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द़रख्तों में छुपा है या तो फिर अब्र में कहीं।
महताब से रोशन है आसमान और जम़ीं।।
या मुझ से हैं अद़ावतें या कुछ ओर बात है।
रोश़न वो चाँद मेरा, कहीं पास है यहीं।।
बाअद़ब चला करो, मिरे गु़लशन मे हवाओं।
उसकी रेशमी ज़ुल्फों से लिपटना नही कभी।।
वो श़ोख हैं, क़मसिन है, ऩूर-ए-हयात है।।
नादानियों से अपनी, सताना नही अभी।।
द़रख्तों में छुपा है या तो फिर अब्र में कहीं।
मह़ताब से रोशन है आसमान और जम़ीं।।
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©deovrat 16-06-2018