आज भी हुबहू याद हैं वो पल, जब पहली बार एक दूसरे से वादा किया था,कि मिलेंगे ज़रूर कल; कितने हसीन थे वो दिन, आज वो ही यादें बन के सिमट गए,तुम्हारे बिन। नजाने कितने किये थे वादे,सब निभा भी नहीं पाये, अब शायद चलेंगे वो भी हमारे साथ कफ़न में, उनको भी धकेल दिया उस हसीन यादों के सफ़र में । जब-जब भी रहें साथ,रंगीन बनाया हर एक लम्हा उन लम्हों को देख बेरंग हो जाया करता था ये सारा सम्हा । अब वजूद नहीं रहा उन लम्हों का, वो लम्हें भी हिस्सा हैं उन्हीं यादों के समूह का। नहीं सताते अब वो पल जो साथ बिताए थे, बल्कि गम हैं उन वादों का जो अधूरे छोर आये थे, क्योंकि वो सारे वादे भी उन्हीं हसीन यादों नें ही करवायें थे। -Yash Vardhan (गुमनाम गालिब)