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dead poet Nov 2024
आंसुओं से नमकीन तकिये पर वो ख्यालों का समंदर साध रहा है
निराशा की लहरों के बीच वो अपनी कमर कसकर बाँध रहा है
व्याकुलता पर नियंत्रण कर, वो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है
गौर से देखो, वो कुछ कर रहा है!

बे-बात ही न जाने क्यों ही दुनिया से वो लड़ रहा है -
शायद अपनी बात रखने की ही तैयारी कर रहा है
महानों के इतिहास में झांक कर वो
अपने भविष्य के पन्ने भर रहा है!
उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो,
वो कुछ कर रहा है!

कुछ सोच रहा है, कुछ समझ रहा है!
बंद होठों के पीछे उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से गरज रहा है।
भले ही आज अपने ही लिखे पर हस्ताक्षर करने को डर रहा है -
पर उसे कमज़ोर मत समझना,
वो ज़रूर कुछ कर रहा है!

परिश्रम का फल सदा से अमर रहा है,
पर करने वालों पर सदा से अमंगल का क़हर रहा है।
इसके बावजूद, वो कोयले सा तपकर हीरे सा निखर रहा है -
गौर से देखो, वो कुछ कर रहा है!
YASH VARDHAN Apr 2020
आज भी हुबहू याद हैं वो पल,
जब पहली बार एक दूसरे से वादा किया था,कि मिलेंगे ज़रूर कल;
कितने हसीन थे वो दिन,
आज वो ही यादें बन के सिमट गए,तुम्हारे बिन।
नजाने कितने किये थे वादे,सब निभा भी नहीं पाये,
अब शायद चलेंगे वो भी हमारे साथ कफ़न में,
उनको भी धकेल दिया उस हसीन यादों के सफ़र में ।
जब-जब भी रहें साथ,रंगीन बनाया हर एक लम्हा
उन लम्हों को देख बेरंग हो जाया करता था ये सारा सम्हा ।
अब वजूद नहीं रहा उन लम्हों का,
वो लम्हें भी हिस्सा हैं उन्हीं यादों के समूह का।
नहीं सताते अब वो पल जो साथ बिताए थे,
बल्कि गम हैं उन वादों का जो अधूरे छोर आये थे,
क्योंकि वो सारे वादे भी उन्हीं हसीन यादों नें ही करवायें थे।
-Yash Vardhan
(गुमनाम गालिब)

— The End —