दिखावटी सा लगता है ये प्रेम तुम्हारा, जो तुम मुझे बार बार दिखलाते हो। बनावटी सी लगती है तुम्हारी सारी बातें, जो तुम मेरे बारे मे औरों को बतलाते हो।
पहले खुद ही लड़ते हो, फिर खुद ही डर जाते हो, बार बार मेरे ही नाम पर, ये हथियार क्यों उठाते हो? मै ही तुम्हारा निर्माता, मै ही जगत रचयिता, फिर मुझको किससे भय, जो तुम हर बार मेरी रक्षा करने चले आते हो?
दिखावटी सा लगता है ये प्रेम तुम्हारा, जो तुम मुझे बार बार दिखलाते हो।
मुझको बाँट दिया तुमने धर्मों मे, दे दिये कई भिन्न नाम, फिर क्यों दिन ओ रात खुद के दिए उसी नाम को गलियाते हो? तुम भी मेरे ही बच्चे, वो भी है संतानें मेरी, फिर क्यों एक दूसरे को भाई बोलने से तुम कतराते हो?
हर मुश्किल में, हर एक मुसीबत मे साथ तुम्हारे खड़ा मैं, बावज़ूद इसके, क्यो तुम मेरा नाम लेने से हिचकिचाते हो? जब सत्य जानते हो कि मै ही अल्लाह, मैं ही येशु, मैं ही हुं श्रीराम, तो इतनी सी बात को स्वीकार करने मे तुम इतना क्यों सकुचाते हो?
दिखावटी सा लगता है ये प्रेम तुम्हारा, जो तुम मुझे बार बार दिखलाते हो।
A poem about rising religious intolerance in the name of Almighty.