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Tanveer Bhanot Apr 2016
जब देखा था तुझे पहली बार ,
जैसे साँस रूक सी गई थी मेरी ,
अगर निकल के आगे तभी
फिर से साँस ले लेता ,
तो आज शायद ज़िंदा होता ।
Tanveer Bhanot Mar 2016
पल पल ये टूटती है , बढ़ रही है  डगर डगर।
जिंदगी की चाल ये , बदल रही है सफ़र।
कभी उड़ रही हवा में ये, कभी झुकी हुई ये फूल सी।
कभी जीत रही जहान ये , कभी खो रही है धुल सी।
कभी सूरज को घूरे ये उसे खाक करने को,
कभी बस यूँ ही चाँद से खाक है हो रही।
कभी टूटी तार ये साज़ की, कह कुछ पाती नही।
कभी चलती है कभी रूकती है, एक सफ़र नहीं करती ये तय|
हर राह ही इसकी अपनी है , हर कदम पे मुडती ये है।
कुछ रोज़ मुझे बनाती है ये, कुछ रोज़ ख़तम करती ये है।
Tanveer Bhanot Mar 2016
जब देखा था तुझे पहली बार ,
जैसे साँस रूक सी गई थी मेरी ,
अगर निकल के आगे तभी
फिर से साँस ले लेता ,
तो आज शायद ज़िंदा होता ।
Tanveer Bhanot Mar 2016
ना जाने क्या बदला है? ना जाने क्या अलग है?
जैसे सब कल था, आज भी वैसा तोह सब है…
वो कल भी वहीँ थे, वो आज भी वहीँ हैं …
हम ना कल थे कहीं भी, ना आज हम कहीं हैं..
टुकडों मे बिखरे थे, आज भी तोह तुकडे हैं...
बिछडे थे वोह जहां पे, हम तोह आज भी वहीँ हैं...
वही सूरज की किरने हैं, वही बारिश का पानी है…
वही नकली सी हँसी है, वही फिर से कहानी है..
जैसे सब कल था, आज भी वैसा तोह सब है…
ना जाने क्या बदला है? ना जाने क्या अलग है?

— The End —