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You make me feel warm and cosy
Even on a chilly day
Everything is right and rosey
In every single way
You make the sun smile
You always go that extra mile
You are my conscience and Go to
You make the sky shine bright blue
You cheer up even the dullest day
With everything you say!
We have such fun together
We’re just like birds of a feather
You’re really very clever
Finding me that day
I pray we will be together
For As long as we can stay!
 Jan 12 Vanita vats
Àŧùl
The night has ended,
And the dusk is stale.
A different dawn descended,
And the sun is shining pale.

There are some memories here,
Some more are hidden there.
I'm still lonely,
But I'd be lonelier
If not for my parents.

Now I work on my dream rate,
None was more appropriate.
My HP Poem #2039
©Atul Kaushal
तुम्हारे साए में
तुम्हारे आने से
परम सुख मिलता है , अतिथि !
हमारा सौभाग्य है कि
आपके चरण अरविंद इस घर में पड़े ।
तुम्हारे आने से इस घर का कण कण
खिल उठा है।
मन परम आनंद से भर गया है।
इस घर परिवार का
हरेक सदस्य पुलकित और आनंदित हो गया है ।

जब आपका मन करे
आप ख़ुशी ख़ुशी यहाँ
आओ अतिथि !
हम सब के भीतर
जोश और उत्साह भर जाओ।
तुम हम सब के सम्मुख
एक देव ऋषि से कम नहीं हो ,बंधु !
हम सब "अतिथि देवो भव: "के बीज मंत्र को
तन मन से शिरोधार्य कर
जीवन को सार्थक करना चाहते हैं , अतिथि !
तुम्हारे दर्शन से ही
हम प्रभु दर्शन की कर पाते हैं अनुभूति,
हे प्रभु तुल्य अतिथि !!

एक बार आप सब
मेरे देश और समाज में
अतिथि बनकर पधारो जी।
आप आत्मीयता से
इस देश और समाज के कण कण को
सुवासित कर जाओ।
आपकी मौजूदगी और भाव वात्सल्य के
जादू से
यह जीवन और संसार
रमणीय बन सका है, हे अतिथि!
आपके आने से ,
आतिथ्य सुख की कृपा बरसाने से ,
इस सेवक की प्रसन्नता और सम्पन्नता
निरंतर बढ़ी है।
जीवन की यह अविस्मरणीय निधि है।
आप बार बार आओ, अतिथि।
आप की प्रसन्नता से ही
यहां सुख समृद्धि आती है।
वरना जिंदगी अपने रंग और ढंग से
अपने गंतव्य पथ पर बढ़ रही है।
यह सभी को अग्रसर कर रही है।
२५/०८/२००५.
प्रारब्ध
जीवन और मरण
आरम्भ और अंत
अंत और आरंभ से संप्रकृत
एक घटनाक्रम भर है ,
जो जीवन चक्र का हिस्सा भर है।
यहां अंत में
आरम्भ की संभावना की
खोज करने की लालसा है
और साथ ही
आरम्भ में सुख समृद्धि और संपन्नता की
मंगल कामना निहित रहती है।
सृष्टि में कुछ भी नष्ट नहीं होता है।
महज़ दृष्टि परिवर्तन और ऊर्जा का रूपांतरण होता है।


आदमी की सोच में
उपरोक्त विचार कहां से आते हैं ?
यह सच है कि प्रारब्ध एक घटनाक्रम भर है।
यह सिलसिला है कभी न समाप्त होने वाला
जिससे जुड़े हैं कर्मों के संचित फल और उन्हें भोगना भर ,
कर्मों को भोगते हुए, नए कर्म फलों को निर्मित करना,
सारे कर्म फल एक साथ भोगे नहीं जा सकते ,
ये संग्रहित होते रहते हैं बिल्कुल एक बैंक बैलेंस की तरह।

आरम्भ के अंत की बाबत सोचना
एक आरंभिक स्थिति भर है
और अंत का आरंभ भी एक क्षय का क्षण पकड़ना भर है
प्रारब्ध कथा कहती है कि कुछ नहीं होता नष्ट!
नष्ट होने का होता है आभास मात्र।
प्रारब्ध के मध्य से गुजरने के बाद
जीवात्मा विशिष्टता की ओर बढ़ती है।
यह जीवन यात्रा में उत्तरोत्तर उत्कृष्टता अर्जित करती है।

प्रारब्ध एक घटनाक्रम भर है।
जिसमें से गतिमान हो रहा यह जीवन चक्र है।
११/०१/२०२५.
A year is going to die
but its memories will stay
in the times ahead.

The success, the failure, the try
will be there next day,
the worries to carry to bed.

But over all else
the love I got
will still warm my heart.

As certain as time sails
what can't be bought
will be life's special part.

Was I as generous in giving
for this special gift I received
was I as kind?

The question is haunting
though I tried indeed
my best wasn't good enough I find.

Forgive me where I failed
didn't shine in the light
you let me be in.

I promise to make amend
and keep it in sight
loving you more is all I mean.
 Jan 10 Vanita vats
Àŧùl
I Saw A Nightmare The Other Day,
I Saw A Night Spent In A Cave,
Food Is What I Just Like All Others Crave.

You Can't Stop Shivering Anytime,
You Try Sitting Closer The Fire,
You Arrest Your Hands To Heat Them Up.

As You Look At The Grim Sky Of Night,
A Tear Trickles Down Your Eyes,
And You Quickly Wipe It Off Lest It Freezes.

They Start Talking About Blame,
They Put The Blame On The Mother,
Then You Try Not To Scream At Them.

For It Might Well Be The Earth's Bane,
It's Her Revenge Returning Every Torture,
Why Put The Blame On Her You Ask Them.

"The Earth Has Its Cycle Of Cold," They Say,
"Wasn't It Us Who Made Her Bound To Do So?" I Demand,
They Stay Quiet - Speechless To Say Anything Knowing What I Hinted.


Then I Wake Up Disturbed By A School Van,
I Try Not To Think Of My Nightmare,
But As I Peer At The Van From Behind The Curtains - The Nightmare Seems So Smokily Near.
My HP Poem #18
© Atul Kaushal
कितना अच्छा हो
आदमी सदैव सच्चा बना रहे
वह जीवन में
अपने आदर्श के अनुरूप
स्वयं को उतार चढ़ाव के बीच ढालता रहे।

कितना अच्छा हो
अगर आदमी
अपना जीवन
सत्य और अहिंसा का
अनुसरण करता हुआ
जीवन जिंदादिली से गुजार पाए ,
अपनी चेतना को
शुचिता सम्पन्न बनाकर
दिव्यता के पथ प्रदर्शक के
रूप में बदल पाए।

कितना अच्छा हो
आदमी का चरित्र
जीवन जीने के साथ साथ
उत्तरोत्तर निखरता जाए।
पर आदमी तो आदमी ठहरा ,
उसमें गुण अवगुण ,
अच्छाई और बुराई का होना,
उतार चढ़ाव का आना
एकदम स्वाभाविक है,
बस अस्वाभाविक है तो
उसके प्रियजनों द्वारा सताया जाना ,
उसके चरित्र को कुरेदते रहना ,
हर पल इस ताक में रहना कि कभी तो
उसकी कमियां और कमजोरियां पता चलें
फिर कैसे नहीं उसे पटखनी दे देते ?
...और खोल देते सब के सामने उसकी जीवन की बही।

कितना अच्छा हो
आदमी की चाहतें पूरी होतीं रहें ,
उसे स्वार्थी परिवारजनों और मित्र मंडली की
आवश्यकता कभी नहीं रहे ,
बल्कि उसका जीवन
समय के प्रवाह के साथ साथ बहता रहे।

आदमी का चरित्र उत्तरोत्तर निखरे ,
ताकि स्वप्नों का इंद्रधनुष कभी न बिखरे ।
२८/१२/२०२४.
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