ज़िन्दगी की तन्हाइयों से गुजरते हैं हम गहरे समुंदरों में सफ़र करते हैं हम तूफानों के तले गहराइयों में बसकर मोतियों की तरह सीपों में संवरते हैं हम
अंगारों की तरह हवाओं से सुलगते हैं हम राख बनके फिजाओं में बिखरते हैं हम जबसे इश्क़ किया है उस कातिल से रोज़ सौ सौ बार मरते हैं कम-से-कम..
Passing through the loneliness of life, In the depth of the ocean, we travel. Beneath the violence of the storm, In the oyster, we culture like a pearl.
Rekindled by the winds like embers, Scattering everywhere, the ashes gray. Since we fell in love with the killer, Die atleast hundred times everyday....
Love a wrong person, die daily in dark depth, burn badly by blowing winds, One day you will shine like a poet...