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काश वक़्त को थामना संभव होता,
मैं हमेशा के लिए वक़्त रोक देता।
ज़िंदगी के उस पल को, मैं
थोड़ी और देर जी लेता।

काश अपने दुख बाँटने को
कोई अपना साथ होता,
ज़िंदगी का यह सफ़र
थोड़ा आसान बन जाता।

हमेशा अपने सामने की आवाज़ सुनो,
सामने हर कोई अच्छा बोलता है।
पीछे की आवाज़ को सिर्फ़ अकेले में सुनना –
दर्द का अहसास एक झटके में मिलता है।

कभी अपने कर्म को मत रोकना,
लोगों का काम तुम्हें बुरा-भला ही कहना है।
अपने खराब नसीब के लिए तो
हर कोई भगवान को भी कोसता है।
यह कविता २२ जनवरी २०२२ को लिखी गई है
Yash Shukla
Written by
Yash Shukla  23/M/Pune
(23/M/Pune)   
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