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Jun 2020
औरों को दे महल बनाकर
ख़ुद झोपड़ में रहता है
बात करें हम आज श्रमिक की
जिसकी व्यथा न कोई समझता है।
      
      भर के आँखों में सपने
       वो गाँव छोड़कर आता है
       शहर की चकाचौंध भरी दुनिया में
       ख़ुद को अनजाना पाता है
       सारे दर्द समेट के अंदर
       बाहर से मुस्कुराता है
       बात करें हम आज श्रमिक की
       जिसकी व्यथा न कोई समझता है।

जेठ की जलती गर्मी हो
या हो जाड़े की मार
मुश्किल भरे हालातों में भी
न माने कभी वो हार
चंद मज़दूरी की ख़ातिर
दिन रात वो मेहनत करता है
बात करें हम आज श्रमिक की
जिसकी व्यथा न कोई समझता है।
      
       परिश्रम करता सबसे ज्यादा
       फिर भी दुत्कारा जाता है
       करोड़ों कमाने वाले मालिक से
       ख़ुद समय पर पगार न पाता है
       फिर भी करता न उफ़ कभी
       चुप-चाप सब सहता जाता है
       बात करें हम आज श्रमिक की
       जिसकी व्यथा न कोई समझता है।

मजबूर हो गए आज श्रमिक
जब कोई मदद न करता है
वापस अपनों से मिलने
वो मीलों पैदल चलता है
पैर में पड़ गए मोटे छाले
फिर भी उसके कदम न हारे
देख के ऐसी हिम्मत उसकी
ख़ुद कहर भी दंग रह जाता है
बात करें हम आज श्रमिक की
जिसकी व्यथा न कोई समझता है।

         www.youtube.com/miniPOETRY

                 Labor agony

Make others a palace
He lives in a hut
Talk about labor today
No one understands the agony ..
Dreams in all eyes
He leaves the village
In the dazzling world of the city
Finds himself a little unknown
Inside all the pain
Smiles from outside
Talk about labor today
No one understands the agony ..
Hot summer
Or be winter
Even in difficult conditions
Never believe that every
For the sake of a few wages
Day and night he works hard
Talk about labor today
No one understands the agony ..
Works hard the most
Is still rebuked
From a boss who earns crores
Do not pay on time
Never does oops ever
All is silent
Talk about labor today
No one understands the agony ..
Today the workers were forced
When no one helps
To go back to the village
He walks for miles
Thick ulcers in the leg
Still don't lose his steps
Seeing this courage
Amber also bends down
Talk about labor today
No one understands the agony of ...
दोस्तों इस कविता में हमने बात की है समाज के उस वर्ग की जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता अर्थात श्रमिक और मज़दूर वर्ग। ये ऐसा वर्ग है जो बहुत ही कठिन परिश्रम करके अपना और अपने परिवार का पेट भर पाते हैं।
यह कविता  श्रमिक के जीवन और उसकी मन की व्यथा को को समझने का एक छोटा सा प्रयास है।

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Nandini yadav
Written by
Nandini yadav  26/F/India
(26/F/India)   
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