुजरना , शायद जायस
पर दोबारा जस्बात , इश्क के इम्तेहान को नहीं जाते
मुस्कुराती जिंदगी से कुछ मसला हैं मेरा
शायद खूबसूरत लगती है , चुभती तन्हा राते
Mar 2018 · 203
Responsibility
Bhakti Mar 2018
बेहद खामोश है आज लब मेरे
लफ़्ज़ों का बवंडर जहन में उठा है
चल पड़े है कदम रोज की तरह
मेरा जिस्म कई पीछे खड़ा है
किसी जस्बात का दीदार नही मेरी आँखों मे
जिम्मेदारियों का ढेर सामने पड़ा है
Mar 2018 · 372
Life
Bhakti Mar 2018
थम जा ए जिंदगी
अभी कुछ पल जीना बाकी है
ठहर जा एक पल को जरा
कड़वे कुछ गम के प्याले पीना बाकी है

वो जब एक ख्वाब सा टूटा था
वो साथ जो छुटा था
पी लिए थे सारे अश्क जमाने की सोच कर
जी भर के वो रुआँसी पलके भिगोना बाकी है
रुक जा ए जिंदगी..........

वो हम जो रूठे थे , उनके लाख मनाने पर
आसमा पाने , छोड़ गए थे कापते हाथ गुमनाम किनारे पर
किये पर इस रूह को हर दिन तड़पाना बाकी है
रुक जा ए जिंदगी...........

अब जो धुंधला गई है आँखे
बेवफा सी नजर आती है सासे
कितना भी समेटु बिते पलो को
हाथो में रेत की तरह हर याद गुम जाती है

कुछ पल बस कुछ पल थम जा जिंदगी
वो अधूरी ख्वाहिश जीना बाकी है
थोड़ा और जीना बाकी है.....
Bhakti Mar 2018
उलझन है कि शिकायत करु भी तो किससे
ना दोष जख्म का है , ना दवा का है

बाग सजा मूढ़े ही थे , मंजिल को
तबाह हो गए हवा के रुख से
बेबस हु , गुजारिश करु भी तो किससे
ना दोष पतझड़ का है , ना हवा का है

काँटो के रास्ते तो फिजूल बदनाम थे
वो किनारे देख मांझी से बेर कर बैठे
इंसान हु , शराफत करु भी तो किससे
ना दोष किस्मत का है , ना कर्ता का है

मोहोब्बत भी की रब के सबब से
बदगुमानी सही बेहद अदब से
खामोश हु , इबादत करु भी तो किससे
ना दोष बंदे का है , ना खुदा का है

उलझन है कि शिकायत करु भी तो किससे
ना दोष जख्म का है , ना दवा का है ।
Feb 2018 · 189
TRUST
Bhakti Feb 2018
हम लहरों के साथ खेलने में मशगूल थे
पलट कर देखा तो पाया कितनी बेवफा थी वो
मेरे ही पैरो के निशान शौक से मिटाये जा रही थी
Feb 2018 · 221
valentine special
Bhakti Feb 2018
ये इसलिये नही की आज दिन है मोहोब्बत बया करने का
फकत उम्मीद हुई कि आज के दिन , इश्क की इश्क फरियाद करता होगा

सच है कि अब गैर दामन है , तेरी मोहोब्बत समेटने को
पर लगा कि मेरा साया तुझे छू के गुजरता होगा

वो जो मासूमियत ओढ़े हुए , ख्वाबो के साथ जब गहरी नींद में सोते थे
वो खूबसूरत नजारा अब किसी ओर की आँखों में संवरता होगा

सच है कि आजतक रूबरू नही मैं उस वजह से की तू चला गया अचानक
पर एक अजीब सा बेखोफ याकिन है कि तेरे दिल के एक कतरे में अब भी मेरा अश्क सजता होगा

थक कर जिस रात , एक बेमतलब , बेवजह वो पहली मोहोब्बत याद आती होगी
नर्म बिस्तर पर मेरी ही तरह तू भी सारी रात करवटें बदलता होगा
Feb 2018 · 216
कलम
Bhakti Feb 2018
मेने सुना था कि कलम की ताकत जमीर हिला देती है
जो बहे विपरीत हवा , रास्ते से हटा देती है|

तो आज लिखती हूँ ,इसी विश्वास से हर शब्द
आत्मा चीख रही , इस माटी को दे कुछ वक्त |

कैसे उठ रही, परदेश के जिंदाबाद की आवाजें
गद्दारो को कैसे देश की संतान से नवाज़े |

क्यों सो रहा है, देश का हर खोलता रक्त यहाँ
रक्त रंजीत अक्षरों से इतिहास लिखा गया जहाँ ।

इस सोच से बढ़ चली की कोई साथ दे सकता है
बड़ी शान से जवाब मिले , हम कर भी क्या सकते हैं ।
हम तो आम जनता हैं,

ये आम जनता पूरा शहर जला सकती है
ये आम जनता लाशें बिछा सकती है ।
पर जो बात आये देश की
तो ये जनता कर ही क्या सकती है।

जिस देश का हर पन्ना , वीरों के गीत गाता है,
उस धरती पर कैसे कोई परदेश की जय कर जाता है।
Tv अखबारों में जो पढ़ते हैं,                            
चंन्द लम्हो में भूल जाते हैं।
ना खून खोलता है , ना दिल दहलता है,
ना जाने कैसे चैन की नींद सो पाते है

की पलटो पन्ने ,देखों  इतिहास मत दोहराओ
यू ही मरने के लिए मत जियों ।।                    
कोई एक काम तो मातृभूमि के लिए कर जाओ
एक हो देश की सोचकर देशभक्त बन जाओ।
It is shameful for us that in India how easily a person living in India is able to say a word against India and even in front of an Indian public, easily and proudly Sloganeering "another country Zindabad" And still stands with life.
Feb 2018 · 173
जाम
Bhakti Feb 2018
जाम में खो जाने का एक ही सुकून है
ना मुझे तू याद रहता है
ना तेरी बदगुमानी
Bhakti Feb 2018
उसकी मोहोब्बत लिख कर शायर बने थे
ओर बेवफाई लिख मशहूर हो गए
Bhakti Feb 2018
इन काच की बोतलों में दम घुटता है
घूरती हुई आखो से तीर सा चुभता है

रस्मो रिवाजो में कैद से है
पल पल गिरती रेत से है
हर औरत की यही कहानी
लफ्ज जुदा , जस्बात एक से है

हर दिन सारे आम एक दामन लुटता है
इन काच की बोतलों में दम घुटता है
Feb 2018 · 580
Love & Pain
Bhakti Feb 2018
कई दफा कोशिश की
लिखू ऐसा की दर्द की तस्वीर ना झलके
पर इस कलम का रिश्ता जो दिल से है
जब भी उठती है .....जख्म ही लिखती है
Jan 2018 · 255
Woman
Bhakti Jan 2018
हर दफा क्यू लडकिया दो पहलू में देखी जाती है

एक ओर मुस्कान उसकी घर घर महकाती है
दूसरी खुल कर जो हस दे चरित्र हींन बन जाती है

एक ओर आजाद हो लड़की , नारो से बातें आती है
दूसरी जो खुल के जी ले आखो में खटक जाती है

एक ओर कागजो पर बराबरी का हक पाती है
दूसरी अपने ही आगंन,खुद को पीछे पाती है

एक ओर वस्त्र से ढकी , संस्कारी मानी जाती है
दूसरी वही आँखे चीरहरण कर मुस्काती है

एक ओर नारी ही देवी राग अलापी जाती है
दूसरी कुछ पल अपने जीने को गिड़गिड़ाती है

एक ओर नवरात्रो में घर घर मे पूजी जाती है
दूसरी झुंड में निर्दयता से नोचि जाती है

क्यों आखिर क्यों ये लड़कियां
दो पहलू में देखी जाती है
Jan 2018 · 380
Pain inLove
Bhakti Jan 2018
इल्जाम नही है, बस पूछ रही हूँ ।

किसी की आँखों को अश्क थमा कर ,
कैसे मुस्कुराते है बता दे ?
थामे हाथो को मझधार में छोड़ ,
मुकाम कैसे पाते है , सीखा दे ?

सुना है आजकल किसी गैर की बाहो में सजता है तू ,
अपने इश्क की खुशबू भुला , गैरो को करीब कैसे लाते है बता दे ?

की फितरत नही हर रोज नया इश्क कर पाना
तू बस आख़री मोहोब्बत है , कह कर
औरों से इश्क कैसे फरमाते है जता दे ?

मेरी तो परवरिश में मोहोब्बत को पूजा जाता है
पर दुसरो के ख्वाबों का गुलिस्तां जला ,
अपना बाग़ कैसे सजाते है बता दे

इल्जाम नही है , बस पूछ रही हूँ
Jan 2018 · 362
Coffee with the past
Bhakti Jan 2018
बरहाल शाम का वक्त था , कुछ भीड़ में टकरा गई|
बीते वक्त को सामने देख , तिनका भर घबरा गई|
आखो से अश्क छूट गया, पर पलको ने सम्हाला|
ओर उसने पूछ लिया
Can we have coffee together?
सामने बैठा था वो , हर जख्म का जरिया था जो|
की पूछ लू क्या गुनाह था जो बेइंतेहा चाहा था?
की क्या थी मजबूरियाँ या तुझको बस जाना था?
पर रोक के मेरी रूह ने चंन्द लफ्ज में मुझसे कहा,
फकत जस्बात भी जाहिर तू कर दे
इसके भी वो काबिल नही.......

ओर मेने पूछ लिया....

How's your wife & son?
सुनते ही दो लम्हा लब उसके खामोश थे|
जैसे कहना चाहता हो कि इश्क तेरा निर्दोष है|
की आज भी दिल मे मेरे एक ही मोहोब्बत है|
बाहो में बस तू हो आज तक ये हसरत है|
ओर एक जवाब आया

ठीक.....
तुम बहोत खूबसूरत लग रही हो|

मुस्कुराई मैं , coffee को खत्म किया और कहा अच्छा अब चलती हूँ
रोकते हुए उसने कहा बस इतना सा वक्त मेरे लिए
ये ही तुम्हारी चाहत है?
नम आंखों से मैने कहा ,एक माँ हूँ एक पत्नी हूँ
जिम्मेदारियां बहोत है|
Dec 2017 · 546
Woman
Bhakti Dec 2017
इंतेहा हो गई पर सहती रही
उम्मीदो की दरिया जैसी बहती रही

कभी अपनों के लिए
कभी अपनों के सपनो के लिए

चाहे आखो में हो अश्क का सागर
होठो में ओरो की मुस्कराहट लिए

पथरीली रहो पर चलती रही
शाम की तरह ढलती रही
उम्मीदो के दरिया जैसी बहती रही

अस्काम के तराशे हम खुद्गरजो के लिए
मतलबी दुनिया के मकबरों के लिए
हर दर्द सहे उसने हँसते हँसते
जो मुड़ कर न आये उन पलों के लिए

औरत है वो देवी जो बुझती रही
मुरझा गई पर जीती रही
जाने कैसे वो इम्तेहा सहती रही
जाने कैसे दरिया बन बहती रही
Dec 2017 · 476
Saval
Bhakti Dec 2017
सवाल

मैं जानता हूँ,अजीब एक गुनाह कर रहा हुँ।
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

धरती पड़ी जो हाथ असुर के
तुम ले अवतार आये थे
जब रक्षा की धरती माँ की
तब सब पुत्र धन्य हो पाए थे

आज माँ अपने की पुत्रों के दिलों का भार है
कलयुग में शर्मिंदा है आँचल,
ममता भी तार तार है।
बस बता दो भगवान हर घर मैं क्या जा पाओगे
अपनी ही संतान से ममता को कैसे बचाओगे .

जानता हुँ ,पूछ ये सब को हैरान कर रहा हुँ ,
ईश्वर मेरे , मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

चिरहरण पांचाली का भाई बन बचाया था
दे जवाब उस घृणा कार्य का ,
तूने पापियों का सर झुकाया था ।

पर आज हर मन में दुःशाशन बसता है,
दामन छलनी कर नारी का,
अत्याचारी मंद मंद हँसता है ।
हर दिन गूंजती चीख़ों को क्या मुस्कान में बदल पाओगे ,
हर चौखट पर लुटता दामन कैसे बचाओगे ।

जानता हूँ ,है प्रभु मैं पाप कर रहा हूं ,
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हूँ ।।

जब राजनीति,प्रशासन एवम न्याय भी बिकाऊ हो
तो गरीबों के आत्मदाह को , क्या मान दे पाओगे
डूबती है इंसानियत , डूबने से कैसे बचाओगे

जानता हूँ विश्वास पे घात कर रहा हूँ मैं
पर भगवान मेरे , ये ही चंन्द सवाल कर रहा हूँ मैं
Dec 2017 · 1.2k
Putravati bhav
Bhakti Dec 2017
||पुत्रवती भवः||
वो मासूम अक्सर पूछा करती थी
क्या लड़कियाँ ईश्वर को भी नापसंद है
जो यही कहते है .....पुत्रवती भवः
और मैं हस कर उसे गले से लगा लेती

वक्त गुजरा ओर उड़ने को बेताब थी वो
अंधियारों में नजर आती मेहताब सी वो
कुछ कर गुजरने की चाहत उसकी आखो में बसती थी
की नजारे जुदा होते थे जब वो नन्ही मासूम हँसती थी

पर जिंदगी को उससे कुछ और ही मंजूर था
सोचती हूँ आज भी की उसका क्या कुसूर था
की जी भी कहा पाई थी वो तेरी दी हुई जिंदगी खुदा
इस तरह तो ना करता तू उसे हमसे जुदा

की रात के अंधेरो में इस तरह नोचि गई
दे दुहाई भगवान की हर जख्म पर रोती गई
दया ना आई जालिमो को ना रूह कपकपाई
तड़पी बेतहाशा कितना चीखी चिल्लाई
लड़ी कुछ दिन जिंदगी से , ओर एक दिन थक गई
अलविदा किया और खुदा के मुल्क में बस गई

जाते हुए मेरा हाथ थाम एक ही बात बोली थी
की आज समझ आया कि क्यों कहते है

पुत्रवती भवः....................

— The End —