कभी कभी
अचानक
हो जाया करता है
धन का लाभ।
इससे हमें
खुश होने की नहीं
है जरूरत ,
हो सकता है कि
इस से होने वाला हो
कोई अनिष्ट।
कोई हमारी उज्ज्वल छवि पर
लगाना चाहे कोई दाग़।
हमें रखना होगा याद
कि कभी अचानक
गंदगी के ढेर से हो
जाता है प्राप्त
कोई चिराग़
जिसे रगड़ने और घिसने से
कोई जिन्न निकले बाहर
और आज्ञाकारी सेवक बनकर
कर दे हमारी तमाम इच्छाएं पूर्ण!
यह भी हमें आधा अधूरा रखने की साज़िश हो सकती है।
अतः हम स्वयं को संतुलित रखने का करें प्रयास,
ताकि निज के ह्रास से बचा जा सके,
जीवन पथ पर ढंग से अग्रसर हुआ जा सके।
यदि कभी अचानक हो ही जाए ,
कोई अप्रत्याशित धन लाभ
तो उसे दीजिए समाज भलाई के लिए
योजनाबद्ध ढंग से बांट।
बांटना और ढंग से धन संपदा को ठिकाने लगाना
बेहद आवश्यक है,
ताकि हमारी कर्मठता पर
न आए कभी आंच।
न हो कभी मंशा को लेकर कोई जांच।
सिद्ध किया जा सके,सांच को आंच नहीं,
यदि सब चलें अपनी राह पर सही , सही, मर्यादा में रहकर।
अप्रत्याशित धन लाभ से रहें सदैव सतर्क।
यदि फंसें किसी मकड़जाल में,
धरे रह जाएंगे सब तर्क वितर्क।
१२/१२/२०२४.