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Bhakti Feb 2018
कई दफा कोशिश की
लिखू ऐसा की दर्द की तस्वीर ना झलके
पर इस कलम का रिश्ता जो दिल से है
जब भी उठती है .....जख्म ही लिखती है
Bhakti Jan 2018
हर दफा क्यू लडकिया दो पहलू में देखी जाती है

एक ओर मुस्कान उसकी घर घर महकाती है
दूसरी खुल कर जो हस दे चरित्र हींन बन जाती है

एक ओर आजाद हो लड़की , नारो से बातें आती है
दूसरी जो खुल के जी ले आखो में खटक जाती है

एक ओर कागजो पर बराबरी का हक पाती है
दूसरी अपने ही आगंन,खुद को पीछे पाती है

एक ओर वस्त्र से ढकी , संस्कारी मानी जाती है
दूसरी वही आँखे चीरहरण कर मुस्काती है

एक ओर नारी ही देवी राग अलापी जाती है
दूसरी कुछ पल अपने जीने को गिड़गिड़ाती है

एक ओर नवरात्रो में घर घर मे पूजी जाती है
दूसरी झुंड में निर्दयता से नोचि जाती है

क्यों आखिर क्यों ये लड़कियां
दो पहलू में देखी जाती है
Bhakti Jan 2018
इल्जाम नही है, बस पूछ रही हूँ ।

किसी की आँखों को अश्क थमा कर ,
कैसे मुस्कुराते है बता दे ?
थामे हाथो को मझधार में छोड़ ,
मुकाम कैसे पाते है , सीखा दे ?

सुना है आजकल किसी गैर की बाहो में सजता है तू ,
अपने इश्क की खुशबू भुला , गैरो को करीब कैसे लाते है बता दे ?

की फितरत नही हर रोज नया इश्क कर पाना
तू बस आख़री मोहोब्बत है , कह कर
औरों से इश्क कैसे फरमाते है जता दे ?

मेरी तो परवरिश में मोहोब्बत को पूजा जाता है
पर दुसरो के ख्वाबों का गुलिस्तां जला ,
अपना बाग़ कैसे सजाते है बता दे

इल्जाम नही है , बस पूछ रही हूँ
Bhakti Jan 2018
बरहाल शाम का वक्त था , कुछ भीड़ में टकरा गई|
बीते वक्त को सामने देख , तिनका भर घबरा गई|
आखो से अश्क छूट गया, पर पलको ने सम्हाला|
ओर उसने पूछ लिया
Can we have coffee together?
सामने बैठा था वो , हर जख्म का जरिया था जो|
की पूछ लू क्या गुनाह था जो बेइंतेहा चाहा था?
की क्या थी मजबूरियाँ या तुझको बस जाना था?
पर रोक के मेरी रूह ने चंन्द लफ्ज में मुझसे कहा,
फकत जस्बात भी जाहिर तू कर दे
इसके भी वो काबिल नही.......

ओर मेने पूछ लिया....

How's your wife & son?
सुनते ही दो लम्हा लब उसके खामोश थे|
जैसे कहना चाहता हो कि इश्क तेरा निर्दोष है|
की आज भी दिल मे मेरे एक ही मोहोब्बत है|
बाहो में बस तू हो आज तक ये हसरत है|
ओर एक जवाब आया

ठीक.....
तुम बहोत खूबसूरत लग रही हो|

मुस्कुराई मैं , coffee को खत्म किया और कहा अच्छा अब चलती हूँ
रोकते हुए उसने कहा बस इतना सा वक्त मेरे लिए
ये ही तुम्हारी चाहत है?
नम आंखों से मैने कहा ,एक माँ हूँ एक पत्नी हूँ
जिम्मेदारियां बहोत है|
Bhakti Dec 2017
इंतेहा हो गई पर सहती रही
उम्मीदो की दरिया जैसी बहती रही

कभी अपनों के लिए
कभी अपनों के सपनो के लिए

चाहे आखो में हो अश्क का सागर
होठो में ओरो की मुस्कराहट लिए

पथरीली रहो पर चलती रही
शाम की तरह ढलती रही
उम्मीदो के दरिया जैसी बहती रही

अस्काम के तराशे हम खुद्गरजो के लिए
मतलबी दुनिया के मकबरों के लिए
हर दर्द सहे उसने हँसते हँसते
जो मुड़ कर न आये उन पलों के लिए

औरत है वो देवी जो बुझती रही
मुरझा गई पर जीती रही
जाने कैसे वो इम्तेहा सहती रही
जाने कैसे दरिया बन बहती रही
Bhakti Dec 2017
सवाल

मैं जानता हूँ,अजीब एक गुनाह कर रहा हुँ।
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

धरती पड़ी जो हाथ असुर के
तुम ले अवतार आये थे
जब रक्षा की धरती माँ की
तब सब पुत्र धन्य हो पाए थे

आज माँ अपने की पुत्रों के दिलों का भार है
कलयुग में शर्मिंदा है आँचल,
ममता भी तार तार है।
बस बता दो भगवान हर घर मैं क्या जा पाओगे
अपनी ही संतान से ममता को कैसे बचाओगे .

जानता हुँ ,पूछ ये सब को हैरान कर रहा हुँ ,
ईश्वर मेरे , मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

चिरहरण पांचाली का भाई बन बचाया था
दे जवाब उस घृणा कार्य का ,
तूने पापियों का सर झुकाया था ।

पर आज हर मन में दुःशाशन बसता है,
दामन छलनी कर नारी का,
अत्याचारी मंद मंद हँसता है ।
हर दिन गूंजती चीख़ों को क्या मुस्कान में बदल पाओगे ,
हर चौखट पर लुटता दामन कैसे बचाओगे ।

जानता हूँ ,है प्रभु मैं पाप कर रहा हूं ,
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हूँ ।।

जब राजनीति,प्रशासन एवम न्याय भी बिकाऊ हो
तो गरीबों के आत्मदाह को , क्या मान दे पाओगे
डूबती है इंसानियत , डूबने से कैसे बचाओगे

जानता हूँ विश्वास पे घात कर रहा हूँ मैं
पर भगवान मेरे , ये ही चंन्द सवाल कर रहा हूँ मैं
  Dec 2017 Bhakti
YUKTI
That moment I just felt life is temptation
It starts..
My erosion of self

That moment I shed my tears in front of everyone..
And hope to find a hand over my shoulder of someone..

I felt like a flower which covered with snow.
struggling inside but externally it glow.

You met me once and left me for your laws
I started digging myself for my unknown flaws..

That moment I just felt life is temptation
It starts..
My erosion of self
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