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Avanish maurya Aug 2018
देखिए ना तेज़ कितनी उम्र की रफ़्तार है

ज़िंदगी में चैन कम और फ़र्ज़ की भर-मार है

बे-वजह की रार से कितना लड़े आख़िर कोई

एक मुश्किल से बचे तो दूसरी तय्यार है

हो पराया गर कोई तो दुश्मनी मंज़ूर है

आज अपनों से लड़े तो जीत में भी हार है

अब जहाँ में ख़ून के रिश्ते कहाँ बाक़ी रहे

ख़ून के रिश्तों में बहती ख़ून की अब धार है

बोल मीठे भी कहाँ अब बोलता कोई यहाँ

हर ज़बाँ पे आज केवल साँप की फुन्कार है

दिल दुखाया था जिन्होंने वो पराए तो न थे

आज कैसे मान लें कि उन को हम से प्यार है

कोई भी ऐसा नहीं जो मौत से बच जाएगा

आख़िरी मंज़िल सभी की मौत के उस पार है..
Ghazal
Avanish maurya Aug 2018
फ़ना दीवार करना चाहता हूँ

मैं सब से प्यार करना चाहता हूँ

हवा में ज़हर घोला जा रहा है

मैं खुशबू-दार करना चाहता हूँ

वफ़ा की अब यहाँ क़ीमत नहीं है

पलट कर वार करना चाहता हूँ

पकड़ से लफ़्ज़ छूटा जा रहा है

जिसे इज़हार करना चाहता हूँ

उधर से फिर पुकारा है किसी ने

समुंदर पार करना चाहता हूँ
Avanish maurya Aug 2018
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
पता नहीं वो दीए क्यूँ बुझा के रखता था

बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं,
मै दोस्तों की दुआएँ बचा के रखता था

वो तितलियों को सिखाता था व्याकरण यारों-
इसी बहाने गुलों को डरा के रखता था

न जाने कौन चला आए वक़्त का मारा,
कि मैं किवाड़ से सांकल हटा के रखता था

हमेशा बात वो करता था घर बनाने की
मगर मचान का नक़्शा छुपा के रखता था

मेरे फिसलने का कारण भी है यही शायद,
कि हर कदम मैं बहुत आज़मा के रखता था
Avanish maurya Aug 2018
मैंने उसको
जब-जब देखा,
लोहा देखा।
लोहे जैसा
तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा
मैंने उसको
गोली जैसा चलते देखा।
Avanish maurya Aug 2018
वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना।


वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनन्त रितुराज, नहीं
जिसने देखी जाने की राह।


वे सूने से नयन, नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज, नहीं
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती।


ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं,
नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं,
नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार!
Avanish maurya Jun 2018
कौन कहता है कि दर्पण झूठ नहीं बोलते , मैंने लाख गम छिपाये थे
फिर भी चेहरे पर हंसी दिखाया आईना।।

इंसानियत यहाँ हमने मरते देखा है , बाप घर के बाहर
और घर में कुत्ते देखा हैं।।

दुनिया जान गयी है कि उसको चोट लगा है,
क्योंकि उसे चिल्लाना आता था,
मेरे आघात को किसी ने न समझा
क्योंकि मुझे खामोशी भाँति थी।।

मेरी हर बात उसको खलती है,
फिर भी वो मेरी ही राहो मे चलती हैं।

किताब-ए-इश्क पढ़कर भूलाा दिया हमने
न किसी से शिकवा, न गीला किया हमने
पूछा जो किसी ने मेरी दास्तान-ए-मौहब्बत
एक चिराग जलाकर, बुझा दिया हमने।।

माँ का आँचल काफी था, बचपन में धूप से बचने के लिए,
अब तो ये टोपी भी कोई काम नहीं देती।।

मैं जानता हूँ नमक मिलेंगे जख्म पर मेरे
क्योंकि मुझे सच बोलने की आदत जो है।।

उंगली उठ जाती है सभी की, एक गलती पर
उसके हजारों अच्छाईयाँ नजर नहीं आती
ये कलयुग है मेरे दोस्त …
यहाँ सच्चाईयाँ नजर नहीं आती।।

कुछ चीज तुम्हें भी अच्छा लगता होगा मेरा
इसलिए अक्सर मेरे खिलाफ खड़े होते हो।।

दोस्ती हमसे सोच-समझकर करना दोस्तों,
दुश्मनी भी हम बहुत सलीके से निभाते हैं।।
  Jun 2018 Avanish maurya
Miss Ana
does the inside of your head
ever feel like a radio
thats constantly changing
stations
with lots of
static
and all the stations are
bad thoughts
that are strung together in
a sort of continuous narrative
of constantly escalating
fear
and
compounding dread?
intrusive thoughts
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