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Mohan Jaipuri Feb 2021
लफड़े जिंदगी में अपने आप आ गये
जैसे पेड़ पर बर्र के छात्ते छा गये

ढूंढने की कोशिश की किसी दर्द का तोड़
नए दर्द आने की लग गई होड़
आशाओं के आगोश में झूलते रहे
नए-नए दर्द फलते -फूलते रहे
     ज्यों ज्यों हृदय पर पत्थर रखते गए
     पत्थरों में भी नये शूल उगते गये

अपनों के अपनत्व पर हम फूलते रहे
वो पीछे - पीछे चलते पैर उखाड़ते रहे
उम्र के साथ हम किसी‌‌ तरह पैर साधते रहे
अपना मन किसी तरह बहलाते रहे
     लोग हर तरह की नैतिकता को लांघते गये
     आदर्शों के बोझ से खुद में ही दफन होते गये

वक्त को भी हम कुछ नागवार गुजरते रहे
काठी छिन गई , कहकहे खामोशी में बदलने लगे
पिंजड़े उजड़ने लगे ,खामोशी बोलने लगी
प्यास अभी बाकी है पर घुटन सी होने लगी
     खामोशी के मंजर में जब डूबते गये
     जख्मों के दर्द में‌ लब सीलना‌ सीखते गये।।
Mohan Jaipuri Apr 2019
उस जांच को क्या नाम दूं
जो देख झूठ चकराए
जांच के घेरे में कई हैं
क्या अपने क्या पराये
समझो जांच उसी के बेबस
जो देख उसे मुस्काये
फिर भी जांच ऐसे को सौंपी जाए
जो भेद किसी का खोल ना पाए
सच की आग अब मंद पड़ी है
झूठ फफोला बनाए
कैसे अब वह नाव चले
जब मांझी खुद ही हिचकोले खाये।
Mohan Jaipuri Oct 2024
एक तिकड़ी मंजी हुई
परवाह जिसको नहीं कोई
पत्तियों के खेल में मग्न
चेले  करते रांधा-पोई
अफसर तो फिर भी आये
ठाठ वैसे कहीं ना जोई
ठाकुर ठगाये वही कहलाए
कहावत यह सार्थक होई।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
प्रेम एक धुन है
रम गये तो थम गये
जो पिछड़ गये वो
दुनियां से बिछुड़ गये।
Mohan Jaipuri Jan 2021
मेरे आंसू खुशियों की स्मृतियों के प्रतिबिंब हैं
मेरी जिंदगी संघर्षों की दास्तान का आलम है।

मैंने जिंदगी को श्रम और इमानदारी से खींचा है
अगले और पिछले रिश्तों को रूह गलाकर सींचा है

मेरी बातों में आहों से ज्यादा गौरव की उर्जा है
गुजरे लम्हों की रौनक का सजदा है
अब मैं वह सपनों का सौदागर हूं
जिस का काफिला बिखरा है।

अपनों पर विश्वास ने मुझको छला है
ज्यों जूतों में ही पैर गला है
मैं खुद अब वह किताब हूं
जो जिल्द को बेताब है।

मैं जिंदगी के पायदान सीढी दर सीढी चढ़ा हूं
फिर एक फरिश्ता जीवन में आया
उड़ा फरिश्ता ,खाली घरौंदा
जो बचा उसको रिश्तों ने रौंदा
अब मैं एक नजीर हूं जिसको
ना कोई पेश करता है ,ना कोई सुनता है।।
Mohan Jaipuri Dec 2022
आंसूओं को एक उम्र के
पड़ाव के बाद ‌ना‌ करें बर्बाद
देखने वाला‌ कोई नहीं
उल्टे आंखें होंगी खराब
यदि हृदय उमड़े तो
करो पुराने दोस्त याद
सोचो‌ जो‌ साथ रहते थे
उनकी‌ भी तो थी एक मियाद
नयी पीढ़ी में अब नहीं
वह पुराने जज़्बात
सोशल मीडिया की स्रोता
ना समझे आपकी बात।।
Mohan Jaipuri Oct 2021
खुश रहना है तो
दोस्त एक खूबसूरत रखिए
खुशबू ना मिले कोई बात नहीं
आंखों से पयाम तो लेते रहिए।।
Mohan Jaipuri Feb 2019
गर तू होती चंदा
जो मैं होता चकोर
खाता अंगारे लाल
होता प्रपोज कमाल
जो तू होती जल की रानी
मैं बनाता एक्वेरियम
रंग बिरंगे तेरे पंख
हर लेते सब मेरे रंज
प्रपोज के इस खेल में
मैं कितना आनंदित होता
गर तू होती
वन की नागिन
जो मैं होता सपेरा
बीन की धुन ऐसी सुनाता
तू होती मोहित
और मैं हो जाता रोहित
रोहित मोहित एक हो जाते
सोचो प्रपोजल कितना लुभाते।
Mohan Jaipuri Mar 2019
दिल में खंजर चुभता है
जब झूठों से बतियाते हैं
मुलाकात जब आगे बढ़ जाती है
शनि का न्योता आता है
और कई भस्मासुर उत्प्रेरक बन जाते हैं
फिर विनाश किश्तों-किश्तों में आता है
उत्प्रेरक अलग हो जाते हैं
और समय लीलने लगता है
विनाश के निशान पीढ़ियों पर रह जाते हैं
बेहतर है झूठों से पीछा छुड़ाओ
कीमत जो चाहे लूटा़ओ
मुमकिन है उस पार आशा किरण हो
या फिर बेचैनी का अंत तो हो।
Mohan Jaipuri Jun 2020
दीर्घ वृत्ताकार तेरा मुखड़ा
जिस पर सूर्य जैसी बिंदी
आंखें मय के प्याले जैसी
उड़ा दे सबकी निंदी
झूमर तेरे शंकवाकार
जो कर दें दिल बेकरार

गर्दन तेरी सुराही दार
जिसमें मैचिंग वाली माला
साड़ी पहने लाल पर
दुर्गा लगती है ये बाला
होंठ तेरे पंखुड़ी जैसे
नाक है सुआदार

चूड़ियों से भरे हाथ तेरे
बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
घुंघराले बाल तेरे
अद्भुत लहराने का ढंग
चश्मे में से जब तू देखें
चेहरा लगे ईमानदार

पूजा वाली थाली संग
लगती नारी हिंदुस्तानी
जिधर से भी तू गुजरे
उधर मौसम हो जाए तूफानी
देख तुझको जी‌ ललचाये
जैसे तू हो रसगुल्ला शानदार

इतना सब सोच समझ कर
लिखने का चल दिया अपना दांव
मैं दूर देश का सीधा सादा
बड़ा दूर ही मेरा गांव
गलती हो तो माफ करना
यही जहन मे आया सरकार।
Mohan Jaipuri Jan 23
एक रुद्राक्ष बेचने वाली लग रही
जैसे खुद हो एकमुखी रुद्राक्ष
मिडिया को भी यह भ्रम है
जैसे वही है महाकुंभ का अक्ष।।
Mohan Jaipuri Jun 2021
दो साल
दो संदेश
दो तस्वीर
एक मुंतजिर
अजीब तालुकात है दिल का
तेरी आभा के साथ
ख्याल जो तेरा आता‌ है
हर धीरज की मिसाल के साथ
Mohan Jaipuri Apr 2021
वरदानों की राह मिलती
पीड़ाओं को सहकर
शलभ को मोक्ष मिलती
ज्वालाओं में जलकर
क्यों कोई यह मंत्र भूले
मोह में पड़कर।।
Mohan Jaipuri Dec 2018
दूर तक चलने वाली एक रवायत है तुझ में,
टूटी हुई बेसहारा लोगों की आशाएं हैं तुझ में।
वादियों में गुंजायमान बुलंद आवाज है तुझ में,
सर्दी-गर्मी-वर्षा में न रुकने का संदेश है तुझ में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार हैं तुझ में।।
नए फन और कर्तब के जज्बे हैं तुझ में,
लुप्त होती परोपकारिता का अक्ष है तुझ में।
गरीब-अमीर सबके लिए समानता है तुझ में,
कई बस्ती ,कई कस्बे ,कई बाजार हैं तुझ में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार हैं तुझ में।।
प्रकृति से अद्भुत जुड़ाव है तुझ में,
कई काफिले कई संसार है तुझ में।
एक ख्वाहिश अभी भी ज्वलंत है तुझ में,
वरना तन्हाई का भाव ना आता मन में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार है तुझ में।।
Mohan Jaipuri Aug 2024
रिकार्ड रूम में यह भी
एक रिकॉर्ड दर्ज हो गया
हाथ हमने आपके सीने पर रखा
और अपनापन आंखों में दर्शा।।
Mohan Jaipuri Nov 2022
कभी उसे गुलाब कहा
कभी बाग की बुलबुल
उसकी प्यारी बातें मेरे
दिल मचाती हलचल
एक दिन उसने माथे बांधा
हरी चुन्नी का साफा
मैंने चाहत यूं जताई
कहा तुम हो कली गुलाब
उसने कुछ यूं फरमाया
तुम हो फूलगोभी जनाब
मेरे रंगीन सपनों का
एक लफ्ज़ में हुआ हिसाब।।
Mohan Jaipuri Sep 2022
कुछ मुस्काने‌ं,कुछ अफसाने
कुछ नजराने,कुछ नजाकत
कुछ नीति और कुछ नियती
मिलकर बनाते एक विभूति।।
Mohan Jaipuri Jul 2021
तुम जुगनू की तरह आती हो
थोड़ी रोशनी दिखा कर गायब हो जाती हो
मुझे इंतजार की घड़ियों में फिर से डुबो जाती हो
यह तुम्हारा मुझ पर कोई कहर है
या मेरी समझ का फेर है
जो भी हो तुम्हारी अदाओं का सूरूर
अभी‌ भी‌‌ मेरे सर है।।
Mohan Jaipuri Oct 2019
हर घर में एक शेफ है
शेफ ही घर की सेहत है
जिस घर की शेफ संजीदा है
वह घर सबसे अलहदा है।
A chef
Mohan Jaipuri Sep 2020
जन्म मिलता है किस्मत से
किसी को झोंपड़ी,
किसी को महल
तो किसी को खुला आसमां
जाने का ठिकाना एक है जिसमें
लुप्त हो जाता है सारा जहां
जीओ इसी सत्य की‌ नींव पर
अन्त अलग- अलग‌ है कहां।।
RIP Pranav Mukherjee, Former President of Of India. Who died on 31st Aug 2020
Mohan Jaipuri May 2019
भाई - बहन की साझा जंग
प्रजातंत्र के महाभारत में
अद्भुत युवा जोश दोनों का
दिख रहा है इस रण में
भाई करे है व्यूह रचना
बहन करे साकार मंच पर
किसान मजदूर छोटे व्यापारी
और रोजगार के मुद्दे पर
जन शक्ति अपार संचित हुई
एक " न्याय " के नारे पर
देख विपक्षी चकित हैं
उलूल- जूलूल बकित हैं
भाई - बहन की जोड़ी बनी भूचाल
कुतर्कों की अब क्या मजाल
सिंहासन तो अब डोल गया है
अब" शब्दों "की तो बचाओ लाज।
Mohan Jaipuri Jul 2024
मैं सितारा तो नहीं,
शायरों के तारामंडल का
बस छोटा सा हिस्सा हूं।
जो कुछ पाता इस जीवन में
बयां करता उसका किस्सा हूं।
धूप, छांव के जीवन टकसाल में
बस ढाला हुआ एक सिक्का हूं।
जब भी फीका होता हूं
शायरी पर आ टिकता हूं।।
Mohan Jaipuri Apr 2019
जिंदगी
हर एक के लिए
एक अलग पेपर है
जो उसे ही हल करना है
इसमें ना वंश
ना देश ना काल
का कोई बस चलता है
जो मिलता है
वही पढ़ना होता है
रंगभूमि भी
अपने आप तय है
रोल निभाना हाथ में है
हम सिगरेट का पात्र निभाते हैं
जलना जिसकी तकदीर है
सफलता पर धुआं उड़ता है
वरना एक चैन स्मोकर
बंद कमरे में ही खत्म कर देता है।
Mohan Jaipuri Jul 2020
जब जब मैं इन्हें बनाता हूं
पसीना रीढ की हड्डी के ऊपर
चल कर पैरों तक आ जाता है
तो कभी नाक से उतर कर
मुंह में घुस जाता है।
मेरे शरीर की नमक की
पूर्ती सहसा ही कर जाता है
बिन पानी के ही मैं पवित्र
स्नान कर बाहर आता हूं
पर इसका मतलब यह भी नहीं कि
मैं अपने पसीने से तकदीर सींचता हूं
मैं तो बस गर्मी में अपने लिए
अपनी चार‌ रोटी बनाता हूं
पाठ यह सीखना बाकी है कि
महिलायें कैसे इतनी तपने के
बाद भी मुस्कुराहट के साथ
सबको खाना परोसती हैं
ना कभी एहसान जताती हैं?
Mohan Jaipuri Nov 2024
बन आईना उनको देखता रहा
स्केच भी बनाता रहा
शीर्षक क्या दूं
मसला यह अनसुलझा रहा।।
Mohan Jaipuri Feb 2022
जिसके सुरों पर
भारत हमेशा चहका
आज‌ सुर मौन हुए
भारत है भौंचक्का
सदा‌ नहीं यहां किसी
को इस जहां में रहना
गंगा ‌में‌ जैसे जल बहे
तेरे सुरों की धारा
ना रूकेगी कभी बहना
सुरों की जब भी बात होगी
हर दिल ये जरूर कहेगा
वाह !लताजी का क्या कहना।।
# RIP Lata Mangeshkar
Mohan Jaipuri Nov 2024
रुनझुन बजती टालियां, टच-टच हांकता ग्वाल
गधे पर छागल लदी, चले अकाल-सुकाल
रेगिस्तान में बस यही रौनक का पर्याय
बरसे या नहीं बरसे मेहनत तो लेते निकाल।।
Mohan Jaipuri Jan 2021
यूं तो सफेद लिबास में
तुम लगती हो शांति दूत
पर बिन‌ कुछ बोले जब
गुजर जाता है दिन और
रात में भी ना कोई चिन्ह
तब दिल जाता है टूट
और लगता है जैसे डोर
गई हो कोई हाथ से छूट।।
Mohan Jaipuri Jul 2024
मनु भाकर देश की शान
कांस्य से बढ़ाया मान
पेरिस में सुन राष्ट्रगान
शूटिंग पर हम कुर्बान।।
Mohan Jaipuri Jul 2024
आज नहीं तो कल
हम होंगे अव्वल
तालिका में नाम
आने तो लगा है
चस्का ओलंपिक का
लगने तो लगा है।

बेटियां सिर ऊंचा
करने लगी हैं
उड़ान हर क्षेत्र
में भरने लगी हैं
सोना नहीं तो कांस्य
आने तो लगा है।

शूटिंग, आर्चरी, पहलवानी
वेट लिफ्टिंग, गोला फेंक
में तो छाने लगे हैं
एथेलेटिक्स, रोइंग
में हाथ आजमाने लगे हैं
चलो अब होकी से
बाहर आने तो लगे हैं।

आज निराशा तो
कल बदलेगी भाषा
खेलों का संसार है
यहां भी पलटता है पासा
चलो खेलों की सुध
सरकारें लेने तो लगी हैं।।
Mohan Jaipuri Jul 2019
यह बागड़ की बारानी खेती
मुश्किल मानसून की बारिश होती
उस पर औकड़ हवा का प्रहार
कर दे सब जोत बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल

मानसून पर किसान खेत पहुंचे
औकड़ चलते ही पैर वापस खींचे
प्रचंड औकड़ तीन दिन चल जाए
मानसून फिर फल न पाए
जवान हो या बच्चे बूढ़े
सभी हो जाएं टेढे - टेढे
औकड़ से हैं खेत बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल


औकड़ शायद नाम है इसका
क्योंकि सारा जीवन पीछे खिसका
जो कुछ अब तक पास था
मानसून में उसको जमीन में गाड़ा
आई औकड़ और उसे उखाड़ा
यह ना छोड़े धोरा और ना ही ताल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल

औकड़ से डर मैं शहर भागा
यहां भी महसूस करूं ठगा ठगा
औकड़ चलने पर ना कोई सगा
औकड़ बारानी खेती का बड़ा दगा
औकड़ सुखा नमी करे बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल।
Aukad is a disastrous wind flowing from west to east which distroys the crop in the thar desert part called "Baagad" including churu,bikaner,nagaur, SriGanganagar districts.
Mohan Jaipuri Mar 2019
आज एक अद्भुत ऑडियो सुना
दो अनोखे किरदारों को जाना
एक और पुरुष की लंपटता की
विशाल दिखावटी पोट
दूसरी और एक सच्ची औरत की
उस पर कारगर व शालीन चोट
अब तक ऐसे‌ संवाद फिल्मों में देखे थे
पर आज प्रत्यक्ष सुने थे
सुनकर हम सन्न रह गए
हमारा दिल कुछ सोच न पाए
औरत घर को बांधती है
अपने दर्द को‌ हरदम छुपाती है
दूसरे घर की औरत का दर्द
उतना ही बखूबी समझती है
काश! पुरुष औरत को समझ
अपनी झूठी ज़िद छोड़ दें
अपने घरों को औरतों के
फैसलों पर मोड़ दें
संसार सुंदर खुशहाल हो जाए
और बच्चे नेक इंसान बन जाएं।
Mohan Jaipuri Oct 2024
कई रावण मुझमें हैं
जिनको जीतना मुश्किल है
मैं खुद उनका मुवक्किल हूं
खुद ही उनका वकील हूं।

भले को भला  कहता हूं
खुद की जब बारी आती
सबको भूल जाता हूं
खुद को आगे रखता हूं।
कई रावण मुझमें हैं...

खतरा देख कर डरता हूं
अन्याय अनदेखा कर देता हूं
बोलने का साहस नहीं होता
चुपचाप सह जाता हूं ।
कई रावण मुझमें हैं...

ज्यादा ‌गई थोड़ी रह गई
मंदोदरी अब रही नहीं
स्वाभिमान की सूर्पनखा के
कारण मुश्किल में पड़ जाता हूं ।
कई रावण मुझमें हैं...
अब लम्बी कविताओं का वक्त नहीं
ना ही बचे हैं लम्बे रिश्ते
शोसल मिडिया परोसता वासना के  किस्से
घरों में तड़प रहे मां - बाप से फरिश्ते
किताबें कोई छुता नहीं,डिजिटल बोर्ड टंगे दीवार
ज्ञान कोई लेता नहीं , डिग्रियां बिकती सस्ते
शारीरिक श्रम से विश्वास हटा,रोग मिले महंगे
मशीनों के सहारे ही अब कट रहे हैं रस्ते।।
Mohan Jaipuri Mar 2024
यह जिस्म मेरा बन गया है मेरा ही क़फ़स
कानों गुंजें तेरे लफ्ज़, आंखों में तेरा अक्स।।
Mohan Jaipuri Feb 2023
छरहरा बदन
गोरा गोरा रंग
सवेरे सवेरे
दिख जाता है
यह जादुई कंचन।

यह जींस और टॉप
फबते तुझ पर बहुत
उस पर तेरे ये जादुई
गुलाबी गुलाबी होंठ।

बालों को लहरा के
एक साइड में गिराना
काले तेरे गोगल्स
बनाते मुझे दीवाना।

कभी गजब ढा देता
तेरा  'पोज' यों बनाना
तुम तो अपने आप में
सुंदरता का खजाना।

ऐ हसीना बहुत
मुश्किल है दिल थामना
हम तो हैं पेट्रोल
तुम हो एक चिंगारी
कब तक जारी रखोगी
यूं ही हमें जलाना।।
Mohan Jaipuri Nov 2023
ऐसे ना मुस्कुराया कीजिए
कहीं हमें प्यार‌ हो जायेगा
कैसे पहुंचेंगे आप तक
दिल कबूतर कहां से लायेगा।।
Mohan Jaipuri Mar 2020
वर्ष -वर्ष सी लंबी मिनटें बन जायें
विष वियोग का पसरे जब आहों में,

टूट कर जीवन धारा‌ बिखर जाये
जब बिछड़ जाये कोई हमदम राहों में,

सांसें खाने लग जायें हिचकोले
धरती अंबर भी लगने लगे झूलते झूले

खुल जाता है भेद जीवन का सारा
जब हो जायें खुशियां खामोश क्षणभर में
Pain   despair       mortality
Still show must go on
Mohan Jaipuri Feb 22
यह तेरा दिल,यह मेरा दिल
यह दिल बहुत हसीन है
उम्र के तराजू मत तोलना
प्यार हमेशा कमसिन है।
Mohan Jaipuri Oct 2024
करवा चौथ नहीं
यह तेरा श्रृंगार
और रूप निखार है
छत पर चढ़ती तेरी
पायल की झंकार है
छलनी में से देखती
आंखों का अंदाज है
अव्वल तो मेरे लिए
तेरे बदन की भीनी
खूशबू  का आगाज है
ज्यों -ज्यों बरस बीते जाएं
खूशबू बढ़ती जाती है
रंग तेरी साड़ी के देख
मेरी रैना इतराती है।
Mohan Jaipuri Jul 2020
कोई कमाए लाखों
फिर भी रोटी खा सके ना हाथों
देख-देख दौलत लिफाफे
बहके बातों - बातों
दूजे कमाएं दुआएं
और सुकृत्य बांटे हाथों
देख-देख दुनिया हरखे
महके दिन और रातों
जो समझे ये कृत्य का फेर
वो कभी  फंसे ना व्यर्थ झंझटों
Mohan Jaipuri Dec 2020
रोज साझा करते हैं
बातें भौतिकता वाली
चलो आज एक दिन
करें बातें कर्मों के सार वाली।

     जब - जब मिलते हैं
     और जो - जो मिलते हैं
     बातें सिर्फ करते हैं
      'मैं' हूं वाली
गीता के प्रकाश में चलो आज
जलाएं इस 'मैं' की होली।

   हमारे शरीर के साथ-साथ इस जहां में
   हम ठिकाना पहले से ही तैयार पाते हैं
    लेकिन यह बात हम
    समझ कब पाते हैं?
गीता के प्रकाश में चलो आज
ढूंढते हैं इस रहस्य की खोली।

     ऐसे लुट रही है जिंदगी
    और हम अनजान बनकर बैठे हैं
    सच तो यह है कि हम व्यर्थ
    इच्छाओं की गठरी लेकर ऐंठे हैं।
आओ गीता के ज्ञान से
इन इच्छाओं की गठरी को कीलें।
Mohan Jaipuri Feb 2020
मोती की कीमत लगाना आसान है
मुश्किल तो मोल उस सृजन का है
जिसमें नेकर(nacre) की परत दर परत
बारीक संघर्ष जुड़ा है
पर हर कोई‌ अनजान‌ है।
Mohan Jaipuri Mar 21
फिलीस्तीनी और यूक्रेनी
पिस रहे हैं युद्ध की चक्की
रूसी और इजराइली भी
होंगे दु:खी यह बात है पक्की
मानवता को रख सर्वोपरि
कूटनीति से बने कोई काम
कूटनीति है समझ निराली
यह नहीं है व्यवहार मवाली
शान्ति में छिपी खुशहाली
शान्ति है जीवन की लाली
कविता में लिख भेजी है
मैंने अपने मन की बात
ज्यादा लिखी व्यथा कहलाए
इतना ही कविता दिवस पर
लिखना एक कवि के हाथ।।
Mohan Jaipuri Aug 2019
कविता उस कृति का नाम है
जहां सृजन के शब्द उभरते हैं
प्रेरक प्रसंग मिलते हैं
कल्पनाओं के फूल खिलते हैं
प्यार और प्रीत पल्लवित होते हैं
भावनाओं की ऊंची उड़ान
का नाम है कविता।

नित नये विचारों के प्रवाह
का नाम है कविता
आत्मबोध का मार्ग
प्रशस्त करती है कविता
जिसने अपना‌ ली है कविता
वह‌ बन जाता है
एक जीवित शब्द संहिता ।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
कविता का संसार
कल्पना है
इसका आधार
भंगिमाएं लाती हैं
इसमें निखार
शब्द मिलते
नहीं यहां उधार
शब्द कम हों चाहे
पर होना चाहिए
उनमें भार ।।
Mohan Jaipuri Feb 2023
हरे चने-आलू की सब्जी
संग बाजरे का रोट
लालच करके खा गया
मैं भर कर एक प्लेट
घर वाले सोते रहे
मैं सका ना घंटे भर भी लेट
हाथ से बार - बार
दबाता रहा बस पेट
उठकर अजवाइन ली
थोड़ा हल्का हुआ पेट
बैठने के लायक हुआ तो
लौट आया कवियों के सेट।।
Mohan Jaipuri May 2024
कश्ती चलते - चलते मैली हुई
सोचा किनारों से पूछें कोई हल
देखा किनारों का जब हाल
पाया खुद को इनसे खुशहाल सूरत-ए-हाल।।
Mohan Jaipuri Aug 2021
बिमारी के लिए छुट्टी तो ठीक है परन्तु
छुट्टी के लिए बिमारी ओढना ठीक नहीं
ये किस मोड़ पर आ गये‌ हैं‌ हम
जहां स्वस्थ होना ठीक नहीं।।

आये हो ‌दफ्तर में‌ काम करवाने तो
कुछ दे जाओ‌ तो ठीक है परन्तु
पास कुछ ना हो तो काम की आस रखना ठीक नहीं
ये किस मोड़ पर आ गये हैं हम
जहां आशा रखना ठीक नहीं।।

देते हो बच्चों को भोतिक सुविधाएं तो ठीक है
परन्तु नैतिकता की शिक्षा देना ठीक नहीं
ये किस मोड़ पर आ गये हैं‌ हम
जहां नैतिकता कोई शिक्षा ‌नहीं।।

किसी के लिए दिल में प्यार होना तो ठीक‌ है
परन्तु बदले में प्यार ना मिले तो प्रतिशोध ठीक‌ नहीं
ये किस मोड़ पर आ गये हम‌
जहां प्रतिशोध की क्रूरता का अन्त नहीं।।
Mohan Jaipuri Nov 2022
वह जब भी पूछती ‌है
"कहां हो तुम ?"
मैं कहता हूं अभी तो
तुम्हारे विचारों में हम
अगर देखना है आंखों से
बन जाओ आईना तुम
यदि महसूस करना है
मेरी रूह में बस जाओ तुम ।।
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