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Mohan Jaipuri Apr 2019
छत पर सोते ,तारे गिनते
ध्रुव और सप्त ऋषि देखते
सूरज घूमता है
पृथ्वी स्थिर है
ऐसी बेकार बातें सुनते।

श्रवन की कावड़ का सुनते
लेकिन एक घड़ा पानी को लड़ते
चंदा के उजियारे में रहकर
उसकी ही निंदा करते
तारा टूटे तो हर - हर करते
कितना भयंकर आडंबर सुनते।

बारिश होने पर
बिस्तर ना सूखे बचते
बादल की गर्जन पर
भीमसेन - भीमसेन रटते
सोचो कितना अंधविश्वास में जीते।

गर्मी में पानी कहां था
घी मिल जाता
कोई पानी ना देता
परिंदे भी कहां रहते थे
वो तो प्यासे ही मर जाते थे
या फिर देशांतर गमन करते थे

चादर ना‌ थी ओढने को
बस ऊंटबालों का कंबल चुभता
ना तन पर कमीज होता
जूता तो कोई बिरला पहनता।

दादी मां की कथा में
भूत प्रेत की गाथा सुनते
पूरी जिंदगी झूठा डरते
हार्ट अटैक की मौत को
भूत द्वारा तोड़ा बताते।

पढ़ने को पाठशालाएं कहां थी
कहां औषधालय थे
बस घास - फूस से घाव भरते
कई तो इंफेक्शन से ही मरते ।

ऊंट घोड़ों की सवारी करते
आधे तो पैदल ही चलते
साठ किलोमीटर के सफर में
दो दिन और एक रात लगते ।

अब आदमी परिंदे की तरह उड़ता है
अपना भला-बुरा अच्छी तरह समझता है
अपने घर से ही दफ्तर का काम कर लेता है
विज्ञान के आविष्कारों ने
आकाश - पाताल एक बना दिया है
बंद कमरों में रहकर भी
अब कुछ छुपा नहीं रहता है।

बस अब मनुष्य के पास समय नहीं है
इसलिए सिकुड़ा- सिकुड़ा रहता है
फिर भी बेबस व लाचार नहीं है
अवसर और ज्ञान उसके पास है
इसलिए आज का आदमी खास है।
Mohan Jaipuri Aug 2022
स्वतंत्रता के पिचहतर वर्ष
हमने मनाये अनेकों हर्ष
शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा
और बुनियादी ढांचा हुआ उत्कर्ष
लड़कियों को अवसर मिला तो
सम्मान देश का फहुंचाया अर्श
करें प्रतिज्ञा इस पिचहतर
बची रूढ़ियां और आडम्बर
शतक होने पर ला देंगे फर्श।।
Mohan Jaipuri Aug 2024
आधी चोकलेट तूने खायी
आधी मुझको भेज दी
देख तेरा यह लगाव मुझसे
मैंने चूस -चूस कर खत्म की।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
बचपन में जब स्कूल जाने का
मन नहीं हुआ करता था
कहते थे आज दांत में
दर्द है
खाना नहीं खाऊंगा
पिताजी समझ जाते थे
और घुमाने ले जाते थे।

अब आधी सदी बाद
जब सच में दांत में
दर्द होता है
खाना नहीं खाता हूं
ऑफिस भी नहीं जाता हूं
आज फिर कमी है पिताजी की तरह
घुमाने वाले की
और दर्द को
छूमंतर करने
वाले की।
Some pain are small but need attention of relations.
Mohan Jaipuri Sep 2020
आधुनिकता ने हमको
कहां से कहां पहुंचाया
       अब उषा दस्तक देती नहीं
       अलार्म से उठते हैं
       संध्या में ईश्वर स्तुति
       के बजाय कई सवाल
       लेकर सोते हैं
       जो नींद की मधुरता में
       विष घोलते हैं
इस बेबस जीवन में
कोई रस नहीं पाया
       कभी मौसम देखा नहीं
       मात्र समाचारों में सुना
       ख्वाबों को जिया नहीं
       बस नित एक नया बुना
       आराम के नाम पर कभी
       बस बीमारी को भुनाया
इतना होने पर भी इस जीवन क्रम
का कभी मंथन नहीं कर पाया
       कितनी ही बार अपनों की
       यादों में लिपटा
       हर बार किसी मजबूरी ने
       मारा मुझ पर झपटा
होटों तक आते-आते
दर्द फिर से हार गया।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
मौसम है आमों का
कभी घूमते थे इनकी तलाश में
अब कुदरत का फरमान है
स्वास्थ्य ढूंढ रहा हूं घर के कड़वे नीम में
पिछले एक महीने में
बन गया हूं आधा हकीम मैं
भीड़ से दूर रहकर
करता हूं खुद पे यकीन मैं।
Mango and Neem season is same but we always ignored neem. One is sweet but another is bitter. This year it is bitter's turn.
Mohan Jaipuri Jan 2023
जनवरी में ठंड गुलाबी
मैं ऊनी वस्त्र पहनूं
तिल तड़कूं, तेल उबटाऊं
बन सूवटा सा रहूं
मेरे मन की मैना बोले
पानी देख घबराऊं
सूरज की सुस्ती देख
मैं आलस गले‌ लगाऊं ।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
ये गोरे- गोरे आलू के पराठे
नोनी घी और आम का अचार
शनिवार की दोपहरी,धूप चढ़ी दीवार
एक कटोरी दही भी हुआ लंच  सुमार
चार किमी जोगिंग का काम है तैयार।।
Mohan Jaipuri Jun 2022
खोए तो वैसे ही रहते हैं तेरे ख्यालों में
आज तेरा आसमानी लिबास देख
तुझे ढूंढ रहा हूं आशाओं के गगन में।।
Mohan Jaipuri Jan 2022
खुली - खुली जुल्फें
कंधों को ओढ़ाई
बाजूओं की शोभा
कंगन‌ हीरा जड़ाई
आसमानी ‌फ्राक सूट
हाथ गुलाब सजाई
देख तेरी ये अदायें
फरवरी याद आई।।

ना गोपी तू मथुरा की
ना मैं किशन कन्हाई
फोटो में भी देख परछाई
जब तू दो - दो नजर आई
मैं गुमराह हूं ये शक‌‌ हुआ
देख फागुन की अगुआई।।

आंखों में कुछ सपने
कुछ हकीकत छाई
लब सीले हैं तेरे
देख वक्त की कड़ाई
आशाओं के तरकश से
कोई तीर निशाने लग जाई।।
Mohan Jaipuri May 2022
भेजा है जो तुमने यह सफेद फूल
देख इसे गमों को गया हूं मैं भूल
दामन अपना रहे स्वच्छ हमेशा
आशाओं के परागकोष
बनाते रहें इसे रंगीन।।
Mohan Jaipuri Jun 2022
तुम फूल , मैं तितली‌‌ हूं
तुम आज़ाद, मैं ‌बंधा हूं
तुम चुप, मैं गुनगुनाता हूं
उड़ता सा स्पर्श तेरा पाता हूं
तब‌ आशिक कहलाता हूं।।
Mohan Jaipuri Sep 2021
ये आश्विन‌ की बारिश
जैसे सोतेला‌ वारिस
गड़ गड़ाये ज्यादा
लाभ पहुचाये आधा
बस इतना जरूर है
सावधान करे ज्यादा।।
Mohan Jaipuri Oct 2022
शक से शक‌ उपजे, डर से डर
मनन से ज्ञान और धैर्य से जीत
निडर है सत्य, छिपता है  घात
जिंदादिली जीवन है, आस्था में प्रीत।।
Mohan Jaipuri Apr 2024
ये उषा की किरणें
ये शीतल हवाएं
यह सूना आकाश
सब मुझे बहकायें
यह चाय का कप
जिसका रंग सुनहरा
अब आ जाओ तुम
थोड़ी आंखों से पिलायें
कहीं यह चाय बन दर्द
प्रकट ना हो जाये
आंखों अश्क पहरा।।
Mohan Jaipuri Jul 2024
तेरी नाइट लैम्प की लाली
और ये लाल सूर्ख तेरे फूल
मिलकर सपने में ही कभी
होगा आंखों से सलाम कूबूल।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
पहले पड़ती धूप
फिर चलती आंधियां
आंधियों का शोर मिटाने
बारिश आती रे! आंधिया।।
Mohan Jaipuri Apr 2022
इकबाल ने कमाल दिखाया
वर्कशॉप को चार चांद लगाया
औजारों की दीर्घा देख
'इकबाल ' ही जुबां पर आया ।।
# Kaam ki baat
Mohan Jaipuri Nov 2024
जिनका हो इकबाल
पीछे चलता ऐतबार
जिंदगी में परखा यह
एक नहीं सौ बार।।
Mohan Jaipuri Jul 2020
इत्तेफाक महज इत्तेफाक से तो नहीं होते
कुछ तो इस जहां में इनके मसाइल होते
जिन्होंने मोड़े थे बड़ी नजाकत से रास्ते
आज एक अजनबी उसी चांद संग लौटे।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
एक दीप जो आज ही के‌
दिन बुझ गया  था
बुझने से पहले गौरवशाली गाथाओं
के दीप कई जला गया था।।
      नमन 🙏🙏
Mohan Jaipuri Dec 2024
जमाना बेमिसाल , मैसेज हैं कमाल
मोबाइल पर ही समय बीत जाता है
विडियो काल तो सब अनचाही
लालसाओं को पंख लगा जाती है।
तेरे इन्बोक्स में आकर मेरा
फ्लर्ट निकल जाता है
दो घड़ी के लिए ही सही
मेरी दुनिया बदल‌ जाती है ।
यहां कौन किसका है
यह तो वक्त ही बताता है
पर दो पल तेरे इन्बोक्स में
आकर मेरी रूह ताजा हो जाती है ।
गर्म तेरा  मिजाज जो हो
दिल मेरा काम में लग जाता है
गर मिजाज तेरा शायराना हो
अंदाज-ए-बयां मेरा गजल बन जाती है।‌
नजर अंदाज कर दो मुझे तो
मेरा वजूद समझ में आता है
गर दे दो थोड़ा हौंसला
मेरी बांछे खिल जाती है।
Mohan Jaipuri Jul 2024
सुनो जी आज भेजो एक इमोजी
इमोजी डे का सम्मान कर दो जी
इमोजी को ही लोटपोट कर दो जी
हम अपनी तस्वीर उसमें ढूंढ लेंगे जी।
Mohan Jaipuri Mar 2024
इरादा जब पक्का हो
तो मिल ही जाता है हमदम
चेहरे की रंगत बदल जाती है
ख्वाब बदल लेते हैं हम।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
यह इश्क़ नादान को संजीदा बना देता है
ना हो मुकम्मल तो दर्द का दरिया बन जाता है।।
Mohan Jaipuri Nov 2024
शायरी मेरी मेहबूबा
इश्क इसका ले डूबा
चढ़ा के चाय भूल जाऊं
चाय और पतीला दोनों जलाऊं
खुद को ठन ठन पाल पाऊं।।
     😀😀😀😀
Happy Diwali Helloians
Mohan Jaipuri Jan 2022
छू लो गर होठों से तुम मेरी चाय
तो बन जाये ये मेरा जाम
पीकर मैं इतना लहराऊं के
अपने इश्क के चर्चे करे अवाम।।
Mohan Jaipuri Jan 2022
आज एक और रसीद आई
सुबह-सुबह उमंग ले आई
सौदागर के सपने भरने
देखो यह सुनहरे रंग में आई।

मकर सक्रांति पर्व पर यह
विचारों को पंख लगाने आई
बिन चरखी और डोर के ही
मुझको आकाश घुमाने आई।

मेरे कोमल मन को देखो
जहां की सैर कराने आई
मावठ के इस शीत मौसम में
शब्दों से इश्क की खुमारी लाई।।
# Publication of Saudagar
Mohan Jaipuri Jun 2022
यह गुलाबी रोज
देकर करूं तुझे प्रपोज
कर दूं खत्म इश्क की खोज
भर लूं नैनों में तेरे
प्यार की मौज
देखूं चारों ओर
तुझे ही हर‌ रोज।।
Mohan Jaipuri Oct 2019
मेरी मित्र वैगी
नमकीन मैगी
बड़ी‌ उपयोगी
चाहे बनानी‌‌ हो
दाल या हो चाट
टिप्स दे तुरन्त
हो‌ गये मेरे ठाट
साधारण लिबास
साधारण मिजाज
उठती है भोर में
करती‌‌ सारे काज
चाहे परिवार के
या फिर समाज
दिखती साधारण
सुलझा देवे
बड़े-बड़े ‌राज
पोस्ट करती रोज
एक कथन
खोलती आंखें
उसका मंथन
दिन है दीपक
रात है रसिक
ऐसी कशिश
कहो है यह इश्क
या फिर मिथक।
Mohan Jaipuri Dec 2020
भारत में यदि उमड़ पड़े
जड़ों के प्रति चाव औ
किसानों का पड़ाव
फिर कोई ना रोक सके
चाहे राम हो या राव।।
Mohan Jaipuri Dec 2019
अब मिलती है
व्हाट्सएप समूहों पर
नित नई फोटो विस्मयकारी
जैसे कोई ख्वाब हो चमत्कारी
और पाते हैं हर सुबह नई
                         तरुणाई
दोस्तों की पोस्ट
देख खुलती है मेरी आंखें
पढ़ कर यूं लगता है
जैसे कोई व्यंजन परोसा हो
                          मुगलाई
कहां है अब
दादा-बाबा की बिस्तर कथा
सिर्फ व्हाट्सएप समूहों में ही
खुलती है अब कोई छिपी व्यथा
यहीं पाते हैं  रिश्तों की आभासी
                              गरमाई
अब फ्लैटों में नहीं
आंगन वाली वो छाया
ना संयुक्त परिवार वाली
सुरक्षा की छत्रछाया
व्हाट्सएप समूहों पर बस है
'शेयर' करने वाली ही माया
जिससे होती है थोड़ी
              समय गुजराई।
Mohan Jaipuri Dec 2021
इस इंतजार में भी कितना रोमांच है
हर क्षण में तेरे आने की आहट है
मेरे हृदय में उतनी ही गर्माहट है।।
Mohan Jaipuri Mar 2022
उम्र के साथ अदायें
उन्नत हो चली हैं
जहां से गुजरती तू
नज़रें उधर फिसली हैं।।
Mohan Jaipuri Jan 2022
तुम यूं ही गुलशन बन कर इस
फिजां में खुशबू बिखेरते रहना
मैं भौंरा‌ बन यूं ही तुम्हारे
चमन में सदा आता रहूंगा
अंदर चाहे सूनापन हो फिर भी
बाहर चमन बसाना कम तो नहीं
देख तुझे यह जो मन मेरा महकता है
यह उपकार तुम्हारा कम तो नहीं।।
Mohan Jaipuri Oct 2022
तेरी  मुस्कुराहटों पर
जाने कितने लोग फिदा होंगे
घुंघराले इन बालों में कितनों के
ख्वाब‌ उलझे होंगे
मैं तो एक शायर हूं
मन की बात लिख देता हूं
जो लिख नहीं पाते उनके दिल
ना जाने कितने भारी होंगे।।
Mohan Jaipuri Nov 2020
मेरी खुशी
यारों की अमानत है
मेरी जिंदगी उनकी
दुआओं से सलामत है।

मैंने जिंदगी के फर्ज
निभाए हैं फिल्मी तर्ज
अब इस ऊंघते से समय में
नहीं है कोई मर्ज
ठहाके लगाने में अब
नहीं है कोई हर्ज।

मेरी बातों में अब
नहीं है कोई रंज
मेरी चालों में
नहीं है शतरंज
मैं तो टिमटिमाता
दीपक हूं ख्यालों का
जिसको इंतजार रहता
यार मतवालों का।

मैंने अपनी जिंदगी पर
समझा नहीं अपना हक
इसलिए जो करना है
करता हूं बे-शक
जीता हूं आज को
ना करता चिंता नाहक।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
जीवन की वादियों में
पहाड़ सी मुस्किलें
जिनमें खिलते फूल
अपनों की रेल बनाकर
हम हटा सकते हैं हर‌‌ सूल
पहुंच कर गंतव्य बस
भूलें नहीं यह उसूल।।
Mohan Jaipuri Feb 2023
शिव सादगी
शिव सहनशीलता
जटाएं इशारा हैं
जीवन की उलझनों का
नन्दी  प्रतीक‌ है
जीवन‌ उपयोगिता का
मृगछाला प्रतीक
दमन तृष्णाओं का
गले का नाग कहे
जहर गले तक ही रहे
सिर की गंगा कहे
ठंडा मस्तिष्क रहे
निर्वस्त्र शरीर कहे
बिन दिखावे का
अपना जीवन हो
हर एक मनुष्य का
शिव संकल्प हो
फिर जीवन में
ना कभी कठिनाई
का बोध हो।।

ऊं नमः शिवाय
आज एक अटेची खोली
अटेची छोटी , बात बड़ी
एक ड्राइवर की समझ की
यह बन गई सुनहरी कड़ी।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
तू कहीं भी देखे तो मैं दिखूं
मैं देखूं तो दिखे तू
दिल अपना बने आईना
एक हो  अपनी रूह।।
Mohan Jaipuri Feb 13
मैंने चूम ली वह तस्वीर
जो थी कप एक कॉफी
मुझे ' चुम्बन दिवस ' पर
वह तस्वीर लगी एक ट्रॉफी
सामने वह नहीं ना कभी होगी
नज़रों में बसी उसकी तस्वीर
मेरे वाक्यों को बना रही उसका
जैसे बना लेती है एक 'अपोस्ट्रोफी'।
Mohan Jaipuri Sep 2019
अभियंता का चिंतन
ड्राइंग पर आता
ड्राइंग से डिजाइन बनाता
डिजाइन जब फील्ड पर आती
इसमें मानवता की कड़ी जुड़ती
यहीं से अभियंता की
प्राथमिकताएं शुरू होती।

अभियंता एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष
उसका उद्देश्य मानवता सापेक्ष
चाहे हो अमेरिका , चाहे ईरान
मापन उसका सब जगह समान
यही है उसका धर्म - ईमान।

अभियंता का जुनून
धरती, आकाश और सागर
देखते ही देखते उसने
सब जगह बना ली डगर
वास्तविकताएं उससे
छुप नहीं सकती पल भर
यहीं से वह बन जाता
एक मशीन भर
चेतना में शामिल
हो जाती है दक्षता हर

खाना ,पीना ,रहना
इनसे ना कोई परहेज
पहाड़- मैदान, समुद्र
बन जाता है उसका घर
शाकाहारी , मांसाहारी जो
मिल जाए उस पर निर्भर
अभियंता है पूरा वैश्विक
जहां मिले रुचिकर काम
वहीं बन जाता नागरिक
आज अभियंता दिवस है
Mohan Jaipuri Feb 2021
उठते ही प्रभु का स्मरण करूं
फिर माता-पिता को प्रणाम करूं
आजीविका है जीवन आधार
उसकी सलामती की दुआ करूं
दोस्त मेरे गुण-दोष उजागर करें
उनसे नित उठ विचार विमर्श करूं
बच्चे मेरे महकते फूल
उनकी मुस्कान की रंगत बनूं
जीवन संगीत तो‌ बस है
भोगे हुए पलों का शब्दांकन
और इच्छाओं की भाव-यात्रा
जिसको अनवरत जारी रखूं
संघर्ष है जीवन की पाठशाला
जिस के द्वार पर दस्तक देता रहूं।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
आज मैंने जिंदगी से पूछा
मैंने अब तक क्या पाया ?
जिंदगी ने उत्तर दिया
कितना खुश किस्मत है तू
कि खोने का डर  ना रहा।
Mohan Jaipuri Sep 2020
एक कड़ी
खुशियों की लड़ी
शिशु ने पकड़ी
किशोर ने छोड़ी
तब से है सबकी
यादों में पड़ी
सतरंगी सी वह
बाल्यावस्था की घड़ी
Mohan Jaipuri Apr 2021
माना कि कभी-कभी मैं
जब तुझ से मुखातिब होता हूं
मेरा ईमान डोलने लगता है
परंतु ए हुस्न वाले इसमें
तेरे होठों की भी तो खता है
जिनका तेरी आंखों की
भाषा से नहीं राबता है।।
Mohan Jaipuri Jan 2021
सच्चा दोस्त कहां मिलता है,
मैं अब तक यह न जान पाया
       कल्पना में मिलता हो तो
       चलो आज कल्पना से ही पूछें।।

खेलने का ना कभी शौक था
घूमने का भी कहां अवसर था
बस पढ़ने का एक जुनून था
इसलिए किताबें ही दोस्त थीं।

       किताबों से बड़ा कोई दोस्त नहीं है
     परीकथाओं में रचा हो तो परियों से पूछें।।

स्वार्थ की दुनियां से अछूते रहे
जीवन साधारण सा बस जीते रहे
हर रिश्ते को पैबंद लगाते रहे
खुद्दारी से हर काम करते रहे।

       आस्था को अपना आईना बनाया
      आईने में खोट हो तो आईने से पूछें।।
Mohan Jaipuri May 2019
जज्बात तो जज्बात होते हैं
इन पर हमारा नियंत्रण नहीं
गर हो जाए कोई हमसे चूक
तो तुम देना गुस्सा थूक
आज एक चीते की शादी की सालगिरह है
उस को" विश "करने की चुनौती है
है चिता यह बड़ा अलबेला
जिसकी नहीं है अन्य मिसाल
कद में यह है पांच फुटिया
पर बोली से मचाता है धमाल
दुनिया की कोई ऐसी चीज नहीं
जो इसने कभी चखी नहीं
सूरज की तरह घूम घूम कर
दुनिया की सैर करता है
शिव बाबा की तरह
अपनी मस्ती में तांडव करता है
नहीं किसी की भाषा सुनता
नहीं किसी नियम से बंधता
हर एक के साथ बस
अपने ही तरीके से पेश आता है
इस की धर्मपत्नी को ढेरों सलाम
जो सचमुच में होंगी कमाल
आओ मिलकर चीते को ढूंढे
फिर पेश करें बधाइयों की मिसाल।
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