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 Jun 2019 Suhas Ghoke
Pagan Paul
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The table lamp

The single book of verse.

The ornament standing alone.

The photo in an unforgiving frame.

Or just
the dust


gathering comfort
in a bitter room.





© Pagan Paul (2016/17/18)
.
Old Poem
Shaped to look like a table lamp.
.
Yaad aata mujhe
tera ye Khubsurat chehra,
Kab tak rahogi yu dur mujhse,
Laga ke mere Dil pe apne pyaar ka pahera,
Baitha hoon esi intezar me,
Dekhlu tujhe ji'h bhar ke main,
Kho jau es kadar tere pyaar me,
Tera **** hain khusboo,
Teri mohabbat hain lahera,
Yaad aata mujhe
Tera ye khubsurat chehra,
Ye khubsurat chehra.......


Kaun sulajhaye es paheli ko,
Jab roti hain aankhen,
Tab dard hota hain es dil ko,
Mere dil-o-dimag pe ab teri yaadon ka pahera,
Yaad aata mujhe
tera ye khubsurat chehra,
Ye khubsurat chehra.........
Real feelings
 May 2019 Suhas Ghoke
putiira
I need you on rainy days
and on days when it never rains.
अजनबी था यहां
चला था यूं ही
खाली शौक पूरा करने को
देखते ही देखते
लग गई लत
कविताएं लिखने को
लिख डाली कुछ प्यार पर
कुछ मौसम के मिजाज पर
कुछ खानपान की रंगत पर
कुछ फैशन की जमीन पर
कुछ उठने सोने की आदत पर
कुछ लिखी जीवन संघर्ष पर
कुछ लिखी स्वर्णिम सपनों पर
कई अपने परायों पर
तो कई महिला मुद्दों पर
तो कुछ बेहूदी करतूतों पर
मिला अपार स्नेह यहां पर
जब देखता हूं पीछे मुड़ ‌कर
कुछ लोगों ने इतना सराहा
जितना शायद मैं काबिल ना रहा
हिंदी में शाइना‌ भट्टी, श्रुति दाधीच
कनिष्का और जयंती खरे
यह हमेशा रहते हैं
बड़े ही उत्साह से भरे
अंग्रेजी में सीजे, फौन और पेरी
यह भी नहीं है किसी से परे
धन्यवाद आप सभी का
मेरे साथ होने का
और उत्साह भरने का
एचपी को मेरा सलाम
शतक पूरा करने का।
आफिस में भुचाल आ गया ,
लो फिर से चांडाल आ गया।

आते हीं आलाप करेगा,
अनर्गल प्रलाप करेगा,
हृदय रुग्ण विलाप करेगा,
शांति पड़ी है भ्रांति सन्मुख,
जी का एक जंजाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया ।

अब कोई संवाद न होगा,
होगा जो बकवाद हीं होगा,
अकारण विवाद भी होगा,
हरे शांति और हरता है सुख,
सच में हीं  बवाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

कार्य न कोई फलित हुआ है,
जो भी है, निष्फलित हुआ है,
साधन भी अब चकित हुआ है,
साध्य हो रहा, हार को उन्मुख,
सुकर्मों का महाकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

धन धान्य करे संचय ऐसे,
मीन प्रेम बगुले के जैसे,
तुम्हीं बताओ कह दूं कैसे,
कर्म बुरा है मुख भी दुर्मुख,
ऑफिस में फिलहाल आ गया,
हाँ फिर से चांडाल आ गया।

कष्ट क्लेश होता है अक्षय,
हरे प्रेम बढ़े घृणा अतिशय,
शैतानों की करता है जय,
प्रेम ह्रदय से रहता विमुख,
कुर्म वाणी अकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

कोई विधायक कार्य न आये,
मुख से विष के वाण चलाये,
ऐसे नित दिन करे उपाय,
बढ़े वैमनस्य, पीड़ा और दुख,
ख़ुशियों का कंगाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।

दिखलाये अपने को ज्ञानी,
पर महाचंड वो है अज्ञानी,
मूर्खों में नहीं कोई सानी,
सरल कार्य में धरता है चुक,
बुद्धि का हड़ताल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया,

आफिस में भुचाल आ गया ,
देखो फिर चांडाल आ गया।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। इस कविता में ये दर्शाया गया है कि कैसे एक  व्यक्ति अपनी नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास एक नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। इस कविता को पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करता है, तो कवि अपने प्रयास को सफल मानेगा।
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