मधुवन, आसमा , पर्वत, सागर खुस कहाँ हे सारी दुनीया जोगी हे मगर हे मनका व धनी हेगा न कोइ उसका जैसा जोगी बनके लो दिखादो —२ मे करु तुम्हे सलामी
ज्ञान होके नही सिखाया बन न सका मे ज्ञानी लगाके चन्दन रखा फिर दाह«ी पर बन नसका मे जोगी जोगी बनके लो दिखादो मे करु तुम्हे सलामी
चाहत अनेक बाकी हे अभी रहेने न सका मे भोगी शान्ति नही मनहे चनचल ध्यान नही मेरे बसमे जेगी बनके लो दिखादो मे करु तम्हे सलामी
भूखका आँगसे पेटहो खाली आज बनगया मे भिखारी पर बन न सका मे जोगी —२ जोगी बनके लो दिखादो मे करु तुम्हे सलामी लगाके चन्दन, रखा फिर दाह«ी पर बन न सका मे जोगी