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Feb 2019
चर्चे हों कुरबानी के दुश्मन ललकारे घर में घुसकर
तो प्रेम दिवस की बातें करना कहानी सा लगता है

जब तिरंगे में लिपटकर वापिस आते वीर चवालिस
तब चॉकलेट और तोहफ़े लेना मनमानी सा लगता है

जब शहीदों की चिंताओं पे सौ सौ फूल बरसते हैं
तब ग़ुलाब की आस लगाना बेमानी सा लगता है

बारूदों की आग लगी जब झुलसे देश धमाकों से
मोमबत्तियों में दावत खाना क्या रूमानी सा लगता है

जब माँओं की गोद उजड़ती लावारिस हों नन्हे मुन्ने
मेहबूब की बाहों में छुप जाना नाफ़रमानी सा लगता है

जब हो जाये सीमाओं पे कितने निर्दोषों की कुर्बानी
तब बेमतलब के जलसों में भी वीरानी सा लगता है

चीत्कार हो वीरों का जब करना हो कुछ काम तूफ़ानी
तब चैन से सोना भी वतन से बेईमानी सा लगता है
Love my india
Jayantee Khare
Written by
Jayantee Khare  45/F/Pune, India
(45/F/Pune, India)   
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