एक लम्हा मुझे ,
हल्का कर गया ,
एक सांस मुझे,
खोकला कर गयी ,
बादलों की गर्जन मुझे
झकझोर कर गयी.
तेज़ हवाएँ दिल में
दस्तक दे गयीं
बारिश की चंद बूँदें
सारे आंसूं बटोर गयीं
इसी मंज़र के बीच एक
शख्स चला गया
नौ दरवाज़ों वाले घर को
अंतिम विदाई दे गया
गुज़रते रहे दिन, रात,
सुख, चैन........
पर जब आँखें बंद हो
तो वही तड़प, वही मासूम की आँखें
कितनी ही रातें आधी नींद हम सोए.
कितनी ही रातें उसकी चीख़ से जागे हम …
पर आज जब आँखें बंद हो
तो झपकी भी ढंग से ना आये,
वह लम्हा वह सांस कुछ ऐसे बीत गया
जैसे के हम हैं तो सही, पर हमें ले गया
शब्दों और हंसी की बेतकल्लुफी ले गया
सुनाई देने वाले शब्दों का सिर्फ शोर रह गया.…… !