उलझी काली रातों में,
तेरी खट्टी मीठी बातों में,
हस्ती, खिल - खिलाती, रोतली सी शक्लो में,
अक्सर में तुझको खुद में कैद कर,
अपनी हंसी को बेबसी में तबदील कर लेती हूं ।
आँखो के काले घेरे,
अनगिनत घाव मेरे,
चीख के पुकारते है तुझे,
बहते आंसुओ से फिर उन घावों को बेबसी का नमक देती हूँ ।
तेरे ख्वाब सिरहाने रखते हुए,
तकिये से बाते करते हुए,
दीवारों को ताकते हुए,
रात रात भर अपनी बेबसी का हिसाब लगाती हूँ ।
पायल उतार फेकी है,
झुमके अब रास नही आ रहे है,
जब से तुम दूर गए हो,
खुशिया में भी बेबसी का हिजाब रहता है ।
बेबसी को बढ़ाने के लिए ही सही,
बेबस को और बेबस करने ही सही,
एक बार आए वो इस बात की बेबसी बढ़ती जा रही है ।
©heeranshimishra