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Rabiu Ameen Aug 12
Outside native shore where distant relatives come from
Mountainous hills looked like folds of crashing tide
Grooving trees danced to the rhythm of ancestral drum
Woodcraft countenance of a beast appeared, faces run to hide


Metal gutting through air like the reek of some fermented spirit
All shivering bones must heed to this mystic call of resonance
And should one ignore those small alarming bells; waist-tied to this trigger happy grit
Only vicious death 'll bid victim farewell in any horrifying state of happenstance


We should have set forth at dawn; long before the eve of a looming Caesar's day
Lest we meet dangling blade at the crossroads handheld by bitumen-drenched ****** from southeast
But as daylight covered herself with a blanket of gathered thick clouds of may
The land's celebration of silence was ruined with the marching ankle-bells of the masked beast


Cultures are birthed like the plethora skins of an onion
Smearing our visions with this spiritual sogginess of something rooted and cruel
We have always known masquerade brandishing a stick stripped from tall bamboo straws; to be seen as a merriment minion
And not this awful glare at its wake, needing mask spray from mouth-spitting gin, perhaps; to aggravate horror of a burning fuel


We have heard rumors of their king's weaning breathe
Perhaps; mere travelers' souls should be spared from unforeseen burial rites
For our supplication of a thousand lives shall go to mend his majesty's health
So we may leave the festival behind with great hastiness and mights
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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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पूर्व अतीत की चर्चा कर
क्या रखा गर्वित होने में?
पुरखों के खड्गाघात जता
क्या रखा हर्षित होने में?
भुजा क्षीण तो फिर क्या रखा
पुरावृत्त अभिमान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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कुछ परिजन के सुरमा होने
से कुछ पल हीं बल मिलता,
निज हाथों से उद्यम रचने
पर अभिलाषित फल मिलता।
करो कर्म या कल्प गवां
उन परिजन के व्याख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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दूजों से निज ध्यान हटा
निज पे थोड़ा श्रम कर लेते,
दूजे कर पाये जो कुछ भी
क्या तुम वो ना वर लेते ?
शक्ति, बुद्धि, मेधा, ऊर्जा
ना कुछ कम परिमाण में।
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत पर नाज करना किसको अच्छा नहीं लगता? परंतु इसका क्या औचित्य जब आपका व्यक्तित्व आपके पुरखों के विरासत से मेल नहीं खाता हो। आपके सांस्कृतिक विरासत आपकी कमियों को छुपाने के लिए तो नहीं बने हैं। अपनी सांस्कृतिक विरासत का महिमा मंडन करने से तो बेहतर ये हैं कि आप स्वयं पर थोड़ा श्रम कर उन चारित्रिक ऊंचाइयों को छू लेने का प्रयास करें जो कभी आपके पुरखों ने अपने पुरुषार्थ से छुआ था। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का प्रथम भाग।

— The End —