क्या चाहती हूं,
खुद को समझ नहीं पा रही,
न जाने ये राहे मुझे कहा ले जा रही
भटक सी गई हूं,
खो सी गई हूं,दुनिया की इन अनजान राहो में
खुद से खुद का राबता करने के लिए
बेचैन सी हो गई हूं
खुद से ही उदाश हूं ,खुद की ही खाश हूं
खुद पर भरोसा है भी,पर खुद पर सख़ भी है,
किसी से प्यार करती भी हूं
पर खुद को उसके काबिल बनाने से डरती भी ही
डरती ही की ,कहीं खुद को ना खो दू,...
खुदको उसके काबिल बनाने मै
उसे छोड़ने की भी हिम्मत नहीं
पर शायद हिम्मत आ गई है अब
बस सही रास्ता मिलने की देर है
बस खुद को पाने की आस है।