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Rashmi Sep 2019
मुझे ये पता है हम कभी साथ नहीं हो सकते
पर दूर जाने के ज़िद भी ना थी मेरी
चाहती थी तुझे अपनी जिंदगी में
क्योंकि इस झूठी दुनिया मे
सच्चा सा अपना सा लगता था तू,
पर मै इतनी खुदगर्ज नहीं होना चाहती
कि मेरी खुशी के लिए
तू अपने आप को रोके
तुझे दुखी करू अपने लिए
कभी नहीं चाहूंगी ऐसा
बस इसलिए दूर करती हूं
तुझे अपने आप से
तुझे दुखी करने का
कोई इरादा नहीं होता मेरा
बस और दर्द ना दू यही कोशिश करती हूं
इसलिए तो तुझसे गैरो सा
बर्ताव करती हूं
Rashmi Sep 2019
मुझे न तेरी बातें सुनना पसंद है
मै कभी कहती नहीं
पर तेरा ओरो से ज्यादा
मुझमें दिलचस्पी दिखाना मुझे पसंद है
किसी और के अगर तारीफ भी करू
' तो भी तुझे फर्क नई परता'
ये तेरा ऐसा स्वभाव मुझे पसंद है
किसी चीज में गलती चाहे मेरी हो
पर फिर भी तू झुकता है
वापस मुझसे बात करता  है
ये तेरा अहंकार मेरे सामने न रहना
मुझे पसंद है....
मुझसे झगड़ना तुझे पसंद है
फिर जब गुस्सा जाऊ तो
तेरा वापस मनाना मुझे पसंद है
तू जो झूठ बोलते हुए
सारि सच्चाई मेरे सामने बोल देता है न
तेरी ये बात मुझे पसंद है
तू सबके सामने तो समझदार बनता है
पर मेरे सामने जब तू
छोटा सा बच्चा बनकर
सबकुछ सच सच उगल देता है न
तो तेरे अंदर का वो बच्चा मुझे पसंद है।
Rashmi Sep 2019
खो सी गई हूं कहीं
अपने आप को ज़ाहिर नहीं करना चाहती
पर ज़ाहिर किए जा रही हूं
खुद का संयम जैसे खो सा दिया है
खुद से हि खफा रहती हूं
ऐसा नहीं कि पहले खफा न थी खुद से
पर अब तो कभी दील्फेक,तो कभी उग्र
तो कभी क्या ही  होके घूम रही हूं
समझ रही हूं
ठोकर लग सकती है,इसलिए तो
थोड़ा संभालने की कोशिश भी कर रही हूं
दूसरो का सहारा और लत दोनों
छोड़ने की हीमाकत करती हूं
चलो एक कोशिश ही करती हूं
खुद को सुधारने की
खुद से खुद को मिलाने की
कुछ लोगो कि उम्मीदो पर खड़ा उतरने की
और कुछ की उम्मीद तोड़ने की...
Rashmi Sep 2019
खुद को पाना है
तुम्हे पाने से पहले
पर तुम्हे पाकर खुद को खोना नहि है
क्योंकि जानती हूं
दिमाग कितना ज्यादा लगाया है
खुद को हासिल करने में
तो इतनी मेहनत के बाद खुद को खो दू...
ना,कभी नहीं
तुम्हे पाने की चाह है
पर खुद को ना खोने कि ज़िद भी है
आखिर इतनी मेहनत लगी है जनाब...
इसे ऐसे व्यर्थ तो नहीं जाने दूंगी
तो अगर तुम्हे कुछ कष्ट हो
मुझे मेरे जैसा रहते हुए चाहने में
तो जनाब तुम आजाद हो
नहीं पूछूंगी तुमसे क्यों नहीं हो साथ मेरे
क्योंकि गुरूर होगा मुझे खुद के साथ रहने में
तुम भी खुश रहना मै भी मज़े में रहूंगी
अकेली मत समझना
क्योंकि मै खुद के साथ रहूंगी
अपनी पहचान के साथ रहूंगी...
अपने आप को खो कर,तुम्हे पाना
ना, ये मेरे दिल को नहीं है गवारा।
Rashmi Sep 2019
चुप सी क्यों हूं?
ये पूछना अब बेफिजुल सा लगता है
शब्दों को ना समझने वाली दुनिया के आगे
अपने शब्दो को रखना भी बिफिजुल लगता है
लोग कहते है बिखर जाओगी अकेले....
तो सोचा चलो
मेरे शब्दो को ना समझ पाने वाली दुनिया को दिखाए
अकेले ही निखर पाऊंगी मैं
फिर सोचा के इस दुनिया को क्यों दिखाए
खुद को देखते है और दखते है जो देखना दिखाना है
ये दुनिया ना पहले समझी थी और ना शायद समझेगी
तो क्यों ही अपना समय इन पर खराब करे
वैसे भी समय खराब करने के लिए बहुत कुछ है
इस उबाऊ सी दुनिया पे क्यों खराब करे अपना समय
इससे अच्छा कुछ मस्ती भरे पल ही बना ले
अकेले है रहा कर।
Rashmi Sep 2019
भीड़ में ऐसी खोई हूं
खुद कि पहचान खोती जा रही हूं
रातों को जागना राहत देता है
अकेलापन कुछ ज्यादा ही करीब आ रहा है
शायद"अकेले रहना है मुझे"
मेरी इस ज़िद ने अकेला रखा है मुझे
फिर भी बहुत कुछ अधूरा सा लगता है
अभी बहुत से सपने है इस दिल मै
उन्हें पूरा करने के हीमत हर बार जुटाती हूं
फिर न जाने जवाने की या अपनी ही
ठोकर से उस हिम्मत के पहाड़ को गिरा देती हूं
दिखाती  हूं सबको की बहुत हिम्मत है मुझमें
न जाने किस्से ये झूठ कहती हूं
सब से,दूसरो से या फिर सब मै शामिल खुद से
न जाने क्या चाहती हूं
खुद से ही खुद को खोती जा रही हूं
अपने आप को खुद ही नई समझ रही हूं
ऑरो से फिर कैसी उम्मीद रखू
जब खुद मेरा मन ही नई जनता क्या चाहता है वो
थक चुकी हूं दुनिया से
पर अब शायद खुद से हार रही हूं मै
फिर भी हर रोज़ उठती हूं
सबसे पहले खुद से मुक़ाबला करने की हिम्मत लाती हूं
फिर बस अपने बिस्तर को छोरकर
दुनिया का रोज़ सामना करती हूं
पर जिस दिन खुद से हारू न
उस दिन हार जाती हूं सब से
तो हर रोज़ अपने आप को हराने मै वक्त बिताती हूं
इसलिए भी शायद खुद को कहीं खोती जा रही हूं।
Rashmi Sep 2019
तुझे भूलने की जो तलब लगानी थी
वो पूरी तरह लग न पाई
तुझे याद करने की जो आदत थी
वो कब सबसे बड़ी तलब बन गई
उसके आगे कुछ सूझा ही नहीं
क्या करू कुछ बुझा भी नहीं
कहना तो था बहुत कुछ तुझसे
पर तूने सुनने का मौका कभी ढूंढा ही नहीं
ऐसे कैसे हो गई हूं इतनी लापरवाह
तेरी चाह ने ऐसा क्या किया
तू तो मुझे चाहता भी नहीं
फिर क्यों ये चाह जगी है मुझमें
जो बुझती ही नहीं।

— The End —