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Nilesh Kumar
Feb 2021
"सांझ की आस"
दिन ढल रहा है
रात आ रही है
मगर कुछ मुझसे,
ये शाम कह रही है
क्यूं होते हो निराश
अब उठ जाओ
मत होने दो अंधेरा
दीपक जलाओ
कल फिर आएगा सूरज
एक नई चमक लेकर
बस इस आस में
एक नया "जहां सजाओ"!!
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— The End —