डर है,
हाँ है,
डर तुझे खोने का,
तेरा मेरे पास न होने का,
तेरे लिए होकर भी न होने का,
या फिर शायद तेरा किसी और का हो जाने का।
कैसे भूलूं तेरे साथ बिताए हुए सारे पल,
कैसे संभालूं खुद को जब तू नहीं होगा मेरे पास कल,
अपना होकर भी अपना नहीं तू,
बस इसी बात से खफ़ा हूँ।
इतना भी क्या ज़रूरी है तेरा जाना?
नहीं हूँ तेरे लायक, चल ये भी माना,
पर क्या इतना आसान है तेरे लिए मुझे खोना,
आसान है सब कुछ ख़त्म कर भूल जाना?
ना जाने कैसा खेल खेल रही है ज़िंदगी,
हर चीज़ पर रुला रही ये मुझे,
सब कुछ सही हो जाएगा,
बस एक बार कह दे,
कि तू कहीं नहीं जाएगा!
कुछ जज़्बात शब्दों में उतर आए... ये दिल की बात है, शायद किसी और के दिल से भी मिल जाए! ❤️