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Daivik
Poems
Oct 2021
सावन
सावन की पहली बारिश
हरा खेत लहलहाता हैं।
सावन की पहली बारिश
इस माटी को महकाता हैं।
बूंद-बूंद मछलती
खग नए सुरो में गाते हैं
पानी की बौछार में
जीव जंतु नहाते हैं।
फूल-फूल में आनंदोदय
टिमटिमाती क्यारी
गा रहा हैं सबका हृदय
मिटि थकावट सारी।
पर जैसी ही सब घर पहुचें
सर्दी लगी बिंदास
दो घंटे बाद पाए गए
बिस्तर में करते हुए आराम।
गरम पकोड़े तलकर खालू
सोच रहा हर मानव प्राणी
पर अपनी तोंद की गहराई देख
छा रही हर प्रत्येक चहरे पे उदासी।
रास्ते नदी के धार बनते
फुटपाथ गंगा के घाट बनते
परेशानी के पानी का स्तर बढ़ता
कभी गम ,कभी खुशाली।
जीवन के इस मौसम को मेरा प्रणाम हैं
जल के इस वरदान को,कोटि-कोटि आभार हैं।
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Written by
Daivik
18/M/UtopiaDystopia
(18/M/UtopiaDystopia)
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