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हो गुनाहगार भी कोई तो,
तक्क़लुफ ना करें,
मैँ भी अपने दामन मेँ थोड़े दाग रखता हुँ ।
कोई भूखा अगर मिलेँ तो,
उसे बहला सकूँ,
मैँ अपने बटुए मेँ रोटी और साग रखता हुँ।
करेँगेँ मजहबोँ की बाते फुरसत मेँ,
मैँ अपने दिल मेँ हिन्दोँस्तान रखता हुँ।
क़ाफिर की इबादत हुँ, शायर की माशूका,
कर दे जो हरपल को रंगीन,
मैँ वो धुँआ हुँ।
हर एक कदम पर दुनिया कहती हैँ,
तू क्या हैँ?
और मैँ हर बार कहता हुँ,
सबके दरमियाँ हुँ मैँ,
लेकिन कैसे बताऊँ ?
क्या हुँ मैँ?
सुनहरी सरज़मीँ मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा,
मगर तुम अब तक नहीँ समझें,
ठिकाना है कहाँ मेरा?
क़ाफिर की इबादत हुँ, शायर की माशूका,
कर दे जो हरपल को रंगीन,
मैँ वो धुँआ हुँ।
हुँ मैँ तेरी मुट्ठी मेँ,
खोल अपनी मुट्ठी,
तेरे सामने हुँ मैँ,
हाँ मैँ वही हुँ,
मैँ धुँआ हुँ!
शफ़्फाक हैँ,
फूल हैँ,दीपक हैँ, चाँद भी है,
मगर इनसे दूर कहीँ मैँ भी हुँ,
मैँ वही धुँआ हुँ।
फर्श और अर्श के दरमियाँ मत ढूँढ मुझे,
तू जिसे ढूँढ रहा है,
मैँ तेरे अंदर हुँ,
मैँ धुआँ हुँ।
क़ाफिर की इबादत हुँ, शायर की माशूका,
कर दे जो हरपल को रंगीन,
मैँ वो धुँआ हुँ।
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— The End —