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May 2019
मैं चाहता हूँ
तुम मेरे लफ़्ज़ों को
अपने सुर्ख़ लबों पे
हया की तरह सजाओ,

मैं शान्त हो
तुम्हेँ सुनता रहूँ
तेरे सामने बैठा रहूँ
और तुम बड़े सलीके
उन्हें हर्फ़-हर्फ़ दोहराओ,

जब भी साँझ में
चिलमन से रिसते
अँधेरों के रेशों को ताकूँ मैँ
तुम मेरे शब्दों को
किसी दिये की
लौ समझ कर जलाओ,

किसी स्याह रात के
अँधेरे में जब तुम
अजीज को खोजो
तब धुँधलके की चादर बन
मेरे लफ्जों से
अपने बदन को सहलाओ,

जब कोंपलों में
भँवरा कोई
मदमस्त हो मकरन्द ढूंढें
तुम मेरे लफ़्ज़ों को
भँवरे की धुन
समझ कर गुनगुनाओ,

हसीन वादियों में
चूम जाती हैं
जैसे हवायें बदन को,
बस उसी तरह
मेरे अल्फ़ाज़ों को
सिहरन समझ
तुम मेरे बदन पे गुदगुदाओ,

जैसे गूँजता है
तेरा नाम इन बहारों में
तुझे जोर से बुलाने पे
बस वैसे ही
मेरे भावों को
गूँज समझ कर
अपने अधरों पे सजाओ........!!
Ankit Dubey
Written by
Ankit Dubey  20/M/New Delhi
(20/M/New Delhi)   
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