शायद मुझे कभी प्यार नहीं हुआ, हाँ, ये बात जानता हूँ मैं,
किसी से दिल का इज़हार नहीं किया, इस खूबियत से वाकिफ हूँ मैं।
डरता रहा इस उलझन में, कि क्या सोचेगी वो?
इन प्यार की बातों को बचकाना कहेगी वो।
आया हूँ इस उम्मीद से, रख दूंगा मैं दिल खोलकर,
इस खौफ और भय की चादर को आज दूर कर।
कि हो क़ुबूल तुम्हें, ये मेरी फरियाद है,
जो न करो मंज़ूर ,फिर भी जियूँगा मैं शान से |
A journey through vulnerability and courage, where love is not just a desire, but a plea for acceptance, despite the fear of rejection. This poem captures the essence of being true to oneself, embracing emotions, and continuing to live with grace, no matter the outcome