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मौजो से भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम,
खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम।


किनारों पे चलना है ,
आसां बहुत पर,
गिर के सम्भलना है,
आसां बहुत पर,
डूबे हो दरिया जो,
मुश्किल हो बचना,
तो खुद हीं बाहों के,
सहारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम।


जो चंदा बनोगे तो,
तारे भी होंगे,
औरों से चमकोगे,
सितारें भी होंगे,
सूरज सा दिन का जो,
राजा बन चाहो,
तो दिनकर के जैसे,
अंगारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


दिवस के राही,
रातों का क्या करना,
दिन  के उजाले में,
तुमको है  चढ़ना,
सूरजमुखी जैसी,
ख़्वाहिश जो तेरी
ऊल्लू सदृष ना,
अन्धियारे बनो तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


अभिनय से कुछ भी,
ना हासिल है होता,
अनुनय से  भी कोई,
काबिल क्या होता?
अरिदल को संधि में,
शक्ति तब दिखती,
जब संबल हाथों के,
तीक्ष्ण धारें बनों तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


विपदा हो कैसी भी,
वो नर ना हारा,
जिसका निज बाहू हो,
किंचित सहारा ।
श्रम से हीं तो आखिर,
दुर्दिन भी हारा,
जो आलस को काटे,
तलवारें बनो तुम ।
मौजो  से  भिड़े  हो ,
पतवारें बनो तुम।


खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम,
मौजो  से  भिड़े  हो,
पतवारें बनो तुम।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
फिल्म वास्ते एक दिन मैंने,
किया जो टेलीफोन।
बजने घंटी ट्रिंग ट्रिंग औ,
पूछा है भई कौन ?

पूछा है भई कौन कि,
तीन सीट क्या खाली है?
मैं हूँ ये मेरी बीबी है और,
साथ में मेरे साली है ।

उसने कहा सिर्फ तीन की,
क्यूं करते हो बात ?
पुरी जगह ही खाली है,
घर बार लाओ जनाब।

परिवार लाओ साथ कि,
सुनके खड़े हो गए कान।
एक बात है ईक्छित मुझको,
  क्षमा करे श्रीमान।

क्षमा करे श्रीमान कि सुना,
होती अतुलित भीड़।
निश्चिन्त हो श्रीमान तुम कैसे,
इतने धीर गंभीर?

होती अतुलित भीड़ है बेशक,
तुम मेरे मेहमान।
आ जाओ मैं प्रेत अकेला,
घर मेरा शमशान।

अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित
पुराने जमाने में टेलीफोन लगाओ कहीं और थे , और टेलीफोन कहीं और लग जाता था . इसी बात को हल्के फुल्के ढंग से मैंने इस कविता में दिखाया है.
Ankit Dubey May 2019
Aaja ab paas mere kahin der na ** jaaye,
Abhi pyar karne ki lagan hai kahin jindagi beet na jaaye,
Tu bhi kahin ehsaas to karta hi hoga ,
Chup chuo k meri chahat pe guroor to karta hoga,
Beet jaane k baad agar mere tu lautkar aaya,
To yaad rajhna kahin kho dene ka sadma tujhme na ubar aaye,
Nahi chahta mai k tere dil me gam e bahar aaye,
Aaja ab paas mere kahin der na ** jaaye....
Silsila rok de ab mujhse nafrat jatane ka,
Shabab gahra hoga mere dil se tere dil ko milane ka,
Khamosh hokar yun intjaar karna nahi acha,
Ab to bole do kahin chahne vala tera hamesha k liye khamosh na ** jaaye,
Din beet na jaayr kaali raat thahar hi na jaaye,
Betaabi badhti ja rhi hai yujhe paane ki,
Ab rok de intjaar k lamhon ko kahin bahut der na ** jaaye,
Aaja mere paas ab kahin der na ** jaaye.
Ankit Dubey May 2019
Jab bhi khush hota hu ye sochkar k kuch aur paas aye ** tum mere,
Kismat har baar tumhe aur door le jati hai....

Har baat yaad karne lag jaata hu jab bhi mai,
Teri majboriya mujhe kuch aur yad karne ko majboor karti hai.....

Tere pyar me tujhe sochkar hi tere aks ko choone ki jab jab koshish karta hu,
Har bar kismat mujhe khud k koi aur hone ka ehsas karati hai.....

Har jarre me jab teri tasveer najar aati hai,
Tab bhi na jaane ku aankhon se ojhal hone lagti **......

Bhoolkar bhi agar koshish karoo k ye ehsaas hi bahut hai k tum meri **,
Naa jaane ku tu un ehsaason me bhi kuch aisa kar jati hai,
k yaad rakhta hu tumko aur tu kuch aur door chali jaati hai.......

** gya hu adat se majbur fir bhi tumhe pyaar karta hu,
aur ye dillagi hai k har baar tumhe aur pyar krne ko majboor kar jati hai......
Ankit Dubey May 2019
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ,
उजली-धुँधली तस्वीरों की
कुछ यादें ताजा करनी हैँ..

वो बाग-बग़ीचों में मिलना
खेतों-खलिहानों में मिलना,
वो आमों के बागों वाली
पगडंडी फिर से चलनी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ...

वो छुप-छुप कर तुमसे मिलना
क्यारी में फूलों का खिलना,
वो महुआ की महकती डाली
आज फ़िर से पकड़नी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातें तुमसे करनी हैँ..

वो नदिया के गीले तट पर
साँझ ढले का अँधियारा,
वो सरसों के खेतों की मेड़ो वाली
तँग राह फिर से गुजरनी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातें तुमसे करनी हैँ...

वो नीम के फूलों का गुच्छा
गेंहू की भुनी हुयी बाली,
वो गाँव के कुयें में पानी वाली
तेरी मटकी फिर से पकड़नी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..

वो गाँव की हाट का कच्चा रास्ता
सावन में मेलों के झूले,
तीखे-तीखे चाट-पकौड़े
वो मिर्ची फिर से चखनी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैं.

वो मन्दिर के पिछवारे में
खण्डहर की टूटी दीवारें,
मख़मल के घास बिछौने पे
ढलते सूरज की अगुवाई फिर से करनी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातें तुमसे करनी हैँ...

वो नहर का छोटा सा पुल
पानी पे सूरज की किरणें,
मेरी रफ़ कॉपी से बनी
कागज़ की नाव चलानी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..

वो इमली के पेड़ों की खटास
अमरूद के मौसम की मिठास,
वो बेरों के काँटो की चुभन
मुझे गालों पे फिर से सहनी हैँ,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ....

वो चिड़ियों सँग आवारा पन
बादल का बंजारा पन,
वो हवा में उड़ती लाल पतंग
तेरे लिये पकड़ कर लानी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ..

तूने अपनी नादानी में
जो चीजें मुझस छीनी हैँ,
जब साथ था अपना हरदम का
वो ज़िन्दगी फिर से जीनी है,
एक शाम मुझे तुम मिल जाओ
कुछ बातेँ तुमसे करनी हैँ...
Ankit Dubey May 2019
मैं चाहता हूँ
तुम मेरे लफ़्ज़ों को
अपने सुर्ख़ लबों पे
हया की तरह सजाओ,

मैं शान्त हो
तुम्हेँ सुनता रहूँ
तेरे सामने बैठा रहूँ
और तुम बड़े सलीके
उन्हें हर्फ़-हर्फ़ दोहराओ,

जब भी साँझ में
चिलमन से रिसते
अँधेरों के रेशों को ताकूँ मैँ
तुम मेरे शब्दों को
किसी दिये की
लौ समझ कर जलाओ,

किसी स्याह रात के
अँधेरे में जब तुम
अजीज को खोजो
तब धुँधलके की चादर बन
मेरे लफ्जों से
अपने बदन को सहलाओ,

जब कोंपलों में
भँवरा कोई
मदमस्त हो मकरन्द ढूंढें
तुम मेरे लफ़्ज़ों को
भँवरे की धुन
समझ कर गुनगुनाओ,

हसीन वादियों में
चूम जाती हैं
जैसे हवायें बदन को,
बस उसी तरह
मेरे अल्फ़ाज़ों को
सिहरन समझ
तुम मेरे बदन पे गुदगुदाओ,

जैसे गूँजता है
तेरा नाम इन बहारों में
तुझे जोर से बुलाने पे
बस वैसे ही
मेरे भावों को
गूँज समझ कर
अपने अधरों पे सजाओ........!!
Main Hoon Kahan?
Are kitni kaatil hai yeh duniya
Iski adayein anginat samajh na aate!
Phir bhi duniya
** tum Mera pehla ishq
Hai tujhe salaam!
Bolat chameli beli
Are sakhi rajanigandha
Bolo
Kyon ithlati **?
Rajani bolat are sakhiman!
Meri maiya bolati thi
Are bitiya sun lo na!
Kabhi mala mein goonthi
Jaakar premi ko ithlaogi
Ya kisi raja ke mukut
Prem shaiyya ki
Sartaj kehlaogi
Lekin aas ek hi rakhna
Are banmali
Us path par mujhe tum
Dena phenk
Jis path matribhumi
Par sheesh chadhane
Jaayein veer anek!
Kya asha hai rajani
Boli chameli beli
Ithlana tumhara sarthak hai
Tumhi to veeron ki mala
Ki saakhi!
Re rajani,tum **
Punyavati manjari!
'Pushp ki abhilasha ' se prerit!

— The End —