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  Jun 2018 Avanish maurya
Miss Ana
does the inside of your head
ever feel like a radio
thats constantly changing
stations
with lots of
static
and all the stations are
bad thoughts
that are strung together in
a sort of continuous narrative
of constantly escalating
fear
and
compounding dread?
intrusive thoughts
Avanish maurya Jun 2018
मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ
ग़मों से गुफ़्तगू करता हूँ लेकिन मुस्कुराता हूँ

ग़ज़ल कहने की कोशिश में कभी ऐसा भी होता है
मैं ख़ुद को तोड लेता हूँ, मैं ख़ुद को फिर बनाता हूँ

कभी शिद्दत से आती है मुझे जब याद उसकी तो
किसी बुझते दिये जैसा ज़रा-सा टिमटिमाता हूँ

सज़ा देना है तेरा काम, कोताही बरतना मत
मैं नाक़र्दा गुनाहों का मुसल्सल ऋण चुकाता हूँ

मेरी मजबूरियां मेरे उसूलों से हैं टकराती
जहाँ पर सर उठाना था वहाँ पर सर झुकाता हूँ

मेरे अल्फ़ाज़ का जादू तेरे सर चढ़ के बोलेगा
दिखाई वो तुझे देगा, तुझे जो मैं दिखाता हूँ
Ghazal
Avanish maurya Jun 2018
मैंने लिखा कुछ भी नहीं
तुम ने पढ़ा कुछ भी नहीं ।

जो भी लिखा दिल से लिखा
इस के सिवा कुछ भी नहीं ।

मुझ से ज़माना है ख़फ़ा
मेरी ख़ता कुछ भी नहीं ।

तुम तो खुदा के बन्दे हो
मेरा खुदा कुछ भी नहीं ।

मैं ने उस पर जान दी
उस को वफ़ा कुछ भी नहीं ।

चाहा तुम्हें यह अब कहूँ
लेकिन कहा कुछ भी नहीं ।

यह तो नज़र की बात है
अच्छा बुरा कुछ भी नहीं ।
Ghazal
Avanish maurya Jun 2018
हृदय-नगरी में बड़ा शोर मचा है
शायद ! कोई अन्दर खो गया है

कुछ झूमती हुई , बदहवासियाँ,
शोर मचाती चिल्लाती खामोशियाँ
मन के, नीले गगन में उड़ती रहीं
कुछ जवान-चंचल चिड़ियों की तरह!

मैंने दिल से पूछा, दिल रो पड़ा है
शायद ! कोई अन्दर खो गया है!

दु:खों में क्या पत्थर भी रोते हैं कोई
अक्स चूमते – धरा भिगोते हैं कोई?
जब सारा जग सोता है हम जागते हैं
या फिर अपना बुत ख़ुदी तराशते हैं !

मेरे हृदय में पूरा संसार बसा है
और ज़िस्म पत्थर का हो गया है
शायद ! कोई अन्दर खो गया है!
Poem
Avanish maurya Jun 2018
वो तो काबिल थे सही का शुमार कर लेते।
मेरी गलती थी तो उसमें सुधार कर लेते।।

अगर कोई न हो तेरा यहां सुनने वाला।
तो ये बेहतर था खुदा से गुहार कर लेते।।

मुझे हर हाल में तुम्हारे पास आना था।
हुई थी देर तो कुछ इन्तजार कर लेते।।

बहुत कठिन है रास्ता जो तेरी मंजिल का।
सफर उसी का क्यों न बार बार कर लेते।।

अपने लोगों को गले से लगा के बैठे हैं।
कभी कभी तो वो गैरों से प्यार कर लेते।।

हमारे दिल को दुखाने से चैन मिलता है।
तो और ज्यादा मुझे बेकरार कर लेते।।
Ghazal
Avanish maurya Jun 2018
मेरे ख़्वाबों की कश्ती
और अहसासों के पंछी

कश्ती पानी में तैर रही
तो पंछी आकाश में
के पंछी भी, कश्ती भी
दोनों, एक सीध में हैं !

कश्ती पर बैठा हुआ मैं
ताकता रहा पंछियों को
और सोचता रहा कि.
मैं अकेला क्यों हूँ . .?

नीला गगन पिघलता गया
जैसे नीली बर्फ़ पिघल रही हो

समंदर भी नीला – नीला
आकाश भी नीला – नीला
मगर मैं और मेरे ख़याल
जैसे पीले-से पड़ गए हैं !!

और मैं सोचता रहा कि.
मैं अकेला क्यों हूँ ?
. . .
. . .
आख़िर,
मैं अकेला क्यों हूँ ?
Avanish maurya Jun 2018
आसमान में छितराये वो बादल
पेड़ो के झुरमुट से आती वो आवाजें
चीं-चीं ,काँ-काँ ,टयूँ-टयूँ, पिहू-पिहू
इन सब को शांति से सुनती वो लतायें
हवा के झोखे से हिलती वो पत्तियाँ
सोते इंसानों को जगाती वो बोलियाँ
इस मधुर-संगीत को कैद करते वो संगीतकार
नाकामयाब से ढूंढ रहे अपने साज
पर पकड़ न पाये वो ताल।

आँगन से उठता वो धुआँ
खुशबू बिखेरता वो आशियाँ
जहाँ हर चेहरा खिलता देख वो रोटियाँ
जो मिटाती तन-मन की भूख।

ये ही है वो गुलिस्तां
जिसे ढूंढ रहा पागल-सा वो इंसान
जिसे खरीद नहीं सकता कुबेर का खजाना
भौर की वो किरण
ओस की वो बूंदें
सकूँ भरी वो सांस
ये ही है वो एक सुबह।
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