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Bhakti Jul 2018
बरसाती है नयन घटा , अम्बर जयकार गाता होगा
लहू से सींची माटी का ,सीना चौड़ा हो जाता होगा

टूटती होगी चूड़ियाँ पर,आँखो से गर्व झलकता होगा
पिता के साये से जुदा,बचपन कोने में तड़पता होगा

हाथ जोड़े ईश्वर राह पर खड़ा अश्रु बहाता होगा ।
जब माँ का वीर लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

होली के रंगों के बीच ,वो घर बेरंग रह जाता होगा
अंधियारी होती दीवाली,जो चिराग बुझ जाता होगा

खेलने की उम्र में पिता की अर्थी उठाता होगा ।
श्रृंगार करता वो हाथ जब सिंदूर मिटाता होगा ।

चीखती भारत भूमि , रक्त से आँचल नहाता होगा ।
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

बूढ़ी माँ जब संतान की अर्थी को सजाती होगी ।
पुत्र को पिता अग्नि दे नीरस लड़खड़ाता होगा ।

क्या तब भी नेताओँ का दिल नहीं पिघलता होगा
क्या तब भी सवालों का सिलसिला नहीं थमता होगा।

इस गम में शैतान भी,श्रण भर शीश झुकाता होगा
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।

जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा.......
Bhakti May 2018
अंजान बने , खामोश सब सहते रहे ।
शायद मेरे अश्कों से सुकून नसीब हो उन्हें ,
ये सोच बेपनाह वो पलकों से बहते रहे ।
वो खंजर से रूह जख्मी कर रहे मेरी ,
हम हार कर दुनियाँ को देख हसते रहे....
Bhakti May 2018
सूखा , बंजर पड़ा है नसीब मेरा ,
नेमत की बूंदों से नियति भीगा दे .।

तृषित तकदीर मेरी कराहती बरसों से ,
उम्मीद के नीर का स्वाद चखा दे ।

लिख मेरी किस्मत में सुकून को ऐ खुदा ,
या बुलाके तेरे आशियानें में ,
जन्नत से रूबरू करा दे ।
  May 2018 Bhakti
YUKTI
I love when you just cross me with a dagger of a glare,
our eyes finally meet
but then the thought of the gloomy world
who never lets us meet forces me to turn myself!
Your comments are always appreciated.
Bhakti May 2018
शिरोमणि , मातृभक्त , शूरवीर , सिसोदिया वंश के युवराज थे ।
किया समर्पित तन , मन , धन ऐसे महाराणा प्रताप थे ।

लोभ , मोह , भोग , विलास सब छू भी ना उनको पाता था
स्वाभिमान देख उनका पाषाण भी शीश झुकाता था

घर , परिवार , आराम का विचार भी ना हृदय तक आता था
इतिहास का वो पन्ना भी सम्मान से लिखा जाता था

काली मुगलिया छाया में वो उजले प्रभात थे
मातृभूमि के तेजस्वी पुत्र वो महाराणा प्रताप थे

चुनी घास की रोटियाँ , महलों का 56 भोग ठुकराया
तिलक किया मातृभूमि को लहू से , विजय पताका फहराया

हाथ जोड़ नतमस्तक है धरती का हर एक कण
धरती माँ तेरे नाम किया जीवन का हर एक क्षण

हीरे जवाहरात कब भाये पहने स्वाभिमान का ताज थे
रक्त से लिखी स्वयं की गाथा वो महाराणा प्रताप थे
वो महाराणा प्रताप थे
Bhakti May 2018
कत्ल किया है मुजरिम हूँ ??
ना कोई शिकंज ना कोई ग्लानी
जानती हूँ ना कानून है इसका ना  सजा-ए-मौत का ख़ौफ.....

कत्ल हुए है मेरे जज़्बात, मेरे अरमान मेरे ख्वाब
कत्ल किया है मुजरिम हूँ.....
Bhakti Apr 2018
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
अग्नि के पावन तेज से ये जिस्म जला देते है

कोई भाई हमें उस नर्क के दर्द से बचाने ना आ पायेगा।
खोफ का ये मंजर अब नहीं सहा जाएगा ।
रूह कांप रही है सोच कर कैसे जुल्म अबलाओं ने झेला होगा ।
सतीत्व के साथ नीचों ने हस हस के खेला होगा ।

उम्मीद मर गई है मेरी इंसाफ और कानून से
हर चोखट की इज़्ज़त को राजनीति में उछाला जाएगा।

कुछ दिनों का किस्सा बन कर ये भी भूली बात होगी ।
ये लिखावट भी किसी भयानक दर्द की राख होगी ।
नहीं कर सकती अब कोई माँ बेटी की आबरू का बलिदान
नहीं बन सकती अब कोई लड़की बदले का , हवस का सामान ।

खोफ से सनी रातों को अब ना ख्वाबों में देखा जाएगा
सुनों मेरी अब हमें बचाने नहीं कोई कृष्णा आएगा

आखरी श्रंगार कर मोत का मजा लेते है ।
आओ बहनों फिर जोहर कुंड सजा लेते है ।
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