ओ मेरे मितवा,
मुझसे रूठो ना रे तुम।
मुझे प्यार हुआ है तुमसे,
तुझमें हो गए हैं गुम।
ख़ुदा से माँगी है एक दुआ –
मेरा प्यार तुम तक पहुँचा देना।
मिल गए तुम इस ज़िंदगी में,
तो फिर और क्या है पाना?
फ़ासले हमारे बीच के
चुभ रहे हैं अब मुझे,
बेसब्र हो गई हूँ अब
मिलने के लिए मैं तुझे।
इज़हार न कर पाई मैं
तुमसे अपने प्यार का,
बयान न कर सकी मैं
दिल से की मोहब्बत का।
इस प्यार की चुनौती में,
ऐ ख़ुदा, तुम मेरा साथ देना।
रूठा है वो मुझसे –
उसे कैसे भी है मनाना।
यह कविता १२ अप्रैल २०२४ को लिखी गई है