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Nov 2015
मेज़
पर पड़ी ...
टूटी हुई सेठी की कलम
वो आधी बिखरी श्याही की दवात
कुछ पन्ने ईंट से दबे
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
कुछ फडफडाते- छटपटाते
मेरी तरह
रुके है अब भी
आँखों में आंसू
और अधरों पे शब्दों की तरह
एक अधूरी कविता
पूरी करनी है
पर लालटेन आखिरी सांसें ले रही है
मेरी तरह

चाभी का एक पुराना छल्ला
लटका था सिरहाने
कुछ चाभियाँ
शायद कोई राज़ खोले

एक टूटी ऐनक
जो टिकी रहती थी कानो के सिरहाने

कुछ टूटे पैसे बिखरे
शायद मेरे टूटे बिखरे
सपने खरीदे
मरने से पहले मुझमे साहस आया
लौ ने भी साथ निभाया
कलम थामा

लिखा क्या
??
बस "माँ"
....
A Poem for all the mothers in the world
Written by
Ananya Nagar  Pune
(Pune)   
1.4k
         Lior Gavra, Monika, anonymous and Mysterious Aries
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