||पुत्रवती भवः|| वो मासूम अक्सर पूछा करती थी क्या लड़कियाँ ईश्वर को भी नापसंद है जो यही कहते है .....पुत्रवती भवः और मैं हस कर उसे गले से लगा लेती
वक्त गुजरा ओर उड़ने को बेताब थी वो अंधियारों में नजर आती मेहताब सी वो कुछ कर गुजरने की चाहत उसकी आखो में बसती थी की नजारे जुदा होते थे जब वो नन्ही मासूम हँसती थी
पर जिंदगी को उससे कुछ और ही मंजूर था सोचती हूँ आज भी की उसका क्या कुसूर था की जी भी कहा पाई थी वो तेरी दी हुई जिंदगी खुदा इस तरह तो ना करता तू उसे हमसे जुदा
की रात के अंधेरो में इस तरह नोचि गई दे दुहाई भगवान की हर जख्म पर रोती गई दया ना आई जालिमो को ना रूह कपकपाई तड़पी बेतहाशा कितना चीखी चिल्लाई लड़ी कुछ दिन जिंदगी से , ओर एक दिन थक गई अलविदा किया और खुदा के मुल्क में बस गई
जाते हुए मेरा हाथ थाम एक ही बात बोली थी की आज समझ आया कि क्यों कहते है